HI/Prabhupada 0845 - कुत्ता भी जानता है कि कैसे यौन जीवन के उपयोग करें । फ्रायड के तत्वज्ञान की आवश्यकता नहीं ह



761217 - Lecture BG 03.25 - Hyderabad

सक्ता: कर्मणि अविद्वांसो
यथा कुर्वन्ति भारत
कुर्याद विद्वांश तथासक्तश
चिकिर्षुर लोक संग्रहम
(भ.गी. ३.२५) |

दो पुरुषों के वर्ग है: विद्वान अौर मूर्ख । विद्वान नहीं, शायद मूर्ख न भी हो । मनुष्य, वे जानवरों से बहुत बुद्धिमान हैं । लेकिन आपस में वे कम बुद्धिमान, अधिक बुद्धिमान होते हैं । कुल मिलाकर, वे जानवरों की तुलना में अधिक बुद्धिमान होते हैं । जहॉ तक बुद्धिमत्ता का संबंध है, खाने, सोने, यौन जीवन और रक्षा के मामले में, यह बराबर है, या जानवर में या इंसान में । किसी भी शिक्षा की आवश्यकता नहीं है । यहां तक ​​की कुत्ता भी जानता है कि कैसे यौन जीवन का उपयोग करें । फ्रायड के तत्वज्ञान की आवश्यकता नहीं है । लेकिन धूर्त मानव समाज, वे सोच रहे हैं की "यहाँ एक बड़ा तत्वज्ञानी है । वह यौन जीवन के बारे में लिख रहा है ।" यह चल रहा है ।

भोजन, केवल भोजन... यहां भूमि है । तुम थोड़ा परिश्रम करो, अपने खाद्यान्न का उत्पादन करो और तुम पेट भर के खा सकते हो । लेकिन एक वैज्ञानिक कसाईखाने की आवश्यकता नहीं है बड़ी, बड़ी गायों को लाने के लिए और बेचारे निर्दोष जानवरों के जीवन की कीमत पर शहर में रह के लिए । यह बुद्धि का दुरुपयोग है । यह बुद्धिमत्ता नहीं है । इसलिए वास्तव में जो भक्त बुद्धिमान है, उन्हें रास्ता दिखाना चाहिए कि कैसे हम अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग कर सकते हैं । यही यहाँ समझाया गया है सक्त: कर्मणि अविद्वांश: | अविद्वांश: मूर्ख, जिनमें ज्ञान की कमी है, उन्होंने कई गतिविधियों की खोज की है, बस मूर्खता ।

तो आधुनिक सभ्यता, तथाकथित सभ्यता की उन्नति, है, मेरे कहने का मतलब है, अविद्वांश: द्वारा बनाई गई, जिनमें ज्ञान की कमी है उनके द्वारा बनाई गई । वे सभ्यता की उन्नति नहीं कर रहे हैं । इसलिए वे आत्मा के स्थानांतरगमन में विश्वास नहीं करते । वे विश्वास नहीं करते हैं, प्रमुख मुद्दे से बचना, और वे योजना बना रहे हैं कि वे इस जीवन में पचास या साठ साल के लिए जीऍगे, बड़ी, बड़ी योजना बना रहे हैं, सक्ता:, भौतिक अासक्ति । सक्ता: कर्मणि, और नए, नए तरीके खोज रहे हैं गतिविधियों के । अविद्वांश: । वे जानते नहीं है कि कैसे एक मस्तिष्क और प्रतिभा को संलग्न करें ।

हमने यह उस दिन चर्चा की थी, की प्रवृत्तिम च निवृत्तिम च न विदुर अासुरा जना: (भ.गी. १६.७) | कैसे हम अपने मस्तिष्क अौर प्रतिभा को संलग्न करें वे नहीं जानते । यही एक देवता और एक असुर के बीच का अंतर है । असुर को पता नहीं है । असुर सोचता है कि वह हमेशा के लिए जीवित रहेगा, और वह भौतिक आराम के लिए बड़ी, बड़ी योजनाएं तैयार करता है । यह अासुरिक सभ्यता है । उन्हें यहाँ रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी | दुःखालयम अशाश्वतम (भ.गी. ८.१५) | यह दुःख की जगह है ताकि हम अपनी स्थिति को समझ सकें ।

लेकिन ये मूर्ख, वे पीड़ा को ध्यान में नहीं लेते । वे और अधिक पीड़ा के लिए योजना बना रहे हैं । यह मूर्ख सभ्यता है । वे नहीं... तथाकथित वैज्ञानिक, वे शब्दों की हेरा फेरी कर रहे हैं, उन्नति । अौर जैसे की हम आज सुबह चर्चा कर रहे थे, कोई भी बुद्धिमान पूछ सकता है, "तुमने क्या हल किया है ?" किस तरह का समाधान तुमने निकाला है जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी की इस समस्या के लिए ? तुमने इस समस्या का हल निकाला है ? "वे हाँ नहीं कहेंगे । "हाँ, हम कोशिश कर रहे हैं, यह संभव हो सकता है लाखों साल बाद ।" वह भी... "यह हो सकता है की हम हमेशा के लिए जीवित रहें" वे ऐसा कहते हैं । अब, कौन जीने वाला है लाखों साल यह देखने के लिए, तुम्हारे प्रस्ताव की पुष्टि के लिए ? हर कोई खत्म हो जाता है पचास, साठ साल के भीतर । तुम भी... ओ, धूर्त तुम भी खत्म हो जाअोगे । और कौन तुम्हारे परिणामी कार्रवाई को देखने के लिए बचेगा ? तो यह चल रहा है । इसलिए यह बुद्धिमान व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह जीने का रास्ता दिखाए ।