HI/Prabhupada 0853 - एसा नहीं है कि हम इस ग्रह में आए हैं । हम कई अन्य ग्रहों में जा चुकें है



750306 - Lecture SB 02.02.06 - New York

तो वास्तव में यह तथ्य यह है। हम पूरे ब्रह्मांड में यात्रा कर रहे हैं । यह नहीं कि हम इस ग्रह में आए हैं । हम कई अन्य ग्रहों में जा चुकें हैं । अन्यथा, कृष्ण कैसे कहते हैं, भ्रामयन, भटकना; सर्व-भूतानी, सभी जीव - या तो उच्च ग्रहों में या निचले ग्रहों में? और कैसे वह यात्रा कर रहा है ? यंत्ररूढानि । यह यंत्र, यह शरीर । उसे शरीर दिया गया है । अब अगर मैं चंद्र ग्रह पर जाना चाहता हूँ और अन्य उच्च ग्रहों पर, हाँ, तुम्हे मिलेगा । लेकिन यह यंत्र नहीं, तुम्हारा तथाकथित नन्हा अवकाशयान । नहीं । तुम्हे यंत्र को लेना होगा, गाड़ी, वाहन, कृष्ण से । वे तुम्हे देंगे अगर तुम चाहते हो, अगर तुम गंभीर हो, अगर तुम चंद्र ग्रह पर जाना चाहते हो, तो तुम कृष्ण से प्रार्थना करो की "मुझे एक यंत्र दे दो, या एक मशीन, मैं चंद्र ग्रह पर जा सकूँ ।" फिर तुम जा सकते हो । अन्यथा तुम अनावश्यक रूप से, पैसा खर्च करोगे, और कहीं जाने की कोशिश कर सकते हो और कुछ धूल ला सकते हो, और तुम कहोगे, "अब... हम विजयी हुए ।" बस ।

लेकिन अगर तुम गंभीरता से वहाँ जाना चाहते हो, तो तुम्हे इस जीवन में अपने आप को तैयार करना होगा । भगवान से प्रार्थना करो, जिसने यह चंद्र और सूर्य और अन्य चीज़ें और यह ग्रह बनाया है, और वे तुम्हें योग्य बनाऍगे, वहाँ जाने के लिए योग्य बनाऍगे । तुम सूर्य ग्रह पर नहीं जा सकते । वहॉ बहुत, बहुत गर्म, उच्च तापमान है । इसी प्रकार, चंद्र ग्रह में बहुत, बहुत ठंड है । तो कैसे तुम इस शरीर के साथ जा सकते हो ? यह शरीर मतलब यह यंत्र । तो तुम्हे एक और यंत्र को स्वीकार करना होगा । यही प्रक्रिया है । यही प्रक्रिया है । यह भगवद गीता में कहा गया है:

यांति देव व्रता देवान
पितृन यांति पितृ व्रता:
भूतेज्या यांति भूतानि
मद्याजीनो अपि यांति माम
(भ.गी. ९.२५) |

सब कुछ स्पष्ट रूप से वहाँ कहा गया है, अगर तुम स्वर्ग पर जाना चाहते हो या उच्च ग्रहों पर, वे हैं, तुम्हारे सामने । तुम उन्हें देख सकते हो, सूर्य ग्रह है; लेकिन तुमने इतने अयोग्य हो कि तुम वहां नहीं जा सकते । लेकिन वह चीज़ तो है । यह काल्पनिक नहीं है । तापमान है, शास्त्र में विवरण, यच चक्षुर एष सविता सकल ग्रहाणाम (ब्रह्मसंहिता ५.५२) | सविता का मतलब है सूर्य । वे सभी ग्रहों की अाँख हैं क्योंकि धूप के बिना तुम नहीं देख सकते । तुम अपनी आँखों पर बहुत बहुत गर्व करते हो, लेकिन जैसे ही सूर्य नहीं है, तो तुम अंधे हो । इसलिए, यच चक्षुर एष सविता सकल ग्रहाणाम ।

सभी ग्रहों में, जब तक सूर्य की रोशनी नहीं है तुम नहीं देख सकते । और सूर्य ग्रह तुम्हारे सामने है । हर सुबह तुम्हे धूप मिल रही है । तुम वहाँ क्यों नहीं जाते ? हु ? जाअो । तुम्हारे पास अच्छा ७४७ है (हंसी) । तुम नहीं जा सकते । तो फिर तुम्हे प्रार्थना करनी चाहिए । ईश्वर, कृष्ण, तुम्हारे हृदय में हैँ, और अगर तुम सच्चे हृदय से प्रार्थना करते हो, वे बहुत दयालु हैं । इसलिए वे तुम्हे विभिन्न प्रकार के वाहन देते हैं । भ्रामयन सर्व भूतानि यंत्ररूढानि मायया भ.गी. १८.६१) | भ्रामयन मतलब हर ग्रह में भटकने देना, जीव की हर प्रजाति में । सर्व-भूतानी: जीवन की सभी प्रजातियॉ । विभिन्न प्रकार के पक्षी हैं, विभिन्न प्रकार के जानवर, विभिन्न प्रकार के मनुष्य होते हैं । इसे विचित्र कहा जाता है, किस्में । भगवान का निर्माण किस्में हैं ।

तो अगर तुम इस भौतिक दुनिया के भीतर कहीं जाना चाहते हो या इस भौतिक दुनिया से परे, इस भौतिक दुनिया से परे: परस तस्मात तु भावो अन्यो अव्यक्तो अव्यक्तात सनातन: (भ.गी. ८.२०) | कृष्ण तुम्हे जानकारी दे रहे हैं, एक अौर प्रकृति है । यही आध्यात्मिक प्रकृति है । जैसे हमें अनुभव है कि हालांकि हम कहीं भी नहीं जा सकते हैं, लेकिन हम देखते हैं, अध्ययन करके, भूगोल , बहुत से, कई सौ, हजार ग्रह हैं । इसी तरह, एक और प्रकृति है । इसी तरह, वहाँ हैं । वही - केवल एक समान नहीं; इस भौतिक दुनिया की तुलना में तीन गुना अधिक है । यह केवल भगवान की सृष्टि का एक हिस्सा है । एकांशेन स्थितो जगत ।

अथ वा बहुनैतेन
किम ज्ञातेन तवार्जुन
विष्टभ्याहम इदम कृत्स्नम
एकांशेन स्थितो जगत
(भ.गी. १०.४२)