HI/Prabhupada 0947 - हमें बहुत स्वतंत्रता मिली है, लेकिन अभी हम इस शरीर से बद्ध हैं



720831 - Lecture - New Vrindaban, USA

जैसे आधुनिक वैज्ञानिक, वे अन्य ग्रहों पर जाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वे बद्ध हैं, वे नहीं जा सकते हैं । हम देख सकते हैं । हमारे सामने लाखों अरबों ग्रह हैं - सूर्य ग्रह, चंद्र ग्रह, शुक्र, मंगल । कभी कभी हम कामना करते हैं "मैं वहां कैसे जा सकूँ ।" लेकिन क्योंकि मैं बद्ध जीव हूँ, मैं स्वतंत्र नहीं हूँ, मैं नहीं जा सकता । लेकिन मूल रूप से, क्योंकि तुम आत्मा हो, मूल रूप से तुम किसी भी तरह से स्थानांतरित करने के लिए स्वतंत्र थे । जैसे नारद मुनि । नारद मुनि हर जगह जाते हैं; किसी भी ग्रह में वे जा सकते हैं । फिर भी, इस ब्रह्मांड में एक ग्रह है जो सिद्धलोक कहलाता है । वह सिद्धलोक, सिद्धलोक के निवासी, वे किसी भी हवाई जहाज के बिना एक से दूसरे ग्रह पर उड़ सकते हैं । यहां तक ​​कि योगी, योगी, हठ-योगी, जिन्होंने अभ्यास किया है, वे भी कहीं से कहीं तक जा सकते हैं ।

योगी, वे एक स्थान पर बैठते हैं और तुरंत दूसरी जगह में स्थानांतरित हो जाते हैं । वे पास की किसी नदी में स्नान करते हैं, और वे भारत के किसी अौर नदी से बाहर निकलते हैं । वे यहां डुबकी लगाते हैं और वे वहाँ निकलते हैं । ये योग शक्तियाँ हैं । तो हमें असीम स्वतंत्रता मिली है, लेकिन अभी हम इस शरीर से बद्ध हैं । इसलिए मनुष्य जीवन एक मौका है हमारी मूल स्वतंत्रता को वापस पाने के लिए । यही कृष्ण भावनामृत कहलाता है । स्वतंत्रता ।

जब हम आध्यात्मिक शरीर में होते हैं, बिना भौतिक शरीर के अावरण के... हमारा आध्यात्मिक शरीर है इस भौतिक शरीर के भीतर । बहुत छोटा । यही मेरी असली पहचान है । अब मैं दो प्रकार के भौतिक शरीर से ढका हूँ । एक सूक्ष्म शरीर कहा जाता है और अन्य स्थूल शरीर कहा जाता है । सूक्ष्म शरीर, मन, बुद्धि और अहंकार, झूठे अहंकार से बना है, और स्थूल शरीर बना है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु अौर अाकाश एक साथ मिश्रित, यह शरीर । तो दो प्रकार का शरीर हमें मिला है । और हम बदल रहे हैं । आम तौर पर हम स्थूल शरीर को देख सकते हैं; हम सूक्ष्म शरीर को नहीं देख सकते हैं ।

जैसे हर कोई जानता है की... मुझे पता है की तुम्हारा अपना मन है । मुझे पता है कि तुम्हे बुद्धि मिली है । तुम्हें पता है मेरा मन है, मेरी बुद्धि है । लेकिन मैं तुम्हारी बुद्धि को नहीं देख सकता, मैं तुम्हारे मन को नहीं देख सकता हूँ । मैं तुम्हारे दृढ़ संकल्प को नहीं देख सकता । मैं तुम्हारे विचार, सोच, भावना और चाहत को नहीं देख सकता । इसी तरह, तुम नहीं देख सकते हो । तुम मेरे स्थूल शरीर को देखते हो जो इस पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि से बना है । और मैं तुम्हारे स्थूल शरीर को देख सकता हूँ । इसलिए जब यह स्थूल शरीर बदल जाता है और तुम्हे ले जाया जाता है, तुम सूक्ष्म शरीर से चले जाते हो, यही मृत्यु कहा जाता है । हम कहते हैं, "ओह, मेरे पिता चले गए।" कैसे तुम देखते हो की तुम्हारे पिता चले गए ? शरीर यहाँ पड़ा है । लेकिन असल में उसके पिता सूक्ष्म शरीर से दूर चले गए हैं ।