HI/Prabhupada 0984 - हिंदुओं का एक भगवान है और ईसाइयों का दूसरा भगवान है । नहीं । भगवान दो नहीं हो सकते हैं



720905 - Lecture SB 01.02.07 - New Vrindaban, USA

तो, कल हम चर्चा कर रहे थे, कि प्रथम श्रेणी की धार्मिक प्रणाली क्या है । स वै पुंसाम परो धर्म: यतो भक्तिर अधोक्षजे (श्रीमद भागवतम १.२.७) | परीक्षण यह है कि लोग बहुत ज्यादा उत्सुक हैं लड़ने के लिए, "मेरा धर्म बेहतर है ।" "मैं हिंदू हूं । हमारा धर्म बहुत अच्छा है ।" कोई कहता है, "नहीं, हम ईसाई हैं, हम हैं... हमारा धर्म बहुत अच्छा है ।" कोई मुसलमान, यह लड़ाई चल रही है । यूरोपीय इतिहास में लड़ाई हुई धार्मिक समूह के बीच धर्मयुद्ध । हमारे देश में, भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच लड़ाई हुई । इस लड़ाई का अर्थ क्या है ?

जब वास्तव में कोई भगवद भावनाभावित होता है, वह भगवान को जानता है, तो लड़ने का मौका कहॉ है ? यस्य देवे परा... क्योंकि व्यक्ति को... अगर कोई व्यक्ति वास्तव में भगवद भावनाावित है, यस्यास्ति भक्तिर भगवति अकिंचना (श्रीमद भागवतम ५.१८.१२) । वैदिक साहित्य हमें जानकारी देता हैं, की अगर वास्तव में कोई भगवान का भक्त है... भगवान एक हैं, भगवान दो नहीं हो सकते हैं । एसा नहीं है कि हिंदुओं के एक भगवान है और ईसाइयों का एक और भगवान है । नहीं । भगवान दो नहीं हो सकते हैं । भगवानों की कोई प्रतियोगिता नहीं हो सकती । "मैं भगवान हूँ ।" जैसे आजकल यह एक फैशन बन गया है, इतने सारे भगवान, धूर्त अा रहै हैं, "मैं भगवान हूँ।" वह कहता है, "मैं भगवान हूँ" "मैं भगवान हूँ", "मैं भगवान हूँ ।"

अब कितने सारे भगवान हैं ? नहीं, भगवान एक है, एको ब्रह्म द्वतीय नास्ति, यह वैदिक आज्ञा है । जैसे सूर्य की तरह । सूर्य एक है । हमारे व्यावहारिक उदाहरण से । तुम नहीं कह सकते हो कि "यह भारतीय सूर्य है," और "यह अमेरिकी सूर्य है," या "यह अफ्रीकी सूर्य है ।" सूर्य एक है । देखो, अगर भगवान की रचना एक है, और यह इतनी शक्तिशाली है... सूर्य भगवान की सृष्टि में से एक है । लाखों सूर्य हैं । हम केवल एक ही देख सकते हैं । तो अगर भगवान के द्वारा बनाया गया एक सूरज इतना काम कर सकता है, इतनी गर्मी और प्रकाश वितरित कर सकता है, जरा कल्पना करो कि सूर्य का निर्माता कितना शक्तिशाली होगा । यह सामान्य ज्ञान है । तो हमें भगवद गीता से जानकारी मिलती है... (एक तरफ:) रूपानुग तुम यहां आ सकते हो ।

अहम सर्वस्य प्रभव:
मत्त: सर्वम प्रवर्तते
इति मत्वा भजन्ते माम
बुधा भाव समन्विता:
(भ.गी. १०.८) |

अहम सर्वस्य प्रभव:, जो कुछ भी हम देखते हैं, जो भी है, इन सब की उत्पत्ति हुई है भगवान से । यह वेदांत-सूत्र का फैसला भी है । सरल । अगर तुम जानना चाहते हो कि भगवान क्या हैं, वेदांत-सूत्र जानकारी देता है, दो शब्द में, बहुत सरल है: "भगवान, या निरपेक्ष सत्य, वे हैं जो हर किसी के स्रोत है ।" जन्मादि अस्य यत: (श्रीमद भागवतम १.१.१) | मूल स्रोत जिससे हर किसी की उत्पत्ति हुई है, वह भगवान हैं । बहुत ही सरल परिभाषा । कोई भी समझ सकता है । अगर तुम पता लगाते हो... यह हमारी जिज्ञासा है... तत्वज्ञान मतलब जिज्ञासा करना । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा - पृच्छा करना ।