HI/670714 - श्रीपाद नारायण महाराज को लिखित पत्र, स्टिंसन समुद्र तट: Difference between revisions

No edit summary
No edit summary
 
(One intermediate revision by the same user not shown)
Line 16: Line 16:


१४ जुलाई, १९६७<br/>
१४ जुलाई, १९६७<br/>
<br/>
 
“श्री श्री गुरु गौरांगो जयतः”<br/>
 
“श्री श्री गुरु गौरांगो जयतः”  


ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी<br/>
ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी<br/>
सी/ओ पी.एम. स्टिन्सन बीच<br/>
सी/ओ पी.एम. स्टिन्सन बीच<br/>
कैलिफोर्निया अमेरीका<br/>
कैलिफोर्निया अमेरीका


श्री श्री वैष्णव चरण दंडवत पूर्वकीयम्
श्री श्री वैष्णव चरण दंडवत पूर्वकीयम्


वैष्णवों के चरणों में दंडवत करके फिर में लिख रहा हूँ।
वैष्णवों के कमल चरणों में दंडवत करके फिर मैं लिख रहा हूँ।


श्रीपाद नारायण महाराज,
श्रीपाद नारायण महाराज,
Line 39: Line 40:
मैंने युनाइटेड शिपिंग कॉर्परेशन को यथोचित उत्तर दे दिया है-चिंता का कोई विषय नहीं है। मैं आशा करता हूँ कि आप ठीक हैं। विनोद कुमार के संदर्भ में मुझे लिखिएगा। आप मेरे स्वास्थ्य के बारे में जानना चाहते थे। “जैसे कि किसी टूटे हुए घर में, जिसमे रोशनी के लिए केवल जुगनू ही हों, जबतक भी प्रकाश रहे, अच्छा ही है।” मुझे जो दौरा पड़ा था, उससे मेरे बच जाने का कोई रास्ता नहीं था, किन्तु कृष्ण ने किसी प्रकार से मुझे जीवित रखा। शनैः-शनैः मेरे मृत शरीर में जीवन आ रहा है और कुछ सुधार है। इसीलिए मैं आपको अपनी लिखावट में उत्तर दे रहा हूँ। आप एक गंभीर वैष्णव हैं। कृष्ण अवश्य ही आपकी बात सुनेंगे। आप कृष्ण से प्रार्थना कीजिएगा कि मरने से पहले, मैं एक और बार वृंदावन के दर्शन कर पाऊं।
मैंने युनाइटेड शिपिंग कॉर्परेशन को यथोचित उत्तर दे दिया है-चिंता का कोई विषय नहीं है। मैं आशा करता हूँ कि आप ठीक हैं। विनोद कुमार के संदर्भ में मुझे लिखिएगा। आप मेरे स्वास्थ्य के बारे में जानना चाहते थे। “जैसे कि किसी टूटे हुए घर में, जिसमे रोशनी के लिए केवल जुगनू ही हों, जबतक भी प्रकाश रहे, अच्छा ही है।” मुझे जो दौरा पड़ा था, उससे मेरे बच जाने का कोई रास्ता नहीं था, किन्तु कृष्ण ने किसी प्रकार से मुझे जीवित रखा। शनैः-शनैः मेरे मृत शरीर में जीवन आ रहा है और कुछ सुधार है। इसीलिए मैं आपको अपनी लिखावट में उत्तर दे रहा हूँ। आप एक गंभीर वैष्णव हैं। कृष्ण अवश्य ही आपकी बात सुनेंगे। आप कृष्ण से प्रार्थना कीजिएगा कि मरने से पहले, मैं एक और बार वृंदावन के दर्शन कर पाऊं।


वशंवद
वसंवद<br />
(कृतज्ञतापूर्वक),


श्री भक्तिवेदान्त स्वामी
श्री भक्तिवेदांत स्वामी


© गौड़ीय वेदांत प्रकाशन सीसी-बीवाई-एनडी
©गौड़ीय वेदांत प्रकाशन सीसी-बीवाई-एनडी

Latest revision as of 11:23, 25 January 2023

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda



१४ जुलाई, १९६७


“श्री श्री गुरु गौरांगो जयतः”

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
सी/ओ पी.एम. स्टिन्सन बीच
कैलिफोर्निया अमेरीका

श्री श्री वैष्णव चरण दंडवत पूर्वकीयम्

वैष्णवों के कमल चरणों में दंडवत करके फिर मैं लिख रहा हूँ।

श्रीपाद नारायण महाराज,

मैं दिनांक ८ जुलाई का आपका स्वहस्तलिखित पत्र प्राप्त कर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। मुझे आपके सभी पत्र प्राप्त हुए हैं और मैंने सभी का उत्तर दिया है। मैं आशा करता हूँ कि वे आपको प्राप्त हो गए हैं। मैं इस बात से चिन्तित हूँ कि विनोद कुमार को अभी तक उसका पासपोर्ट व “पी” फॉर्म प्राप्त नहीं हुए हैं। यदि उसे अब भी पासपोर्ट प्राप्त नहीं हुआ है तो बचे पैसों को वृंदावन बैंक में जमा कर दीजिए। इसकी बहुत संभावना है कि आगामी अगस्त में मैं वृंदावन लौटूंगा। यदि कृष्ण मुझे जीवित रखें तो मैं वहां लौटूंगा। मैंनें यहां बहुत प्रचार करने की योजना बनाई थी। लेकिन मेरे स्वास्थ्य में गिरावट के कारण सारा कार्य स्थगित हो गया है। शिष्यगण अवश्य ही उनके सामर्थ्य के अनुरूप पूरा प्रयास कर रहे हैं, किन्तु अभी उन्हें बहुत कुछ सीखना बाकी है। यदि कृष्ण अपनी कृपा करें तो सभी कुछ संभव है।

इस समय मैं वृंदावन लौटने को उत्सुक हूँ। यहां मैं महलनुमा भवन में ठहरा हूँ। सदैव इन लोगों में से चार व्यक्ति सेवा को तत्पर हैं। प्रसाद, आराम व सहायता की कोई कमी नहीं है। तब भी मैं अनुभव कर रहा हूँ कि मेरी ऐश्वर्यविहीन टूटी कुटिया, यमुना स्नान, मन्दिरों के दर्शन एवं गौड़ीय वैष्णवों वाली फटी हुई सूती रज़ाई कितनी सरस है। वृंदावन से इतना दूर होने पर मैं उसके महात्म्य का अनुभव कर पा रहा हूँ। श्री चैतन्य महाप्रभू ने कहा है कि “जिस प्रकार कृष्ण पूज्य हैं वैसे ही वृंदावन भी पूज्य है।” अब मुझे इसकी कुछ अनुभूति हो रही है। जैसे कृष्ण मीठे हैं वैसे ही वृंदावन भी मीठा है। आप मुझे आशीर्वाद दें कि मैं वृंदावन लौट पाऊं। अब मैं वृद्ध हूँ। मुझे मृत्यु का भय नहीं है। किन्तु यदि मेरी प्राण वायु वृंदावन में वैष्णवों की चरण धूलि में निकले तो वह बहुत आनंदमय होगा। ठीक होते ही मैं वृंदावन लौटूँ, यह मेरी इच्छा है। फिर यदि मेरे स्वस्थ में पहले से सुधार हो तो मैं यहां लौट कर प्रचार करुंगा। प्रचार की नींव यहां पर अच्छे से रख दी गई है। भविष्य में यदि मैं न भी लौटूँ, तब भी कोई भी गंभीर वैष्णव यहां आ करके हरि-कीर्तन कर सकते हैं।

हमारी तीनों शाखाओं में से श्री श्री राधा कृष्ण की स्थापना मैं मॉन्ट्रियल(कनाडा) में करने का इच्छुक हूँ। इस मास के अन्त तक विग्रह यहां पर पंहुच जाएंगे। तब मैं मॉन्ट्रियल जाऊंगा। और यदि जीवित रहा, तो मैं लंदन व मॉस्को होता हुआ सीधा दिल्ली पंहुचुंगा। समय आने पर मैं आपको सूचित करुंगा।

दिल्ली में अलमारी में अनेक पुस्तकें हैं। यदि आप उन्हें भिजवा सको तो बहुत अच्छा रहेगा। बहरहाल, मैं इस संदर्भ में आपको बाद में लिखुंगा।

मैंने युनाइटेड शिपिंग कॉर्परेशन को यथोचित उत्तर दे दिया है-चिंता का कोई विषय नहीं है। मैं आशा करता हूँ कि आप ठीक हैं। विनोद कुमार के संदर्भ में मुझे लिखिएगा। आप मेरे स्वास्थ्य के बारे में जानना चाहते थे। “जैसे कि किसी टूटे हुए घर में, जिसमे रोशनी के लिए केवल जुगनू ही हों, जबतक भी प्रकाश रहे, अच्छा ही है।” मुझे जो दौरा पड़ा था, उससे मेरे बच जाने का कोई रास्ता नहीं था, किन्तु कृष्ण ने किसी प्रकार से मुझे जीवित रखा। शनैः-शनैः मेरे मृत शरीर में जीवन आ रहा है और कुछ सुधार है। इसीलिए मैं आपको अपनी लिखावट में उत्तर दे रहा हूँ। आप एक गंभीर वैष्णव हैं। कृष्ण अवश्य ही आपकी बात सुनेंगे। आप कृष्ण से प्रार्थना कीजिएगा कि मरने से पहले, मैं एक और बार वृंदावन के दर्शन कर पाऊं।

वसंवद
(कृतज्ञतापूर्वक),

श्री भक्तिवेदांत स्वामी

©गौड़ीय वेदांत प्रकाशन सीसी-बीवाई-एनडी