HI/660809 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत बूँदें|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660809BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"शास्त्रों से ज्ञात होता है कि भगवद् धाम का नाम वैकुण्ठ है। वैकुण्ठ का अर्थ है विगत-कुण्ठ। कुण्ठ का अर्थ है चिन्ता। जहाँ कोई चिन्ता या व्यग्रता नहीं होती उसे वैकुण्ठ कहते हैं। अत: कृष्ण कहते हैं, " नाहं तिष्ठामि वैकुण्ठे योगीनाम ह्रदयेषूच": मेरे प्रिय नारद यह मत सोचना कि मैं भगवद्धाम वैकुण्ठ में या योगियों के ह्रदय में ही रहता हूँ, नहीं ! तत्तततिष्ठामि नारद यत्र गायन्ति मद भक्त: जहाँ- जहाँ मेरे भक्त मेरे नाम का गायन या नाम का जप करते हैं, मैं वहीं रहता व जाता हूँ। "
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Latest revision as of 14:11, 25 July 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
शास्त्रों से हमें यह ज्ञात होता है, कि भगवद धाम का नाम वैकुण्ठ है। वैकुण्ठ का अर्थ है विगत-कुण्ठ यत्र। कुण्ठ का अर्थ है चिन्ता। जहाँ पर कोई चिन्ता या उत्कंठा नहीं होती, उस स्थान को वैकुण्ठ कहा जाता है। तो कृष्ण कहते हैं की नाहम तिष्ठामि वैकुण्ठे योगीनाम हृदयेषु च: "मेरे प्रिय नारद, यह मत सोचना कि, मैं भगवद्धाम वैकुण्ठ में या योगियों के हृदय में ही रहता हूँ । नहीं ।" तत तत तिष्ठामि नारद यत्र गायन्ति मद भक्ता: "जहाँ-जहाँ मेरे भक्त मेरे नाम का उच्चारण या नाम का जप करते हैं, मैं वहाँ उपस्थित होता हूँ। मैं वहीँ जाता हूँ।"
660809 - प्रवचन भ.गी. ४.२०-२४ - न्यूयार्क