HI/670209 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 15:08, 8 April 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"जिस प्रकार आप भगवद् गीता में देखते हैं कि अर्जुन, प्रारंभ में कृष्ण के साथ तर्क कर रहा था, मित्र और मित्र के मध्य में। किन्तु जब उन्होंने स्वयं को शिष्य के रूप में आत्मसमर्पण किया, शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्... ( भ.गी. २.७) उन्होंने कहा, "मेरे प्रिय कृष्ण, अब मैं आपके समक्ष शरणागत हूँ। मैं आपको अपना आध्यात्मिक गुरु स्वीकार करता हूँ।" शिष्यस्तेऽहं: "मैं आपका शिष्य हूँ, मित्र नहीं।" क्योंकि मित्रतापूर्ण बातचीत, तर्क, का कोई अंत नहीं है। किन्तु जब आध्यात्मिक गुरु और शिष्य के बीच बात होती है, तो कोई विवाद नहीं होता। कोई विवाद नहीं। जैसे ही आध्यात्मिक गुरु कहते हैं, "यह किया जाना है," तो वह किया जाना है। बस इतना ही, यह अंतिम है।" |
670209 - प्रवचन चै. च. आदि ०७.७७-८१ - सैन फ्रांसिस्को |