HI/660413 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

No edit summary
No edit summary
 
Line 10: Line 10:
([[Vanisource:SB 5.18.12|श्री. भा.५.१८.१२]])
([[Vanisource:SB 5.18.12|श्री. भा.५.१८.१२]])


"अगर कोई व्यक्ति भगवान की शुद्ध भक्ति करता है,तो, वह व्यक्ति कैसा भी हो, उसमे भगवान के सारे अच्छे गुण विकसित होते है, सारे अच्छे गुण ।"और  ''हरावभक्तस्य कुतो महद्गुणा''  वो व्यक्ति जो भगवान का भक्त नहीं है , वे भले ही शैक्षणिक दृष्टि से शिक्षित है,किंतु उनकी योग्यता का कोई महत्व नहीं।" ऐसा क्यों ? ''मनोरथेन'' " चूंकि वो मानसिक चिंतन के स्तर पर है,निश्चित हैं की वह इस भौतिक प्रकृति से प्रभावित होगा" यह निश्चित है। तो यदि हमें भौतिक प्रकृति के प्रभाव से मुक्त होना है,तो हमारे मानसिक चिंतन के स्वभाव को छोड़ना होगा।"
"अगर कोई व्यक्ति भगवान की शुद्ध भक्ति करता है, तो, वह व्यक्ति कैसा भी हो, उसमे भगवान के सारे अच्छे गुण विकसित होते है, सारे अच्छे गुण ।"और  ''हरावभक्तस्य कुतो महद्गुणा''  वो व्यक्ति जो भगवान का भक्त नहीं है , वे भले ही शैक्षणिक दृष्टि से शिक्षित है,किंतु उनकी योग्यता का कोई महत्व नहीं।" ऐसा क्यों ? ''मनोरथेन'' " चूंकि वो मानसिक चिंतन के स्तर पर है, निश्चित हैं की वह इस भौतिक प्रकृति से प्रभावित होगा" यह निश्चित है। तो यदि हमें भौतिक प्रकृति के प्रभाव से मुक्त होना है, तो हमारे मानसिक चिंतन के स्वभाव को छोड़ना होगा।"
:|Vanisource:660413 - Lecture BG 02.55-58 - New York|660413 - प्रवचन भ.गी. ०२.५५-५८- न्यूयार्क}}
:|Vanisource:660413 - Lecture BG 02.55-58 - New York|660413 - प्रवचन भ.गी. ०२.५५-५८- न्यूयार्क}}

Latest revision as of 06:34, 5 July 2024

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हरावभक्तस्य कुतो महद्गुणा

मनोरथेनासति धावतो बहि:

यस्यास्ति भक्तिर्भगवत्यकिञ्चना सर्वैर्गुणैस्तत्र समासते सुरा: "

(श्री. भा.५.१८.१२)

"अगर कोई व्यक्ति भगवान की शुद्ध भक्ति करता है, तो, वह व्यक्ति कैसा भी हो, उसमे भगवान के सारे अच्छे गुण विकसित होते है, सारे अच्छे गुण ।"और हरावभक्तस्य कुतो महद्गुणा वो व्यक्ति जो भगवान का भक्त नहीं है , वे भले ही शैक्षणिक दृष्टि से शिक्षित है,किंतु उनकी योग्यता का कोई महत्व नहीं।" ऐसा क्यों ? मनोरथेन " चूंकि वो मानसिक चिंतन के स्तर पर है, निश्चित हैं की वह इस भौतिक प्रकृति से प्रभावित होगा" यह निश्चित है। तो यदि हमें भौतिक प्रकृति के प्रभाव से मुक्त होना है, तो हमारे मानसिक चिंतन के स्वभाव को छोड़ना होगा।"

660413 - प्रवचन भ.गी. ०२.५५-५८- न्यूयार्क