HI/730707 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लंडन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

No edit summary
No edit summary
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७३]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७३]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - लंडन]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - लंडन]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/730707BG-LONDON_ND_01.mp3</mp3player>|"तो यह कृष्ण चेतना आंदोलन उन लोगो के लिए नही है जो ईर्ष्यावान है। यह आंदोलन लोगो को सीखने के लिए है की ईर्ष्यावन कैसे न बने। यह एक बहुत अच्छा वैज्ञानिक आंदोलन है। ईर्ष्यावान बनने के लिए नही। इसीलिए श्रीमद भागवतम के आरंभ में ही बताया गया है, धर्मः प्रोज्झित कैतवो अत्र ([[Vanisource :SB 1.1.2|श्री.भा. १.१.२]])। इस श्रीमद भागवतम में धर्म, छल के ऊपर आधारित धर्म पूर्णतः से निष्कासित करे गए है, त्याग दिए गए है, प्रोज्झित। प्रोज्झित, बर्खास्त कर दिए गए है, जैसे आप झाड़ू लगाते समय कमरे में से सारी मेल निकाल कर इकट्ठा करते है उसे बाहर फेंक देते है, उसे कमरे में नही रखते।
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/730707BG-LONDON_ND_01.mp3</mp3player>|"तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन उन लोगों के लिए नही है जो ईर्ष्यावान हैं। यह आंदोलन लोगों को सीखने के लिए है की ईर्ष्यावान कैसे न बने। यह एक बहुत अच्छा वैज्ञानिक आंदोलन है। ईर्ष्यावान बनने के लिए नही। इसीलिए श्रीमद भागवतम के आरंभ में ही बताया गया है, धर्मः प्रोज्झित कैतवो अत्र ([[Vanisource :SB 1.1.2|श्री.भा. १.१.२]])। इस श्रीमद भागवतम में धर्म, छल के ऊपर आधारित धर्म पूर्णतः से निष्कासित किये गए हैं, त्याग दिए गए हैं, प्रोज्झित। बर्खास्त कर दिए गए हैं, प्रोज्झित। जैसे आप झाड़ू लगाते समय कमरे में से सारी मैल निकाल कर इकट्ठा करते हैं उसे बाहर फेंक देते हैं, उसे कमरे में नही रखते।
वैसे ही जो धर्म छल पर आधारित है, उन्हें भी निकल देना चाहिए। यह ऐसा धर्म नही, "यह धर्म", "वो धर्म"। कोई भी धर्म हो, यदि उसमे ईर्ष्या है, तो वह धर्म नही।"
वैसे ही जो धर्म छल पर आधारित है, उन्हें भी निकल देना चाहिए। यह ऐसा धर्म नही, "यह धर्म", "वो धर्म"। कोई भी धर्म हो, यदि उसमे ईर्ष्या है, तो वह धर्म नही।"
|Vanisource:730707 - Lecture BG 01.01 - London|730707 - प्रवचन भ.गी ०१.०१ - लंडन}}
|Vanisource:730707 - Lecture BG 01.01 - London|730707 - प्रवचन भ.गी ०१.०१ - लंडन}}

Latest revision as of 10:41, 30 June 2024

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन उन लोगों के लिए नही है जो ईर्ष्यावान हैं। यह आंदोलन लोगों को सीखने के लिए है की ईर्ष्यावान कैसे न बने। यह एक बहुत अच्छा वैज्ञानिक आंदोलन है। ईर्ष्यावान बनने के लिए नही। इसीलिए श्रीमद भागवतम के आरंभ में ही बताया गया है, धर्मः प्रोज्झित कैतवो अत्र (श्री.भा. १.१.२)। इस श्रीमद भागवतम में धर्म, छल के ऊपर आधारित धर्म पूर्णतः से निष्कासित किये गए हैं, त्याग दिए गए हैं, प्रोज्झित। बर्खास्त कर दिए गए हैं, प्रोज्झित। जैसे आप झाड़ू लगाते समय कमरे में से सारी मैल निकाल कर इकट्ठा करते हैं उसे बाहर फेंक देते हैं, उसे कमरे में नही रखते।

वैसे ही जो धर्म छल पर आधारित है, उन्हें भी निकल देना चाहिए। यह ऐसा धर्म नही, "यह धर्म", "वो धर्म"। कोई भी धर्म हो, यदि उसमे ईर्ष्या है, तो वह धर्म नही।"

730707 - प्रवचन भ.गी ०१.०१ - लंडन