HI/760323 - श्रील प्रभुपाद कलकत्ता में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 11: | Line 11: | ||
|चै.च अंत्य २०.२९, शिक्षाष्टकम ४]]) | |चै.च अंत्य २०.२९, शिक्षाष्टकम ४]]) | ||
तो एक वैष्णव का ऐसा कोई लक्ष्य नही होता की "मेरे पास कई करोड़ या करोड़ों डॉलर्स होने चाहिये और एक बहुत सुंदर पत्नी होनी चाहिए।" न धनं, " और बहुत से अनुयाई। मुझे एक मंत्री, नेता, राजनीतिक बनना है।" यह लक्ष्य पूरी तरह से बर्खास्त करे गए है वैष्णव द्वारा। | तो एक वैष्णव का ऐसा कोई लक्ष्य नही होता की "मेरे पास कई करोड़ या करोड़ों डॉलर्स होने चाहिये और एक बहुत सुंदर पत्नी होनी चाहिए।" ''न धनं,'' " और बहुत से अनुयाई। मुझे एक मंत्री, नेता, राजनीतिक बनना है।" यह लक्ष्य पूरी तरह से बर्खास्त करे गए है वैष्णव द्वारा। | ||
अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् । | अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् । | ||
Line 17: | Line 17: | ||
([[Vanisource : BG 7.23|भ.गी ७.२३]]) | ([[Vanisource : BG 7.23|भ.गी ७.२३]]) | ||
वह लोग जो इन सब के पीछे है, भौतिक अल्पकालिक आनंद, अल्पमेधसाम, कृष्ण कहते है की उनमें बुद्धि कम है। किंतु पूरी दुनिया इन चीजों के पीछे है।" | वह लोग जो इन सब के पीछे है, भौतिक अल्पकालिक आनंद, ''अल्पमेधसाम'', कृष्ण कहते है की उनमें बुद्धि कम है। किंतु पूरी दुनिया इन चीजों के पीछे है।" | ||
|Vanisource:760323 - Lecture SB 07.09.43 - Calcutta|760323 - प्रवचन श्री.भा ०७.०९.४३ - कलकत्ता}} | |Vanisource:760323 - Lecture SB 07.09.43 - Calcutta|760323 - प्रवचन श्री.भा ०७.०९.४३ - कलकत्ता}} |
Revision as of 06:27, 5 July 2024
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी | |
"वैष्णव सारी पीड़ाओं को सहन कर सकता है। वह हर परिस्थिति में प्रसन्न रहता है। उसे कोई दुविधा नहीं होती। उसका कोई लक्ष्य नही होता कृष्ण की सेवा के अतिरिक्त। चैतन्य महाप्रभु कहते है,
न धनं न जनं न सुन्दरीं , कवितां वा जगदीश कामये। ([[Vanisource:CC Antya 20.29 |
चै.च अंत्य २०.२९, शिक्षाष्टकम ४]])
तो एक वैष्णव का ऐसा कोई लक्ष्य नही होता की "मेरे पास कई करोड़ या करोड़ों डॉलर्स होने चाहिये और एक बहुत सुंदर पत्नी होनी चाहिए।" न धनं, " और बहुत से अनुयाई। मुझे एक मंत्री, नेता, राजनीतिक बनना है।" यह लक्ष्य पूरी तरह से बर्खास्त करे गए है वैष्णव द्वारा। अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् । वह लोग जो इन सब के पीछे है, भौतिक अल्पकालिक आनंद, अल्पमेधसाम, कृष्ण कहते है की उनमें बुद्धि कम है। किंतु पूरी दुनिया इन चीजों के पीछे है।" |
760323 - प्रवचन श्री.भा ०७.०९.४३ - कलकत्ता |