HI/760325b - श्रील प्रभुपाद दिल्ली में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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सच्चिदानन्द विग्रहः | हम सनातन है। भगवान सनातन है इसीलिए हम भी सनातन है क्युकी हम भगवान के ही अंश है। जैसे भगवान सदैव आनंदमय रहते है, प्रसन्न, वैसे ही हमारा स्वभाव भी सदैव आनंदमय और प्रसन्न रहने का है। | ||
''सच्चिदानन्द विग्रहः'' | |||
([[Vanisource :Bs 5.2| ब्र.स ५.१]]) | ([[Vanisource :Bs 5.2| ब्र.स ५.१]]) | ||
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Revision as of 16:55, 5 July 2024
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यह मानव शरीर वापस हमारे घर लौटने के लिए है, वापस भगवान के पास जाने के लिए।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम। ( भ.गी १५.६) हम सनातन है। भगवान सनातन है इसीलिए हम भी सनातन है क्युकी हम भगवान के ही अंश है। जैसे भगवान सदैव आनंदमय रहते है, प्रसन्न, वैसे ही हमारा स्वभाव भी सदैव आनंदमय और प्रसन्न रहने का है। सच्चिदानन्द विग्रहः ( ब्र.स ५.१) सत्चितानंद। सत अर्थात सनातन और चित अर्थात आनंदमय...चित अर्थात ज्ञान से पूर्ण, आनंद, आनंद अर्थात आनंदमय। यह हमारा स्वभाव है। इसीलिए हम जीना चाहते है, हम मरने की चाह नही रखते।" |
760325 - प्रवचन भ.गी ०२.११ at Rotary Club - दिल्ली |