HI/760419b - श्रील प्रभुपाद मेलबोर्न में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"कृष्ण का रूप सत-चित्त-आनन्द है। ईश्वरः परमः कृष्णः सत-चित्त- आनन्द-विग्रहः (ब्र.स.५.१)। विग्रह का अर्थ है रूप। अतः सभी का रूप है। जीवों के ८,४००,००० रूप हैं। जल में ९००,००० रूप हैं। जलजा नव-लक्षाणि स्थावरा लक्ष-विंशति (पद्मपुराण)। पेड़ों, पौधों में २,००,००० रूप हैं। अतः भौतिक जगत में सैकड़ों और हजारों रूप हैं। लेकिन आध्यात्मिक जगत में रूप सत-चित्त-आनन्द रूप है। प्रत्येक रूप शाश्वत, ज्ञान से परिपूर्ण और परमानंद है। भौतिक दुनिया और आध्यात्मिक दुनिया के बीच यही अंतर है।"
760419 - प्रवचन भ. गी. ०९.०१ - मेलबोर्न