HI/760615b - श्रील प्रभुपाद डेट्रॉइट में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"कृष्ण ने सलाह दी है कि ये भौतिक सुख और दुख, ये इस शरीर के कारण हैं। ये आते हैं और चले जाते हैं। ये ठहरते नहीं हैं। जब तक हम इस भौतिक संसार में हैं, ये सुख और दुख आते-जाते रहेंगे। जैसे ऋतु परिवर्तन: ये ठहरते नहीं। ये आते हैं और फिर चले जाते हैं। इसलिए हमें विचलित नहीं होना चाहिए। (एक तरफ:) अगर तुम खड़े रहना चाहते हो, तो खड़े रह सकते हो। ये आते हैं और चले जाते हैं। हमें विचलित नहीं होना चाहिए। हमारा असली "कृष्ण ने सलाह दी है कि ये भौतिक सुख और दुख, ये इस शरीर के कारण हैं। ये आते हैं और चले जाते हैं। ये ठहरते नहीं हैं। जब तक हम इस भौतिक संसार में हैं, ये सुख और दुख आते-जाते रहेंगे। जैसे ऋतु परिवर्तन: ये ठहरते नहीं। ये आते हैं और फिर चले जाते हैं। इसलिए हमें विचलित नहीं होना चाहिए। (एक तरफ:) अगर तुम खड़े रहना चाहते हो, तो खड़े रह सकते हो। ये आते हैं और चले जाते हैं। हमें विचलित नहीं होना चाहिए। हमारा असली काम"कृष्ण ने सलाह दी है कि ये भौतिक सुख और दुख, ये इस शरीर के कारण हैं। ये आते हैं और चले जाते हैं। ये ठहरते नहीं हैं। जब तक हम इस भौतिक संसार में हैं, ये सुख और दुख आते-जाते रहेंगे। जैसे ऋतु परिवर्तन: ये ठहरते नहीं। ये आते हैं और फिर चले जाते हैं। इसलिए हमें विचलित नहीं होना चाहिए। (एक तरफ:) अगर तुम खड़े रहना चाहते हो, तो खड़े रह सकते हो। ये आते हैं और चले जाते हैं। हमें विचलित नहीं होना चाहिए। हमारा असली कार्य है खुद को महसूस करना, आत्म-साक्षात्कार करना। ये चलते रहना चाहिए। इसे रुकना नहीं चाहिए। यही मानव जीवन है।"
760615 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.४९ - डेट्रॉइट