HI/680930 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सिएटल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९६८ Category:HI/अम...") |
(No difference)
|
Revision as of 05:32, 19 December 2017
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"हमारा कार्य प्रेम और भक्ति के साथ गोविंदा को पुंजना है, मुख्य व्यक्तिI गोविंदम आदि-पुरूषंI यह कृष्ण चेतना हैI
हम लोगों को कृष्ण से प्रेम करने को सिखा रहे है, बस येहिI हमारा कार्य प्रेम करना, और अपने प्रेम को उचित स्थान पर रखना हैI यह हमारा कार्य हैI हर कोई प्यार करना चाहता है, लेकिन वह निराश हो रहे है क्युकि वे अपने प्रेम को उचित स्थान पर नहि लगा रहे हैI लोग इसे नहीं समझतेI उन्हे यह सिखाये जा रहा है कि ,सबसे पेह्ले तुम अपने शरिर से प्रेम करो I फिर थोड़ा विस्तारित मे, आप अपने पिता और मां को प्यार करो I फिर "अपने भाई और बहन को प्यार"I फिर ‘अपने समाज को प्यार करें, ‘अपने देश को प्यार करें’, पूरे मानव समाज को प्यार करें, मानवता को । लेकिन यह सब विस्तारित प्रेम, तथाकथित प्रेम, आपको संतुष्टि नहीं देंगे जब तक आप कृष्ण को प्यार करने के इस बिंदु तक नहीं पहुंचतेI तब ही आप संतुष्ट होंगे। " |
680930 - Lecture - Seattle |