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==परम्परा के उपदेशों का वितरण==
==परम्परा के उपदेशों का वितरण==


'''1486''' चैतन्य महाप्रभु का विश्व को कृष्णभावनामृत में शिक्षित करने के लिए प्रकट होना - ५३३ वर्ष पूर्व
'''१४८६''' चैतन्य महाप्रभु का विश्व को कृष्णभावनामृत में शिक्षित करने के लिए प्रकट होना - ५३३ वर्ष पूर्व


'''1488''' सनातन गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना - ५३१ वर्ष पूर्व
'''१४८८''' सनातन गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना - ५३१ वर्ष पूर्व


'''1489''' रूप गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना - ५३० वर्ष पूर्व
'''१४८९''' रूप गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना - ५३० वर्ष पूर्व


'''1495''' रघुनाथ गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – ५२४ वर्ष पूर्व
'''१४९५''' रघुनाथ गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – ५२४ वर्ष पूर्व


'''1500''' यांत्रिक छपाई मशीनों का पूरे यूरोप में किताबों के वितरण में क्रांति लाना - ५२० वर्ष पूर्व
'''१५००''' यांत्रिक छपाई मशीनों का पूरे यूरोप में किताबों के वितरण में क्रांति लाना - ५२० वर्ष पूर्व


'''1513''' जीवा गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – ५०६ वर्ष पूर्व
'''१५१३''' जीवा गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – ५०६ वर्ष पूर्व


'''1834''' भक्तिविनोद ठाकुर का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – १८५ वर्ष पूर्व
'''१८३४''' भक्तिविनोद ठाकुर का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – १८५ वर्ष पूर्व


'''1874''' भक्तिसिद्धांत सरस्वती का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – १४५ वर्ष पूर्व
'''१८७४''' भक्तिसिद्धांत सरस्वती का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – १४५ वर्ष पूर्व


'''1896''' श्रीला प्रभुपाद का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – १२३ वर्ष पूर्व
'''१८९६''' श्रीला प्रभुपाद का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – १२३ वर्ष पूर्व


'''1914''' भक्तिसिद्धांत सरस्वती ने "भृहत-मृदंगा" वाक्यांश का उल्लेख किया – १०५ वर्ष पूर्व
'''१९१४''' भक्तिसिद्धांत सरस्वती ने "भृहत-मृदंगा" वाक्यांश का उल्लेख किया – १०५ वर्ष पूर्व


'''1922''' श्रीला प्रभुपाद पहली बार भक्तिसिद्धांत सरस्वती से मिले और उनसे तुरंत अंग्रेजी भाषा में उपदेश देने का अनुरोध किया - ९७ वर्ष पूर्व
'''१९२२''' श्रीला प्रभुपाद पहली बार भक्तिसिद्धांत सरस्वती से मिले और उनसे तुरंत अंग्रेजी भाषा में उपदेश देने का अनुरोध किया - ९७ वर्ष पूर्व


'''1935''' श्रीला प्रभुपाद को किताबें छापने का निर्देश मिला – ८४ वर्ष पूर्व
'''१९३५''' श्रीला प्रभुपाद को किताबें छापने का निर्देश मिला – ८४ वर्ष पूर्व


'''1944''' श्रीला प्रभुपाद ने बैक टू गॉडहेड पत्रिका शुरू की – ७५ वर्ष पूर्व
'''१९४४''' श्रीला प्रभुपाद ने बैक टू गॉडहेड पत्रिका शुरू की – ७५ वर्ष पूर्व


'''1956''' श्रीला प्रभुपाद ने वृंदावन में किताबें लिखनी प्रारम्भ करि – ६३ वर्ष पूर्व
'''१९५६''' श्रीला प्रभुपाद ने वृंदावन में किताबें लिखनी प्रारम्भ करि – ६३ वर्ष पूर्व


'''1962''' श्रीला प्रभुपाद ने श्रीमद-भागवतम का पहला खंड प्रकाशित किया – ५७ वर्ष पूर्व
'''१९६२''' श्रीला प्रभुपाद ने श्रीमद-भागवतम का पहला खंड प्रकाशित किया – ५७ वर्ष पूर्व


'''1965''' श्रीला प्रभुपाद अपनी पुस्तकें वितरित करने के लिए पाश्चात्य देश में आये – ५४ वर्ष पूर्व
'''१९६५''' श्रीला प्रभुपाद अपनी पुस्तकें वितरित करने के लिए पाश्चात्य देश में आये – ५४ वर्ष पूर्व


'''1968''' श्रीला प्रभुपाद ने भगवद-गीता यथारूप का संक्षिप्त संस्करण प्रकाशित किया – ५२ वर्ष पूर्व
'''१९६८''' श्रीला प्रभुपाद ने भगवद-गीता यथारूप का संक्षिप्त संस्करण प्रकाशित किया – ५२ वर्ष पूर्व


'''1972''' श्रीला प्रभुपाद भगवद-गीता यथारूप का पूर्ण संस्करण प्रकाशित किया – ४७ वर्ष पूर्व
'''१९७२''' श्रीला प्रभुपाद भगवद-गीता यथारूप का पूर्ण संस्करण प्रकाशित किया – ४७ वर्ष पूर्व


'''1972''' श्रीला प्रभुपाद ने अपनी पुस्तकों को प्रकाशित करने के लिए बीबीटी की स्थापना की – ४७ वर्ष पूर्व
'''१९७२''' श्रीला प्रभुपाद ने अपनी पुस्तकों को प्रकाशित करने के लिए बीबीटी की स्थापना की – ४७ वर्ष पूर्व


'''1974''' श्रीला प्रभुपाद के शिष्यों ने किताबों का गंभीर वितरण शुरू किया – ४५ वर्ष पूर्व
'''१९७४''' श्रीला प्रभुपाद के शिष्यों ने किताबों का गंभीर वितरण शुरू किया – ४५ वर्ष पूर्व


'''1975''' श्रीला प्रभुपाद ने श्रीचैतन्य-चरितामृत को पूरा किया – ४४ वर्ष पूर्व
'''१९७५''' श्रीला प्रभुपाद ने श्रीचैतन्य-चरितामृत को पूरा किया – ४४ वर्ष पूर्व


'''1977''' '''श्रीला प्रभुपाद ने बोलना बंद कर दिया और अपनी वाणी हमारी देखभाल में छोड़ दी – ४२ वर्ष पूर्व'''
'''१९७७''' '''श्रीला प्रभुपाद ने बोलना बंद कर दिया और अपनी वाणी हमारी देखभाल में छोड़ दी – ४२ वर्ष पूर्व'''


'''1978''' भक्तिवेदांत अभिलेखागार की स्थापना की गई – ४१ वर्ष पूर्व
'''1978''' भक्तिवेदांत अभिलेखागार की स्थापना की गई – ४१ वर्ष पूर्व


'''1986''' दुनिया की डिजिटल रूप से संग्रहित सामग्री की मात्रा १ सीडी-रोम प्रति व्यक्ति थी – ३३ वर्ष पूर्व
'''१९८६''' दुनिया की डिजिटल रूप से संग्रहित सामग्री की मात्रा १ सीडी-रोम प्रति व्यक्ति थी – ३३ वर्ष पूर्व


'''1991''' द वर्ल्ड वाइड वेब (भृहत-भृहत-भृहत-मृदंगा) की स्थापना की गई – २८ वर्ष पूर्व
'''१९९१''' द वर्ल्ड वाइड वेब (भृहत-भृहत-भृहत-मृदंगा) की स्थापना की गई – २८ वर्ष पूर्व


'''1992''' द भक्तिवेदांत वेदबेस संस्करण 1.0 बनाया गया – २७ वर्ष पूर्व
'''१९९२''' द भक्तिवेदांत वेदबेस संस्करण 1.0 बनाया गया – २७ वर्ष पूर्व


'''2002''' डिजिटल युग आ गया - दुनिया भर में डिजिटल स्टोरेज एनालॉग से आगे निकल गया – १७ वर्ष पूर्व
'''२००२''' डिजिटल युग आ गया - दुनिया भर में डिजिटल स्टोरेज एनालॉग से आगे निकल गया – १७ वर्ष पूर्व


'''2007''' दुनिया की डिजिटली संग्रहित सामग्री की मात्रा प्रति व्यक्ति ६१ सीडी-रोम हो गई – १२ वर्ष पूर्व, कुल मिलाकर ४२७ अरब सीडी-रोम
'''२००७''' दुनिया की डिजिटली संग्रहित सामग्री की मात्रा प्रति व्यक्ति ६१ सीडी-रोम हो गई – १२ वर्ष पूर्व, कुल मिलाकर ४२७ अरब सीडी-रोम


'''2007''' श्रीला प्रभुपाद वाणी-मंदिर, वाणिपीडिया का वेब में निर्माण शुरू होता है – १२ वर्ष पूर्व
'''२००७''' श्रीला प्रभुपाद वाणी-मंदिर, वाणिपीडिया का वेब में निर्माण शुरू होता है – १२ वर्ष पूर्व


'''2010''' श्रीला प्रभुपाद वापू-मंदिर, वैदिक तारामंडल मंदिर का निर्माण कार्य श्रीधाम मायापुर में शुरू होता है – ९ वर्ष पूर्व
'''२०१०''' श्रीला प्रभुपाद वापू-मंदिर, वैदिक तारामंडल मंदिर का निर्माण कार्य श्रीधाम मायापुर में शुरू होता है – ९ वर्ष पूर्व


'''2012''' वाणिपीडिया १,९०६,७५३ उद्धरण, १,०८,९७१ पृष्ठ और १३,९४६ श्रेणियों तक पहुँचता है – ७ वर्ष पूर्व
'''२०१२''' वाणिपीडिया १,९०६,७५३ उद्धरण, १,०८,९७१ पृष्ठ और १३,९४६ श्रेणियों तक पहुँचता है – ७ वर्ष पूर्व


'''2013''' श्रीला प्रभुपाद की ५००,०००,००० पुस्तकों का  इस्कॉन भक्तों द्वारा ४८ वर्षों में वितरण - मतलब हर एक दिन में औसतन २८,५३८ पुस्तकें - 6 वर्ष पूर्व
'''२०१३''' श्रीला प्रभुपाद की ५००,०००,००० पुस्तकों का  इस्कॉन भक्तों द्वारा ४८ वर्षों में वितरण - मतलब हर एक दिन में औसतन २८,५३८ पुस्तकें - वर्ष पूर्व


'''2019''' २१ मार्च, गौरा पूर्णिमा के दिन, सुबह के ७.१५ मध्य यूरोपीय समय में, वाणिपीडिया भक्तों को आमंत्रित करने के लिए और श्रीला प्रभुपाद की वाणी-उपस्थिति को पूरी तरह से प्रकट और अभिव्यक्त करने के लिए एक साथ सहयोग मांगनें के ११ वर्ष मनाता है। वाणिपीडिया अब ४५,५८८ श्रेणियां, २,८२,२९७ पृष्ठ, २,१००,००० प्लस उद्धरण को ९३ भाषाओं में प्रस्तुत करती है। यह १,२२० से अधिक भक्तों द्वारा पूर्ण किया गया है, जिन्होंने २,९५,००० घंटो से अधिक वाणी-सेवा का प्रदर्शन किया है। हमें श्रीला प्रभुपाद के वाणी-मंदिर को पूरा करने के लिए अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है, इसलिए हम इस शानदार मिशन में भाग लेने के लिए भक्तों को आमंत्रित करते रहते हैं।
'''२०१९''' २१ मार्च, गौरा पूर्णिमा के दिन, सुबह के ७.१५ मध्य यूरोपीय समय में, वाणिपीडिया भक्तों को आमंत्रित करने के लिए और श्रीला प्रभुपाद की वाणी-उपस्थिति को पूरी तरह से प्रकट और अभिव्यक्त करने के लिए एक साथ सहयोग मांगनें के ११ वर्ष मनाता है। वाणिपीडिया अब ४५,५८८ श्रेणियां, २,८२,२९७ पृष्ठ, २,१००,००० प्लस उद्धरण को ९३ भाषाओं में प्रस्तुत करती है। यह १,२२० से अधिक भक्तों द्वारा पूर्ण किया गया है, जिन्होंने २,९५,००० घंटो से अधिक वाणी-सेवा का प्रदर्शन किया है। हमें श्रीला प्रभुपाद के वाणी-मंदिर को पूरा करने के लिए अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है, इसलिए हम इस शानदार मिशन में भाग लेने के लिए भक्तों को आमंत्रित करते रहते हैं।


===Comment===
===टिप्पणी===


The unfolding of the mission of Sri Caitanya Mahaprabhu under the banner of the modern day Krishna consciousness movement is a very exciting time to be performing devotional service.
आधुनिक काल में कृष्णभावनामृत आंदोलन के बैनर तले श्री चैतन्य महाप्रभु के मिशन का खुलना, हमारे भक्ति-सेवा प्रयासों के अभ्यास के लिए एक बहुत ही रोमांचक समय है।


'''Srila Prabhupada, the Founder-acarya of the International Society of Krishna Consciousness has brought onto the world scene a life-changing phenomenon in the form of his Translations, Bhaktivedanta Purports, Lectures, Conversations, and Letters. Here lies the key to the respiritualization of the whole human society.'''
'''इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ कृष्णा कॉन्शियसनेस यानी की अंतराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ के संस्थापक-आचार्य श्रीला प्रभुपाद ने अपने अनुवादों, भक्तिवेदांत अभिप्रायों, व्याख्यान, संभाषण, और पत्रों से जीवन-परिवर्तन घटना का दुनिया को साक्षात्कार कराया है। इसी के अन्दर संपूर्ण मानव समाज के पुनः अध्यात्मीकरण की कुंजी है।'''


==Vani, Personal Association and Service in Separation - ''Quotes''==
==वाणी, व्यक्तिगत संघ और वियोग में सेवा - ''उद्धरण''==


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*<big>''My Guru Maharaja passed in 1936, and I started this movement in 1965, thirty years after. Then? I am getting the mercy of guru. This is Vani. Even the guru is not physically present, if you follow the Vani, then you are getting help.''</big> [[Vanisource:750721 - Morning Walk - San Francisco|'''– Srila Prabhupada Morning-walk Conversation, 21 July 1975''']]
*<big>''मेरे गुरु महाराज का १९३६ में निधन हो गया और मैंने तीस साल बाद १९६५ में इस आंदोलन की शुरुआत की। फिर? मुझे गुरु की दया प्राप्त हो रही है। यह वाणी है। यहां तक कि गुरु शारीरिक रूप से मौजूद नहीं है, लेकिन अगर आप वाणी का अनुसरण करते हैं, तो आपको मदद मिलेगी।''</big> [[Vanisource:750721 - Morning Walk - San Francisco|'''– श्रीला प्रभुपाद के सुबह की सैर का संवाद, २१ जुलाई १९७५''']]




*<big>''In the absence of physical presentation of the Spiritual Master the Vaniseva is more important. My Spiritual Master, Sarasvati Gosvami Thakura, may appear to be physically not present, but still because I try to serve His instruction I never feel separated from Him. I expect that all of you should follow these instructions.''</big> [[Vanisource:700822 - Letter to Karandhara written from Tokyo|'''– Srila Prabhupada Letter to Karandhara das (GBC), 22 August 1970''']]
*<big>''आध्यात्मिक गुरु की भौतिक प्रस्तुति के अभाव में वाणी-सेवा अधिक महत्वपूर्ण है। मेरे आध्यात्मिक गुरु, सरस्वती गोस्वामी ठाकुर, शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं हो सकते हैं, लेकिन फिर भी क्योंकि मैं उनकी शिक्षा की सेवा करने की कोशिश करता हूं, मैं उनसे वियोग महसूस नहीं करता। मुझे उम्मीद है कि आप सभी इन निर्देशों का पालन करेंगें।''</big> [[Vanisource:700822 - Letter to Karandhara written from Tokyo|'''– श्रीला प्रभुपाद का करंधरा दास (जीबीसी) को पत्र, २२ अगस्त १९७०''']]




*<big>''From the very beginning I was strongly against the impersonalists and all my books are stressed on this point. So my oral instruction as well as my books are all at your service. Now you GBC consult them and get clear and strong idea, then there will be no disturbance. Disturbance is caused by ignorance; where there is no ignorance, there is no disturbance.''</big> [[Vanisource:700914 - Letter to Hayagriva written from Calcutta|'''– Srila Prabhupada Letter to Hayagriva das (GBC), 22 August 1970''']]
*<big>''शुरू से ही, मैं अवैयक्तिकतावादियों के सख्त खिलाफ था और मेरी सभी पुस्तकें इस बात पर बल देती हैं। इसलिए मेरी मौखिक शिक्षा, साथ ही मेरी किताबें, दोनों आपकी सेवा में हैं। अब आप जीबीसी अगर मेरी किताबों से सलाह लेते हैं और स्पष्ट और मजबूत विचार प्राप्त करते हैं, तो कोई गड़बड़ी नहीं होगी। अशांति अज्ञानता के कारण होती है; जहां अज्ञानता नहीं है, वहां कोई अशांति नहीं है।''</big> [[Vanisource:700914 - Letter to Hayagriva written from Calcutta|'''– श्रीला प्रभुपाद का हयाग्रीव दास (जीबीसी) को पत्र, २२ अगस्त १९७०''']]




*<big>''So far personal association with the Guru is concerned, I was only with my Guru Maharaja four or five times, but I have never left his association, not even for a moment. Because I am following his instructions, I have never felt any separation.''</big> '''[[Vanisource:720220 - Letter to Satadhanya written from Calcutta|– Srila Prabhupada Letter to Satyadhanya das, 20 February 1972''']]
*<big>''जहाँ तक गुरु के साथ व्यक्तिगत संबंध का सवाल है, मैं केवल चार-पांच बार अपने गुरु महाराज के साथ था, लेकिन मैंने कभी भी उनका साथ नहीं छोड़ा, एक पल के लिए भी नहीं। क्योंकि मैं उनके निर्देशों का पालन कर रहा हूं, इसलिए मैंने कभी कोई वियोग महसूस नहीं किया।''</big> '''[[Vanisource:720220 - Letter to Satadhanya written from Calcutta|– श्रीला प्रभुपाद का सत्यधन्य दास को पत्र, २० फरवरी १९७२''']]




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*<big>''I shall remain your personal guidance, physically present or not physically, as I am getting personal guidance from my Guru Maharaja.''</big> [[Vanisource:770714 - Conversation B - Vrndavana|'''– Srila Prabhupada Room Conversation, 14 July 1977''']]
*<big>''शारीरिक रूप से उपस्थित रहूं या नहीं, मैं आपका व्यक्तिगत मार्गदर्शन सदैव बना रहूंगा, क्योंकि मुझे अपने गुरु महाराज से व्यक्तिगत मार्गदर्शन मिल रहा है।''</big> [[Vanisource:770714 - Conversation B - Vrndavana|'''– श्रीला प्रभुपाद कक्ष वार्तालाप, १४ जुलाई १९७७''']]




*<big>''Please be happy in separation. I am separated from my Guru Maharaja since 1936 but I am always with him so long I work according to his direction. So we should all work together for satisfying Lord Krishna and in that way the feelings of separation will transform into transcendental bliss.''</big> [[Vanisource:680503 - Letter to Uddhava written from Boston|'''– Srila Prabhupada Letter to Uddhava das (ISKCON Press), 3 May 1968''']]
*<big>''कृपया वियोग में खुश रहें। मैं १९३६ से अपने गुरु महाराज के वियोग में जी रहा हूँ लेकिन मैं हमेशा उनके साथ हूँ जबतक मैं उनके निर्देशानुसार  काम कर रहा हूं। इसलिए हम सभी को भगवान कृष्ण को संतुष्ट करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए और इस तरह से वियोग की भावनाएं पारलौकिक आनंद में बदल जाएंगी।''</big> [[Vanisource:680503 - Letter to Uddhava written from Boston|'''– श्रीला प्रभुपाद का उद्धव दास (इस्कॉन प्रेस) को पत्र, ३ मई १९६८''']]


===Comment===
===टिप्पणी===


Srila Prabhupada offers many revealing truths in this series of statements.
श्रीला प्रभुपाद के बयानों की इस श्रृंखला में कई चौकाने वाले सच प्रस्तुत किए हैं।


*Srila Prabhupada's personal guidance is always here.
*श्रीला प्रभुपाद का व्यक्तिगत मार्गदर्शन हमेशा यहाँ है।
*We should be happy in feelings of separation from Srila Prabhupada.
*श्रीला प्रभुपाद से वियोग की भावनाओं में हमें खुश होना चाहिए।
*In Srila Prabhupada's physical absence his Vaniseva is more important.
*श्रीला प्रभुपाद की शारीरिक अनुपस्थिति में उनकी वाणी-सेवा अधिक महत्वपूर्ण है।
*Srila Prabhupada had very little personal association with his Guru Maharaja.
*श्रीला प्रभुपाद का अपने गुरु महाराजा के साथ बहुत कम व्यक्तिगत जुड़ाव था।
*Srila Prabhupada's oral instruction, as well as his books, are all at our service.
*श्रीला प्रभुपाद के मौखिक निर्देश, साथ ही उनकी पुस्तकें, हमारी सेवा में हैं।
*Feelings of separation from Srila Prabhupada transform into transcendental bliss.
*श्रीला प्रभुपाद से वियोग की भावनाएँ पारलौकिक आनंद में बदल जाती हैं।
*When Srila Prabhupada is not physically present, if we follow his Vani, we get his help.
*जब श्रीला प्रभुपाद शारीरिक रूप से मौजूद नहीं हैं, अगर हम उनकी वाणी का अनुसरण करते हैं, तो हमें उनकी सहायता मिलती है।
*Srila Prabhupada never left Bhaktisiddhanta Sarasvati's association, not even for a moment.
*श्रीला प्रभुपाद ने कभी भी भक्तिसिद्धांत सरस्वती का साथ नहीं छोड़ा, एक पल के लिए भी नहीं।
*By consulting Srila Prabhupada's oral instructions and his books we get clear and strong ideas.
*श्रीला प्रभुपाद के मौखिक निर्देशों और उनकी पुस्तकों से परामर्श करके हमें स्पष्ट और मजबूत विचार मिलते हैं।
*By following Srila Prabhupada's instructions we will ''never feel'' separated (disconnected) from him.
*श्रीला प्रभुपाद के निर्देशों का पालन करते हुए हम उनसे कभी अलग नहीं होंगे।
*Srila Prabhupada expects all his followers to follow these instructions in order to become empowered siksa-disciples of him.
*श्रीला प्रभुपाद ने अपने सभी अनुयायियों से अपेक्षा की कि वे इन निर्देशों का पालन करें ताकि हम उनके शशक्त शिक्षा-शिष्य बन सकें।


==Using Media to Spread Krishna's Message==
==कृष्णा के संदेश को फैलाने के लिए मीडिया का उपयोग करना==


*<big>''So go on with your organization for distribution of my books through press and other modern-media and Krishna will certainly be pleased upon you. We can use everything – television, radio, movies, or whatever there may be – to tell about Krishna.''</big> [[Vanisource:701124 - Letter to Bhagavan written from Bombay|'''– Srila Prabhupada Letter to Bhagavan das (GBC), 24 November 1970''']]
*<big>''तो प्रेस और अन्य आधुनिक मीडिया के माध्यम से मेरी पुस्तकों के वितरण के लिए अपने संगठन के साथ चलें और श्री कृष्ण निश्चित रूप से आप पर प्रसन्न होंगे। हम कृष्णा के बारे में बताने के लिए हर चीज - टेलीविजन, रेडियो, फिल्में, या जो कुछ भी हो सकता है, उसका उपयोग कर सकते हैं। ''</big> [[Vanisource:701124 - Letter to Bhagavan written from Bombay|'''– श्रीला प्रभुपाद का भगवान दास (जीबीसी) को पत्र, २४ नवंबर १९७०''']]




*<big>''The mass-media can become such an important instrument in spreading our Krishna consciousness movement and I am glad to see that you are endeavoring to explore how this can be done.''</big>  [[Vanisource:710109 - Letter to Nayanabhirama written from Calcutta|'''– Srila Prabhupada Letter to Nayanabhirama das (TP), 9 January 1971''']]
*<big>''जन-मीडिया हमारे कृष्णभावनामृत आंदोलन को फैलाने में इतना महत्वपूर्ण साधन बन सकता है और मुझे यह देखकर खुशी हुई कि आप यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि यह कैसे किया जा सकता है।''</big>  [[Vanisource:710109 - Letter to Nayanabhirama written from Calcutta|'''– श्रीला प्रभुपाद का नयनाभिराम दास (टीपी) को पत्र, ९ जनवरी १९७१''']]




*<big>''I am very encouraged by the reports of the tremendous success of your TV and radio programs. As much as possible try to increase our preaching programs by using all the mass media which are available. We are modern day Vaishnavas and we must preach vigorously using all the means available.''</big> [[Vanisource:711230 - Letter to Rupanuga written from Bombay|'''– Srila Prabhupada Letter to Rupanuga das (GBC), 30 December 1971''']]
*<big>''आपके टीवी और रेडियो कार्यक्रमों की जबरदस्त सफलता की रिपोर्ट से मुझे बहुत प्रोत्साहन मिला है। जितना संभव हो सभी प्रचार माध्यमों का उपयोग करके हमारे प्रचार कार्यक्रमों को बढ़ाने का प्रयास करें। हम आधुनिक काल के वैष्णव हैं और हमें उपलब्ध सभी साधनों का उपयोग करते हुए जोरदार प्रचार करना चाहिए।''</big> [[Vanisource:711230 - Letter to Rupanuga written from Bombay|'''– श्रीला प्रभुपाद का रूपानुगा दास (जीबीसी) को पत्र, ३० दिसंबर १९७१''']]




*<big>''If you are able to arrange everything so that I can simply sit in my room and be seen by the world and speak to the world, then I shall never leave Los Angeles. That will be the perfection of your L.A. Temple. I am very, very encouraged by your proposal to flood the medias of your country with our Krishna Consciousness program, and see that it is practically taking shape under your hands, so I am all the more pleased.''</big> '''[[Vanisource:720216 - Letter to Siddhesvara and Krsnakanti written from Calcutta| '''- Srila Prabhupada Letter to Siddhesvar das and Krishnakanti das, 16 February 1972]]
*<big>''यदि आप सब कुछ व्यवस्थित करने में सक्षम हैं, ताकि मैं बस अपने कमरे में बैठकर दुनिया को देख सकूं और दुनिया से बात कर सकूं, तो मैं लॉस एंजिल्स को कभी नहीं छोड़ूंगा। यह आपके लॉस एंजिल्स मंदिर की पूर्णता होगी। मैं आपके कृष्णभावनामृत कार्यक्रम से आपके देश की मीडिया को भर देने के आपके प्रस्ताव से बहुत प्रोत्साहित हूं, और यह देखता हूं कि यह व्यावहारिक रूप से आपके हाथों में आकार ले रहा है, इसलिए मैं और अधिक प्रसन्न हूं।''</big> '''[[Vanisource:720216 - Letter to Siddhesvara and Krsnakanti written from Calcutta| '''- श्रीला प्रभुपाद का सिद्देश्वर दास और कृष्णकांती दास को पत्र, १६ फरवरी १९७२]]




*<big>''You should try and get these TV personalities to show our books and advertise them over the air. This will be the real success of our endeavors with the media.''</big>  '''[[Vanisource:730221 - Letter to Mukunda written from Auckland| '''- Srila Prabhupada Letter to Mukunda das, 21 February 1973]]
*<big>''आपको हमारी पुस्तकों को दिखाने और उन्हें टीवी में विज्ञापित करने के लिए इन टीवी हस्तियों की मदद लेनी चाहिए। यह मीडिया के साथ हमारे प्रयासों की वास्तविक सफलता होगी।''</big>  '''[[Vanisource:730221 - Letter to Mukunda written from Auckland| '''- श्रीला प्रभुपाद का मुकुंद दास को पत्र, २१ फरवरी १९७३]]




*<big>''His Divine Grace was very pleased to hear your proposal for systematically amassing a subject by subject encyclopedic compilation of all of Srila Prabhupada's teachings and instructions as found in his books.''</big> [[Vanisource:Preface to Sri Namamrta|'''– Letter from Srila Prabhupada's Secretary to Subhananda das, 7 June 1977''']]
*<big>''श्रीला प्रभुपाद की पुस्तकों में पाए जाने वाले सभी शिक्षाओं और निर्देशों को व्यवस्थित रूप से एक विषय द्वारा विश्वकोशीय तरीके से संकलित करने के इस प्रस्ताव से हिज डीवाइन ग्रेस भक्तिवेदांत स्वामी श्रीला प्रभुपाद बहुत प्रसन्न हुए हैं।''</big> [[Vanisource:Preface to Sri Namamrta|'''– श्रीला प्रभुपाद के सचिव का सुभानंद दास को पत्र, ७ जून १९७७''']]


===Comment===
===टिप्पणी===
Following in the footsteps of his Guru Maharaja Srila Prabhupada knew the art of engaging everything for Krishna's service.
अपने गुरु महाराज के नक्शेकदम पर चलते हुए, श्रीला प्रभुपाद भगवान श्रीकृष्ण की सेवा में हर चीज़ को संलग्नित कर लेने की कला जानते थे।


*Srila Prabhupada wants to be seen by the world and speak to the world.
*श्रीला प्रभुपाद चाहते हैं की दुनिया उन्हें देखे और वह दुनिया से बात करना चाहते हैं।
*Srila Prabhupada desires to flood the media with our Krishna Consciousness programs.
*श्रीला प्रभुपाद हमारे कृष्णभावनामृत कार्यक्रमों से मीडिया को भर देने की इच्छा रखते हैं।
*Srila Prabhupada wants his books distributed through the press and other modern-media.
*श्रीला प्रभुपाद चाहते हैं कि उनकी पुस्तकें प्रेस और अन्य आधुनिक-मीडिया के माध्यम से वितरित हों।
*Srila Prabhupada was happy to hear about the plan for a subject by subject encyclopedia of his teachings.
*श्रीला प्रभुपाद अपनी शिक्षाओं को व्यवस्थित रूप से एक विषय द्वारा विश्वकोशीय तरीके से संकलित करने की योजना के बारे में सुनकर खुश थे।
*Srila Prabhupada says we should increase our preaching programs by using all the mass media that is available.
*श्रीला प्रभुपाद का कहना है कि हमें अपने उपदेश कार्यक्रमों को उन सभी जन माध्यमों के उपयोग से बढ़ाना चाहिए जो उपलब्ध हैं।
*Srila Prabhupada says we are modern day Vaishnavas and we must preach vigorously using all the means available.
*श्रीला प्रभुपाद कहते हैं कि हम आधुनिक काल के वैष्णव हैं और हमें उपलब्ध सभी साधनों का उत्साह सहित इस्तेमाल करके प्रचार करना चाहिए।
*Srila Prabhupada says we can use everything – television, radio, movies, or whatever there may be – to tell about Krishna.
*श्रीला प्रभुपाद कहते हैं कि हम हर चीज का उपयोग कर सकते हैं - टेलीविजन, रेडियो, फिल्में, या जो कुछ भी हो सकता है - श्रीकृष्ण के बारे में बताने के लिए।
*Srila Prabhupada says that the mass-media can become such an important instrument in spreading our Krishna consciousness movement.
*श्रीला प्रभुपाद कहते हैं कि जन-मीडिया हमारे कृष्णभावनामृत आंदोलन को फैलाने में इतना महत्वपूर्ण साधन बन सकता है।


===Modern-media, modern opportunities===
===आधुनिक-मीडिया, आधुनिक अवसर===


For Srila Prabhupada, in the 1970's, the terms modern-media and mass-media meant the printing press, radio, TV and movies. Since his departure, the landscape of mass media has dramatically transformed to include Android phones, cloud computing and storage, e-book readers, e-commerce, interactive TV and gaming, online publishing, podcasts and RSS feeds, social networking sites, streaming media services, touch-screen technologies, web-based communications & distribution services and wireless technologies.
श्रीला प्रभुपाद के लिए, १९७० के दशक में, आधुनिक-मीडिया और मास-मीडिया का मतलब प्रिंटिंग प्रेस, रेडियो, टीवी और फिल्मों से था। उनके जाने के बाद से, मास मीडिया का परिदृश्य नाटकीय रूप परिवर्तित हो गया और इसमें ये साड़ी आधुनिक तकनीकियां शामिल हो गयीं - एंड्रॉइड फोन, क्लाउड कंप्यूटिंग और स्टोरेज, -बुक रीडर, -कॉमर्स, इंटरैक्टिव टीवी और गेमिंग, ऑनलाइन प्रकाशन, पॉडकास्ट और आरएसएस फीड, सोशल नेटवर्किंग साइट्स, स्ट्रीमिंग मीडिया, टच स्क्रीन प्रोद्योगिकाएँ, वेब आधारित संचार और वितरण सेवाएं और वायरलेस प्रोद्योगिकाएँ। 


In line with Srila Prabhupada's example we are, since 2007, using modern mass media technologies to compile, index, categorize and distribute Srila Prabhupada's Vani.    
श्रीला प्रभुपाद के उदाहरण के अनुरूप, हम २००७ से, श्रील प्रभुपाद की वाणी को संकलित, अनुक्रमणित, वर्गीकृत और वितरित करने के लिए आधुनिक जन मीडिया तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं।    


*Vanipedia's aim is to increase the visibility and accessibility of Srila Prabhupada's teachings on the web by offering a free, authentic, one-stop resource for
*वाणिपीडिया का उद्देश्य निम्नलिखित लोगों के लिए एक स्वतंत्र, प्रामाणिक, एक-उपाय संसाधन की पेशकश करके वेब पर श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं की दृश्यता और पहुंच को बढ़ाना है:
:• इस्कॉन के प्रचारक
:• इस्कॉन के नेता और प्रबंधक
:• भक्त पाठ्यक्रम का अध्ययन करने वाले भक्त
:• अपने ज्ञान को गहरा करने के इच्छुक भक्त
:• अंतर-विश्वास संवादों में शामिल भक्त
:• पाठ्यक्रम डेवलपर्स
:• श्रीला प्रभुपाद से वियोग महसूस कर रहे भक्त
:• कार्यकारी नेता
:• विद्वान / शिक्षाविद
:• शिक्षक और धार्मिक शिक्षा के छात्र
:• लेखक
:• अध्यात्म के खोजकर्ता
:• वर्तमान सामाजिक मुद्दों के बारे में चिंतित लोग
:• इतिहासकार


:• ISKCON preachers
===टिपण्णी===
:• ISKCON leaders and managers
:• devotees studying devotional courses
:• devotees wishing to deepen their knowledge
:• devotees involved in inter-faith dialogues
:• curriculum developers
:• devotees feeling separation from Srila Prabhupada
:• executive leaders
:• academics
:• teachers and students of religious education
:• writers
:• searchers of spirituality
:• people concerned about current social issues
:• historians


===Comment===
आज भी श्रीला प्रभुपाद के उपदेशों को विश्व में सुलभता से उपलब्ध कराने और प्रमुख बनाने के लिए और भी कुछ किया जाना बाकी है। सहयोगी वेब प्रौद्योगिकियां हमें अपनी पिछली सभी सफलताओं को पार करने का अवसर प्रदान करती हैं।


There is still more to be done to make Srila Prabhupada's teachings accessible and prominent in the world today. Collaborative web technologies provide us the opportunity to surpass all our previous successes.
==वाणी-सेवा - श्रीला प्रभुपाद की वाणी की सेवा का पवित्र कार्य==


==Vaniseva  – the Sacred Act of Serving Srila Prabhupada's Vani==
श्रीला प्रभुपाद ने १४ नवंबर, १९७७ को बोलना बंद कर दिया, लेकिन उनकी वाणी ने जो हमें दिया वह हमेशा ताजा बना रहा। हालाँकि, ये उपदेश अभी तक अपनी प्राचीन स्थिति में नहीं हैं, और ना ही ये सभी आसानी से अपने भक्तों के लिए उपलब्ध हैं। श्रीला प्रभुपाद के अनुयायियों का पवित्र कर्तव्य है कि वे श्रीला प्रभुपाद की वाणी को सभी तक पहुंचाएं। इसलिए हम आपको इस वाणी-सेवा को करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।


Srila Prabhupada stopped speaking on the 14th of November, 1977, but the Vani he gave us remains ever fresh. However, these teachings are not yet in their pristine condition, nor are all of them readily accessible to his devotees. Srila Prabhupada's followers have a sacred duty to preserve and to distribute his Vani to everyone. We are therefore inviting you to perform this vaniseva.
<big>''हमेशा याद रखें कि आप उन कुछ पुरुषों में से एक हैं जिन्हें मैंने दुनिया भर में अपने काम और आपके मिशन को आगे बढ़ाने के लिए नियुक्त किया है। इसलिए, श्रीकृष्ण से हमेशा प्रार्थना करें कि मैं जो कर रहा हूं, उसे करके इस मिशन को पूरा करने के लिए शक्ति प्रदान करें। मेरा पहला कर्त्तव्य भक्तों को उचित ज्ञान देना और उन्हें भक्ति सेवा में संलग्न करना है, इसलिए यह आपके लिए बहुत मुश्किल काम नहीं है, मैंने आपको सब कुछ दिया है, इसलिए किताबों से पढ़ें और उसीसे उदाहरण दें और बात करें तब ज्ञान का बड़ा प्रकाश होगा। हमारे पास बहुत सारी किताबें हैं, इसलिए यदि हम अगले १,००० वर्षों तक उनसे प्रचार करते रहें, तो यह पर्याप्त भण्डार है।''</big> [[Vanisource:720616 - Letter to Satsvarupa written from Los Angeles|'''– श्रीला प्रभुपाद का सत्स्वरुप दास (जीबीसी) को पत्र, १६ जून १९७२''']]


<big>''Always remember that you are one of the few men I have appointed to carry on my work throughout the world and your mission before you is huge. Therefore, always pray to Krishna to give you strength for accomplishing this mission by doing what I am doing. My first business is to give the devotees the proper knowledge and engage them in devotional service, so that is not very difficult task for you, I have given you everything, so read and speak from the books and so many new lights will come out. We have got so many books, so if we go on preaching from them for the next 1,000 years, there is enough stock.''</big> [[Vanisource:720616 - Letter to Satsvarupa written from Los Angeles|'''– Srila Prabhupada Letter to Satsvarupa das (GBC), 16 June 1972''']]
१९७२ के जून में, श्रीला प्रभुपाद ने कहा कि '''"हमारे पास इतनी सारी किताबें हैं"''' कि '''"अगले १,००० वर्षों"''' तक प्रचार करने के लिए '''"पर्याप्त भण्डार है"।''' उस समय, केवल १० शीर्षक छपे थे, इसलिए जुलाई १९७२ से नवंबर १९७७ तक श्रीला प्रभुपाद द्वारा प्रकाशित सभी अतिरिक्त पुस्तकों के साथ, भण्डार के वर्षों की संख्या को आसानी से ५,००० तक बढ़ाया जा सकता था। यदि हम श्रीला प्रभुपाद के मौखिक निर्देशों और पत्रों को इसमें जोड़ते हैं, तो भंडार १०,००० साल तक फैल जाता है। हमें इन सभी शिक्षाओं को निपुणता से तैयार करने और उचित रूप से समझने के लिए तैयार करने की आवश्यकता है ताकि उसको इस पूरी अवधि के लिए '''"प्रचार के कार्य में इस्तेमाल"''' किया जा सके।


In June of 1972 Srila Prabhupada said that '''"we have got so many books"''' that we have '''"enough stock"''' to preach from for the '''"next 1,000 years."'''  At that time, only 10 titles had been printed, so with all the extra books that Srila Prabhupada published from July 1972 to November 1977 the number of years of stock could easily be expanded to 5,000. If we add to this his oral instructions and letters, then the stock expands to 10,000 years. We need to expertly prepare all these teachings to be accessed and properly understood so that they can be '''"preached from"''' for this whole period of time.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि श्रीला प्रभुपाद में भगवान चैतन्य महाप्रभु के संदेश का प्रचार करने का अपार उत्साह और दृढ़ संकल्प है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका वापु स्वरुप हमें छोड़कर चला गया है। वह अपनी शिक्षाओं में रहतें हैं। शारीरिक रूप से मौजूदगी के बदले, डिजिटल मंच के माध्यम से वह अब और अधिक व्यापक रूप से प्रचार कर सकेंगें। भगवान चैतन्य की दया पर पूरी निर्भरता के साथ, आइए हम श्रीला प्रभुपाद के वाणी-मिशन को स्वीकार करें, और पहले से कहीं अधिक संकल्प के साथ, उनकी वाणी को १०,००० वर्षों के उपदेश के लिए तैयार करें।


There is no doubt that Srila Prabhupada has unending enthusiasm and determination to preach the message of Lord Caitanya Mahaprabhu. It does not matter that his vapu has left us. He remains in his teachings, and via the digital platform, he can now preach even more widely than when he was physically present. With complete dependence on Lord Caitanya's mercy, let us embrace Srila Prabhupada's vani-mission, and with more resolve than ever before, expertly prepare his Vani for 10,000 years of preaching.
<big>''पिछले दस वर्षों में, मैंने रूपरेखा दी है और अब हम ब्रिटिश साम्राज्य से अधिक हो गए हैं। यहां तक कि ब्रिटिश साम्राज्य भी हमारे लिए उतना व्यापक नहीं था। उनके पास दुनिया का केवल एक हिस्सा था, और अभी हमने विस्तार पूरा नहीं किया है। हमें अधिक से अधिक असीमित रूप से विस्तार करना चाहिए। लेकिन मुझे अब आपको याद दिलाना होगा कि मुझे श्रीमद-भागवतम का अनुवाद पूरा करना है। यह सबसे बड़ा योगदान है; हमारी पुस्तकों ने हमें एक सम्मानजनक स्थान दिया है। लोगों को इस चर्च या मंदिर की पूजा में कोई विश्वास नहीं है। वो दिन चले गए। बेशक, हमें मंदिरों को बनाए रखना होगा क्योंकि हमारी आत्माओं को उच्च रखना आवश्यक है। बस बौद्धिकता नहीं चलेगी, व्यावहारिक शुद्धि होनी चाहिए।''


<big>''Over the past ten years I have given the framework and now we have become more than the British Empire. Even the British Empire was not as expansive as we. They had only a portion of the world, and we have not completed expanding. We must expand more and more unlimitedly. But I must now remind you that I have to complete the translation of the Srimad-Bhagavatam. This is the greatest contribution; our books have given us a respectable position. People have no faith in this church or temple worship. Those days are gone. Of course, we have to maintain the temples as it is necessary to keep our spirits high. Simply intellectualism will not do, there must be practical purification.''  
''इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि आप मुझे प्रबंधन की जिम्मेदारियों से अधिक से अधिक राहत दें ताकि मैं श्रीमद-भागवतम का अनुवाद पूरा कर सकूं। अगर मुझे हमेशा प्रबंधन करना है, तो मैं पुस्तकों पर अपना काम नहीं कर सकता। यह प्रलेखित है, मुझे प्रत्येक शब्द को बहुत ही गंभीरता से चुनना है और अगर मुझे प्रबंधन के बारे में सोचना है तो मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं इन बदमाशों की तरह नहीं हो सकता, जो जनता को धोखा देने के लिए मानसिक रूप से कुछ भी पेश करते हैं। इसलिए यह कार्य मेरे नियुक्त सहायकों, जीबीसी, मंदिर अध्यक्षों और संन्यासियों के सहयोग के बिना पूरा नहीं होगा। मैंने अपने सर्वश्रेष्ठ पुरुषों को जीबीसी चुना है और मैं नहीं चाहता कि जीबीसी मंदिर के राष्ट्रपतियों के प्रति अपमानजनक हो। आप स्वाभाविक रूप से मुझसे परामर्श कर सकते हैं, लेकिन अगर मूल सिद्धांत कमजोर है, तो चीजें कैसे चलेंगी? इसलिए कृपया मुझे प्रबंधन में सहायता करें ताकि मैं श्रीमद-भागवतम को समाप्त करने के लिए स्वतंत्र हो सकूं जो दुनिया के लिए हमारा स्थायी योगदान होगा।''</big> [[Vanisource:760519 - Letter to All Governing Board Commissioners written from Honolulu|'''– श्रीला प्रभुपाद का संचालक मंडल (जीबीसी - गवर्निंग बॉडी कमिशन) के सभी आयुक्तों को पत्र, १९ मई १९७६''']]


''So I request you to relieve me of management responsibilities more and more so that I can complete the Srimad-Bhagavatam translation. If I am always having to manage, then I cannot do my work on the books. It is document, I have to choose each word very soberly and if I have to think of management then I cannot do this. I cannot be like these rascals who present something mental concoction to cheat the public. So this task will not be finished without the cooperation of my appointed assistants, the GBC, temple presidents, and sannyasis. I have chosen my best men to be GBC and I do not want that the GBC should be disrespectful to the temple presidents. You can naturally consult me, but if the basic principle is weak, how will things go on? So please assist me in the management so that I can be free to finish the Srimad-Bhagavatam which will be our lasting contribution to the world.''</big> [[Vanisource:760519 - Letter to All Governing Board Commissioners written from Honolulu|'''– Srila Prabhupada Letter to All Governing Body Commissioners, 19 May 1976''']]
यहाँ श्रीला प्रभुपाद यह कह रहे हैं कि '''"यह कार्य मेरे नियुक्त सहायकों के सहयोग के बिना समाप्त नहीं होगा"''', ताकि '''"वे दुनिया में हमारे स्थायी योगदान"''' के लिए मदद कर सकें। यह श्रीला प्रभुपाद की पुस्तकें हैं जिन्होंने '''"हमें एक सम्मानजनक स्थान दिया है"''' और '''"वे दुनिया के लिए सबसे बड़ा योगदान हैं"'''


Here Srila Prabhupada is stating '''"this task will not be finished without the cooperation of my appointed assistants"''' to help him make '''"our lasting contribution to the world."''' It is Srila Prabhupada's books that have '''"given us a respectable position"''' and they are '''"the greatest contribution to the world."'''
वर्षों से, बीबीटी के भक्तों, पुस्तक वितरकों, उपदेशकों द्वारा बहुत अधिक वाणी-सेवा की गई है, जिन्होंने श्रीला प्रभुपाद के शब्दों को दृढ़ता से धारण किया है, और अन्य भक्तों द्वारा जो वाणी को एक या दूसरे तरीके से वितरित करने और संरक्षित करने के लिए समर्पित हैं। लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। भृहत-भृहत-भृहत मृदंगा (वर्ल्ड वाइड वेब) की प्रौद्योगिकियों के माध्यम से एक साथ काम करके, अब हमारे पास बहुत कम समय में श्रीला प्रभुपाद की वाणी की एक अद्वितीय अभिव्यक्ति बनाने का अवसर है। हमारा प्रस्ताव है की हम सब वाणी-सेवा में एक साथ आएं और ४ नवंबर २०२७ तक पूरा होने वाले एक वाणी-मंदिर का निर्माण करें, जिस समय हम सभी अंतिम पचासवीं (५० वीं) वर्षगांठ मनाएंगे। वियोग में श्रीला प्रभुपाद की सेवा के ५० वर्ष। यह श्रीला प्रभुपाद के लिए प्यार की एक बहुत ही उपयुक्त और सुंदर भेंट होगी, और उनके भक्तों की आने वाली सभी पीढ़ियों के लिए एक शानदार उपहार होगा।


Over the years, so much vaniseva has been performed by BBT devotees, book distributors, preachers who have held firmly to Srila Prabhupada's words, and by other devotees who have been dedicated to distribute and preserve his Vani in one way or another. But there is still much more to do.  By working together via the technologies of the brhat-brhat-brhat mrdanga (the World Wide Web) we now have an opportunity to build an unparalleled manifestation of Srila Prabhupada's Vani in a very short period of time. Our proposal is to come together in vaniseva and build a Vani-temple to be completed by November 4th, 2027, at which time we will all be celebrating the final 50th anniversary. 50 years of serving Srila Prabhupada in separation. This will be a very appropriate and beautiful offering of love to Srila Prabhupada, and a glorious gift to all the future generations of his devotees.
<big>''मुझे खुशी है कि आपने अपने प्रिंटिंग प्रेस का नाम राधा प्रेस रखा है। यह बहुत संतुष्टिदायक है। आपकी राधा प्रेस को जर्मन भाषा में हमारी सभी पुस्तकों और साहित्य को प्रकाशित करने में समृद्ध होना चाहिए। बहुत अच्छा नाम है। राधारानी श्रीकृष्ण की सबसे अच्छी, सबसे बड़ी सेवादार हैं, और श्रीकृष्ण की सेवा के लिए प्रिंटिंग मशीन वर्तमान समय में सबसे बड़ा माध्यम है। इसलिए, यह वास्तव में श्रीमति राधारानी की प्रतिनिधि है। मुझे यह विचार बहुत पसंद है।''</big> [[Vanisource:690704 - Letter to Jayagovinda written from Los Angeles|'''– श्रीला प्रभुपाद का जया गोविंदा दास (पुस्तक उत्पादन प्रबंधक) को पत्र, ४ जुलाई १९६९''']]


<big>''I am glad that you have named your printing press the Radha Press. It is very gratifying. May your Radha Press be enriched in publishing all our books and literatures in the German language. It is a very nice name. Radharani is the best, topmost servitor of Krishna, and the printing machine is the biggest medium at the present moment for serving Krishna. Therefore, it is really a representative of Srimati Radharani. I like the idea very much.''</big> [[Vanisource:690704 - Letter to Jayagovinda written from Los Angeles|'''– Srila Prabhupada Letter to Jaya Govinda das (Book production manager), 4 July 1969''']]
२० वीं शताब्दी के बचे हुए हिस्से के लिए, प्रिंटिंग प्रेस ने इतने सारे लोगों के द्वारा सफल प्रचार करने के लिए उपकरण प्रदान किए। श्रीला प्रभुपाद ने कहा कि कम्युनिस्ट लोग भारत में अपने द्वारा वितरित किए गए पर्चे और पुस्तकों के माध्यम से भारत में अपना प्रभाव फैलाने में बहुत माहिर थे। श्रीला प्रभुपाद ने इस उदाहरण का उपयोग कर यह व्यक्त किया कि किस तरह वे अपनी पुस्तकों को दुनिया भर में वितरित करके कृष्णभावनामृत के लिए एक बड़ा प्रचार कार्यक्रम बनाना चाहते हैं।


For the better part of the 20th century, the printing press provided the tools for successful propaganda from so many groups of people. Srila Prabhupada stated how expert the communists were to spread their influence in India via the pamphlets and books they distributed. Srila Prabhupada used this example to express how he wanted to make a large propaganda program for Krishna consciousness by distributing his books all over the world.
अब, २१ वीं सदी में, श्रीला प्रभुपाद का कथन '''"श्रीकृष्ण की सेवा के लिए वर्तमान समय में सबसे बड़ा माध्यम है"''', निस्संदेह यह इंटरनेट प्रकाशन और वितरण की घातीय और अद्वितीय शक्ति पर लागू किया जा सकता है। वाणीपीडिया में, हम इस आधुनिक जन वितरण मंच पर उचित प्रतिनिधित्व के लिए श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं को तैयार कर रहे हैं। श्रील प्रभुपाद ने कहा कि जर्मनी में उनके भक्तों का राधा प्रेस '''"वास्तव में श्रीमति राधारानी का प्रतिनिधि था"'''। इसलिए हम निश्चित हैं कि वह वाणीपीडिया को भी श्रीमति राधारानी का प्रतिनिधि मानेंगे।


Now, in the 21st century, Srila Prabhupada's statement '''"the biggest medium at the present moment for serving Krishna"''' can undoubtedly be applied to the exponential and unparalleled power of internet publishing and distribution. In Vanipedia, we are preparing Srila Prabhupada's teachings for proper representation on this modern mass distribution platform. Srila Prabhupada stated that the Radha Press of his devotees in Germany was '''"really a representative of Srimati Radharani."''' We are therefore certain that he would consider Vanipedia to be a representative of Srimati Radharani as well.
इतने सारे सुंदर वापु-मंदिर पहले ही इस्कॉन भक्तों द्वारा बनाए गए हैं - आइए अब हम कम से कम एक शानदार वाणी-मंदिर का निर्माण करें। वापु-मंदिर भगवान के रूपों का पवित्र दर्शन प्रदान करते हैं, और एक वाणी-मंदिर भगवान और उनके शुद्ध भक्तों की शिक्षाओं का पवित्र दर्शन प्रदान करता है, जैसा कि श्रीला प्रभुपाद द्वारा उनकी किताबों में प्रस्तुत किया गया है। इस्कॉन भक्तों का काम स्वाभाविक रूप से अधिक सफल होगा जब श्रीला प्रभुपाद के उपदेश उनके सही, पूजनीय पद में स्थित होंगे। अब उनके सभी वर्तमान '''"नियुक्त सहायकों"''' के लिए उनके वाणी-मंदिर के निर्माण कार्य में और उनके वाणी-मिशन को अपनाने में और उनके पूरे आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित करने का यह एक सुनहरा और शानदार अवसर है।


So many beautiful Vapu-temples have already been built by ISKCON devotees – let us now build at least one glorious Vani-temple. The Vapu-temples offer sacred darshans to the forms of the Lord, and a Vani-temple will offer the sacred darshan to the teachings of the Lord and His pure devotees, as presented by Srila Prabhupada. The work of ISKCON devotees will naturally be more successful when Srila Prabhupada's teachings are situated in their rightful, worshipable position. Now there is a wonderful opportunity for all his current '''"appointed assistants"''' to embrace the vani-mission of building his Vani-temple and to inspire the whole movement to participate.
'''जिस प्रकार श्रीधाम मायापुर में गंगा के तट से उठने वाले विशाल और सुंदर वापु-मंदिर को भगवान चैतन्य की दया को पूरे विश्व में फैलाने के कार्य में मदद करने के लिए नियत किया जाता है, उसी प्रकार श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं का एक वाणी-मंदिर भी अपने इस्कॉन मिशन को मजबूत कर सभी ओर फैलाने में नियत होगा और दुनिया भर में आने वाले हजारों वर्षों के लिए श्रीला प्रभुपाद का स्वाभाविक पद भी स्थापित होगा।'''


'''Just as the enormous and beautiful Vapu-temple rising from the banks of the Ganges in Sridham Mayapur is destined to help spread Lord Caitanya's mercy all over the world, so too can a Vani-temple of Srila Prabhupada's teachings strengthen his ISKCON mission to spread all over the world and establish Srila Prabhupada's natural position for thousands of years to come.'''
===वाणी-सेवा - वास्तविक कार्यो से सहयोग देना और सेवा करना===


===Vaniseva – Taking Practical Action to Serve===
*वाणिपीडिया को पूरा करने का मतलब है कि श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं को संकलित करके ऐसे प्रस्तुत करना जो की किसी भी आध्यात्मिक शिक्षक के कार्यों के लिए आज तक नहीं किया गया है। हम सभी को इस पवित्र मिशन में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं। हम सब मिलकर दुनिया को श्रीला प्रभुपाद का संभवता वेब के माध्यम से एक अनूठा प्रदर्शन देंगे।


*Completing Vanipedia means Srila Prabhupada's teachings will be presented in a way that no one has ever done for the works of any spiritual teacher. We invite everyone to take part in this sacred mission. Together we will give Srila Prabhupada a unique exposure to the world on a magnitude only possible via the web.
*हमारी इच्छा वाणिपीडिया को श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं का कई भाषाओं में नंबर १ संदर्भ विश्वकोश बनाने की है। यह केवल ईमानदार प्रतिबद्धता, बलिदान और कई भक्तों के समर्थन के साथ होगा। आजतक, १,२२० से अधिक भक्तों ने वाणी-सोर्स और वाणी-कोट्स और ९३ भाषाओं में अनुवाद के निर्माण में भाग लिया है। अब वनीकोट्स को पूरा करने और वाणिपीडिया के लेखों का निर्माण करने हेतु, तथा वाणी-बुक्स ,वाणी-मीडिया, और वाणी-वर्सिटी पाठ्यक्रमों में हमें निम्नलिखित कौशल वाले भक्तों से अधिक समर्थन की आवश्यकता है:


*Our desire is to make Vanipedia the No.1 reference encyclopedia of Srila Prabhupada's teachings in multiple languages. This will only happen with the sincere commitment, sacrifice, and support of many devotees. To date, over 1,220 devotees have participated in building Vanisource and Vaniquotes and translations in 93 languages. Now in order to complete Vaniquotes and build the Vanipedia articles, the Vanibooks, the Vanimedia, and the Vaniversity courses we need more support from devotees with the following skills:
:• शासन प्रबंध
:• संकलन
:• पाठ्यक्रम परिवर्द्धन
:• डिजाइन और लेआउट
:• वित्त
:• प्रबंधन
:• प्रचार
:• शोध
:• सर्वर रखरखाव
:• साइट का विकास
:• सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग
:• शिक्षण
:• तकनीकी संपादन
:• प्रशिक्षण
:• अनुवाद
:• लेखन


:• Administration
*वाणी-सेवक अपने घरों, मंदिरों और कार्यालयों से अपनी सेवा प्रदान करते हैं, या वे श्रीधाम मायापुर या राधादेश में कुछ समय के लिए हमारे साथ रह सकते हैं।
:• Compiling
:• Curriculum Development
:• Design and Layout
:• Finance
:• Management
:• Promotion
:• Researching
:• Server Maintenance
:• Site Development
:• Software Programming
:• Teaching
:• Technical Editing
:• Training
:• Translating
:• Writing


*Vaniservants offer their service from their homes, temples, and offices, or they can join us full-time for certain periods in Sridham Mayapur or Radhadesh.
===दान===


===Donating===
*पिछले १२ वर्षों से, वाणिपीडिया को मुख्य रूप से भक्तिवेदांत लाइब्रेरी सर्विसेज (बीएलएस) के पुस्तक वितरण द्वारा वित्तपोषित किया गया है। अपने निर्माण को जारी रखने के लिए, वाणिपीडिया को बीएलएस की वर्तमान क्षमता से परे धन की आवश्यकता है। एक बार पूरा हो जाने के बाद, वाणिपीडिया को कई संतुष्ट आगंतुकों के प्रतिशत भाग से छोटे दान से उम्मीद होगी। लेकिन अभी के लिए, इस मुफ्त विश्वकोश के निर्माण के प्रारंभिक चरणों को पूरा करने के लिए, वित्तीय सहायता की पेशकश महत्वपूर्ण है।


*For the past 12 years Vanipedia has been primarily financed by the book distribution from Bhaktivedanta Library Services a.s.b.l. To continue its construction, Vanipedia needs funding beyond the current capacity of BLS. Once completed, Vanipedia will hopefully be sustained by small donations from a percentage of many satisfied visitors. But for now, in order to complete the initial phases of building this free encyclopedia, the service of offering financial support is crucial.
*वाणीपीडिया के समर्थक निम्नलिखित विकल्पों में से एक का चयन कर सकते हैं


*Supporters of Vanipedia can choose from one of the following options
'''प्रायोजक:''' कोई भी व्यक्ति '''अपनी इच्छा अनुसार''' धनराशि का दान कर सकता है।


'''Sponsor:''' A person donating '''any amount they desire'''
'''सहायक संरक्षक:''' एक व्यक्ति या कानूनी संस्था जो कम से कम '''८१ यूरो''' का दान करे।


'''Supporting Patron:''' An individual person or legal entity donating at least '''81 euros'''
'''स्थायी संरक्षक:''' एक व्यक्ति या कानूनी संस्था जो ९० यूरो के ९ मासिक भुगतान करने की संभावना के साथ कम से कम '''८१० यूरो''' का दान करे।


'''Sustaining Patron:''' An individual person or legal entity donating at least '''810 euros''' with the possibility to make 9 monthly payments of 90 euros
'''वृद्धि संरक्षक:''' एक व्यक्ति या कानूनी संस्था जो ९०० यूरो के ९ वार्षिक भुगतान करने की संभावना के साथ '''८,१०० यूरो''' का दान करे।


'''Growth Patron:''' An individual person or legal entity donating '''8,100 euros''' with the possibility to make 9 yearly payments of 900 euros
'''बुनियादी संरक्षक:''' एक व्यक्ति या कानूनी संस्था जो ९,००० यूरो के वार्षिक भुगतान करने की संभावना के साथ '''८१,००० यूरो''' का दान करे।


'''Foundational Patron:''' An individual person or legal entity donating '''81,000 euros''' with the possibility to make 9 yearly payments of 9,000 euros
*दान [https://vanipedia.org/wiki/Special:IframePage '''ऑनलाइन'''] या हमारे पेपाल के खाते के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है जिसका शीर्षक [email protected] है। यदि आप दान करने से पहले कोई अन्य विधि पसंद करते हैं या अधिक प्रश्न पूछना चाहते हैं, तो हमें [email protected] पर ईमेल करें।


*Donations can be [https://vanipedia.org/wiki/Special:IframePage '''received online'''] or through our PayPal account titled [email protected]. If you prefer another method or have more queries before donating, then email us at [email protected]
==हम आभारी हैं - ''प्रार्थना''==


==We Are Grateful - ''Prayers''==
<big>हम आभारी हैं</big>


<big>We Are Grateful</big>
:धन्यवाद प्रभुपाद
:हमें आपकी सेवा करने का यह अवसर देने के लिए।
:हम आपको अपने मिशन में खुश करने की पूरी कोशिश करेंगे।
:आपकी शिक्षाएँ लाखों भाग्यशाली आत्माओं को आश्रय देती रहें।


:Thank you Srila Prabhupada
:for giving us this opportunity to serve you.
:We will do our best to please you in your mission.
:May your teachings give shelter to millions of fortunate souls.


:प्रिय श्रीला प्रभुपाद,
:कृपया हमें सशक्त करें
:सभी अच्छे गुणों और क्षमताओं के साथ
:और हमें लंबी अवधि के लिए प्रदान करते रहें
:गंभीर रूप से प्रतिबद्ध भक्त और संसाधन
:अपने गौरवशाली वाणी-मंदिर का सफलतापूर्वक निर्माण करने के लिए
:सभी के लाभ के लिए।


:Dear Srila Prabhupada,
:please empower us
:with all good qualities and abilities
:and continue to send us long term
:seriously committed devotees and resources
:to successfully build your glorious Vani-temple
:for the benefit of All.


:प्रिय श्री श्री पंच तत्वा,
:कृपया हमें श्री श्री राधा माधव के प्रिय भक्त बनने में मदद करें
:और श्रीला प्रभुपाद और हमारे गुरु महाराज के प्रिय शिष्य बनने में मदद करें
:कृपया हमें निरंतर श्रीला प्रभुपाद के इस मिशन में
:कड़ी और स्मार्ट मेहनत और अपने भक्तों की खुशी के लिए
:सुविधा प्रदान करें।


:Dear Sri Sri Panca Tattva,
इन प्रार्थनाओं को स्वीकार करने के लिए धन्यवाद
:please help us to become dear devotees of Sri Sri Radha Madhava
:and dear disciples of Srila Prabhupada and our Guru Maharaja
:by continuing to facilitate us to work hard and smart
:in the mission of Srila Prabhupada
:for the pleasure of his devotees.


Thank you for considering these prayers
===टिपण्णी===


===Comment===
केवल श्रीला प्रभुपाद, श्री श्री पंच तत्वा, और श्री श्री राधा माधव की सशक्त कृपा से ही हम कभी इस अत्यंत कठिन कार्य को समाप्त करने की आशा कर सकते हैं। इस प्रकार हम लगातार उनकी दया के लिए प्रार्थना करते हैं।
 
Only by the empowering grace of Srila Prabhupada, Sri Sri Panca Tattva, and Sri Sri Radha Madhava can we ever hope to achieve this herculean task. Thus we incessantly pray for Their mercy.
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Latest revision as of 17:46, 26 November 2019

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परिचय

श्रीला प्रभुपाद ने उनकी शिक्षाओं पर बहुत अधिक महत्व दिया, इस प्रकार वाणिपीडिया श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं के प्रति विशेष रूप से समर्पित है; जिसमें पुस्तकें, रिकॉर्ड किए गए व्याख्यान और वार्तालाप, पत्र आदि शामिल हैं। पूरा होने पर वाणिपीडिया दुनिया का प्रथम वाणी-मंदिर कहलायेगा। यह एक पवित्र स्थान होगा जहां प्रामाणिक आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त करने वाले लाखों श्रद्धालु श्रीला प्रभुपाद की शानदार शिक्षाओं से उत्तर और प्रेरणा ग्रहण करेंगे। जितना संभव हो सका है वाणिपीडिया को उतनी भाषाओं में एक विश्वकोश प्रारूप में प्रस्तुत किया गया है

वाणिपीडिया के लक्ष्यों का विवरण

  • सहयोग से श्रीला प्रभुपाद की बहुभाषी वाणी-उपस्थिति को आमंत्रित करना और पूरी तरह से प्रकट करना।
  • सहयोग से सैकड़ों लाखों लोगों को कृष्णभावनामृत के विज्ञान को जीने की सुविधा प्रदान करना।
  • और सहयोग से भगवान चैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आंदोलन के माध्यम से मानव समाज को फिर से आध्यात्मिक बनाने में मदद करना।

सहयोग के कार्य

वाणिपीडिया जैसा एकमात्र ज्ञानकोश का निर्माण करना केवल हजारों श्रद्धालुओं के सामूहिक सहयोगात्मक प्रयास द्वारा संभव है जो कि श्रीला प्रभुपाद के उपदेशों का परिश्रमपूर्वक संकलन और अनुवाद करते हैं।

हम कम से कम १६ भाषाओं में श्रीला प्रभुपाद की सभी पुस्तकों, व्याख्यानों, वार्तालापों और पत्रों के अनुवाद को पूरा करना चाहते हैं और उसके अतिरिक्त नवंबर २०२७ तक वाणिपीडिया को कम से कम १०८ भाषाओं के कुछ प्रतिनिधित्व स्तर तक पहुंचाना चाहते हैं।

अक्टूबर २०१७ तक पूर्ण बाइबिल को ६७० भाषाओं में अनुवादित किया गया है, न्यू टेस्टामेंट का १५२१ भाषाओं में अनुवाद किया गया है और बाइबल के भागों या कहानियों को ११२१ अन्य भाषाओं में अनुवादित किया गया है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं में पर्याप्त वृद्धि होने के दौरान हमारा उद्देश्य उन प्रयासों की तुलना में बिल्कुल भी महत्वाकांक्षी नहीं है, जो की ईसाई लोग अपनी शिक्षाओं को विश्व स्तर पर फैलाने के लिए कर रहे हैं।

हम सभी भक्तों को आमंत्रित करते हैं कि वे सभी मानवता के हित के लिए इंटरनेट तथा वेब पर श्रीला प्रभुपाद की बहुभाषी वाणी-उपस्थिति को प्रकट करने और बनाने के इस नेक प्रयास में शामिल हों।

आह्वान

१९६५ में श्रीला प्रभुपाद अमेरिका में बिन बुलाए पहुंचे। भले ही १९७७ में उनकी शानदार वापु उपस्थिति के दिन समाप्त हो गए हों, लेकिन वह अभी भी अपनी वाणी में उपस्थित हैं और यही उपस्थिति का अब हमें आह्वान करना चाहिए। वह हमारे समक्ष तभी उपस्थित रहेंगे जब हम उन्हें होने अंतरमन से पुकारेंगे और उनके प्रकट होने की भीख मांगेंगे। हमारे बीच उन्हें रखने की हमारी तीव्र इच्छा वह कुंजी है जिसके माध्यम से हम श्रीला प्रभुपाद का हमारे समक्ष प्राकट्यय संभव है।

पूर्ण अभिव्यक्ति

हम हमारे सामने श्रीला प्रभुपाद की आंशिक उपस्थिति नहीं चाहते हैं। हम उनकी पूर्ण वाणी-उपस्थिति चाहते हैं। उनके सभी रिकॉर्ड किए गए उपदेशों को पूरी तरह से संकलित किया जाना चाहिए और कई भाषाओं में अनुवादित किया जाना चाहिए। इस ग्रह के लोगों की भावी पीढ़ियों के लिए हमारी एकमात्र पेशकश है - श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं का पूर्ण आश्रय।

वाणी-उपस्थिति

श्रीला प्रभुपाद की पूर्ण वाणी-उपस्थिति दो चरणों में दिखाई देगी। पहला - और आसान चरण - सभी भाषाओं में श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं का संकलन और अनुवाद करना है। दूसरा - और अधिक कठिन चरण - सैकड़ों लोगों को पूरी तरह से उनकी शिक्षाओं के आश्रय लेने में सहयोग देना।

अध्ययन करने के विभिन्न तरीके

  • आज तक, हमारे शोध में, हमने पाया है कि श्रीला प्रभुपाद ने अपनी पुस्तकों को पढ़ने के लिए ६० अलग-अलग तरीके बताए हैं।
  • इन विभिन्न तरीकों से श्रीला प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन करके हम उन्हें ठीक से समझ और आत्मसात कर सकते हैं। अध्ययन की विषयगत कार्यप्रणाली का अनुसरण करके और फिर उन्हें संकलित करके आसानी से प्रत्येक शब्द, वाक्यांश, अवधारणा या व्यक्तित्व के अर्थों के गहरे महत्व में प्रवेश कर सकते हैं जो कि श्रीला प्रभुपाद प्रस्तुत कर रहे हैं। निःसंदेह उनकी शिक्षाएं हमारा जीवन और हमारी आत्मा हैं, और जब हम उनका अच्छी तरह से अध्ययन करते हैं तो हम कई प्रभावशाली तरीकों से श्रील प्रभुपाद की उपस्थिति को देख और अनुभव कर सकते हैं।

दस लाख आचार्य

  • मान लीजिए कि आपको अब दस हजार मिल गए हैं। हम सौ हजार तक विस्तार करेंगे। यह आवश्यक है। फिर सौ हज़ार से लाखों, और लाखों से दस लाख। तो आचार्य की कोई कमी नहीं होगी, और लोग कृष्णभावनामृत को बहुत आसानी से समझ पाएंगे। ऐसी संगठन का निर्माण करें। मिथ्या अभिमानी मत बनें। आचार्य के निर्देश का पालन करें और अपने आप को परिपूर्ण, परिपक्व बनाने का प्रयास करें। तब माया से लड़ना बहुत आसान हो जाएगा। हाँ। आचार्य, वे माया की गतिविधियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा करते हैं।

– श्रीचैतन्य-चरितामृत पर श्रील प्रभुपाद का व्याख्यान, ६ अप्रैल १९७५

टिप्पणी

श्रीला प्रभुपाद का यह दृष्टि कथन स्वयं के लिए बोलता है - लोगों के लिए कृष्णभावनामृत को आसानी से समझने की सही योजना। दस लाख सशक्त शिक्षा-शिष्यों ने विनम्रतापूर्वक हमारे संस्थापक-आचार्य श्रीला प्रभुपाद के निर्देशों को जीया है और हमेशा पूर्णता और परिपक्वता के लिए प्रयास किया है। श्रीला प्रभुपाद स्पष्ट रूप से कहते हैं कि "ऐसी संगठन का निर्माण करो"। इस दृष्टि को पूरा करने के लिए वाणिपीडिया उत्साहपूर्वक इस कार्य में संलग्न है।

कृष्णभावनामृत का विज्ञान

भगवद गीता के नौवें अध्याय में कृष्णभावनामृत के इस विज्ञान को सभी ज्ञानों का राजा, सभी गोपनीय चीजों का राजा और पारलौकिक बोध का सर्वोच्च विज्ञान कहा जाता है। कृष्णभावनामृत एक पारलौकिक विज्ञान है जो एक ईमानदार भक्त को प्रकट किया जा सकता है जो भगवान की सेवा करने के लिए तैयार है। कृष्णभावनामृत शुष्क तर्कों से या शैक्षणिक योग्यता से प्राप्त नहीं होती है। कृष्णभावनामृत एक विश्वास नहीं है, जैसे कि हिंदू, ईसाई, बौद्ध या इस्लाम धर्म, लेकिन यह एक विज्ञान है। यदि कोई श्रीला प्रभुपाद की पुस्तकों को ध्यान से पढ़ता है, तो उन्हें कृष्णभावनामृत के सर्वोच्च विज्ञान का एहसास होगा और सभी लोगों के वास्तविक कल्याणकारी लाभ हेतु समान रूप से कृष्णभावनामृत फैलाने के लिए अधिक प्रेरित भी होंगे।

भगवान चैतन्य का संकीर्तन आंदोलन

भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु संकीर्तन आंदोलन के जनक और उद्घाटनकर्ता हैं। जो व्यक्ति संकीर्तन आंदोलन के लिए, अपने जीवन, धन, बुद्धि तथा शब्दों को परे रखकर भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु की आराधना करता है, प्रभु ना केवल उसको पहचान जाते हैं बल्कि उसकी आराधना को अपने आशीर्वाद से संपन्न करते हैं। अन्य सभी को मूर्ख कहा जा सकता है, क्यूंकि उन सभी बलिदानों में से वह बलिदान सबसे यशस्वी है जिसमे व्यक्ति अपनी ऊर्जा का प्रयोग संकीर्तन आंदोलन के लिए करता है। संपूर्ण कृष्णभावनामृत आंदोलन, श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा उद्घाटन किए गए संकीर्तन आंदोलन के सिद्धांतों पर आधारित है। इसलिए जो संकीर्तन आंदोलन के माध्यम से ईश्वर के सर्वोच्च व्यक्तित्व को समझने की कोशिश करता है वह सब कुछ पूरी तरह से जान जाता है। वह सुमेधा हो जाता है, एक पर्याप्त बुद्धि वाला व्यक्ति।

मानव समाज का पुनः आध्यात्मिकरण

वर्तमान समय में मानव समाज, गुमनामी के अंधेरे में नहीं है। समाज ने पूरे विश्व में भौतिक सुख, शिक्षा और आर्थिक विकास के क्षेत्र में तेजी से प्रगति की है। लेकिन बड़े पैमाने पर सामाजिक निकाय में कहीं न कहीं एक झुंझलाहट है, और इसलिए कम महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी बड़े पैमाने पर झगड़े होते हैं। एक सुराग की जरूरत है, कि कैसे मानवता एक सामान्य कारण से जुड़कर शांति, मित्रता और समृद्धि में एक जुट हो जाए। श्रीमद-भागवतम इस जरूरत को पूरा करता है, क्योंकि यह संपूर्ण मानव समाज के पुन: आध्यात्मिकरण के लिए एक सांस्कृतिक प्रस्तुति है। सामान्य आबादी सामान्य रूप से आधुनिक राजनेताओं और लोगों के नेताओं के हाथों में उपकरण हैं। यदि केवल नेताओं का हृदय परिवर्तन होता है, तो निश्चित रूप से दुनिया के वातावरण में मौलिक परिवर्तन होगा। वास्तविक शिक्षा का उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार, आत्मा के आध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति होना चाहिए। सभी को दुनिया की सभी गतिविधियों को आध्यात्मिक बनाने में मदद करनी चाहिए। इस तरह की गतिविधियों से, प्रदर्शन करने वाले और प्रदिर्शित किए गए कार्य दोनों आध्यात्मिकता के साथ अधिभारित हो जाते हैं और प्रकृति की विधा को पार कर जाते हैं।

वाणीपीडिया का मिशन वक्तव्य

  • श्रीला प्रभुपाद को दुनिया की सभी भाषाओं में कृष्णभावनामृत के विज्ञान का प्रचार करने, शिक्षित करने और लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए एक निरंतर, विश्वव्यापी मंच प्रदान करना।
  • अन्वेषण करना, खोजना और व्यापक रूप से दृष्टि के कई कोणों से श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं को संकलित करना।
  • श्रीला प्रभुपाद की वाणी को आसानी से सुलभ और समझने योग्य तरीकों में प्रस्तुत करना।
  • श्रीला प्रभुपाद की वाणी पर आधारित कई सामयिक पुस्तकों के लेखन की सुविधा के लिए व्यापक विषयगत शोध का भंडार प्रदान करना।
  • श्रीला प्रभुपाद की वाणी में विभिन्न शैक्षिक पहलों के लिए पाठ्यक्रम संसाधन उपलब्ध कराना।
  • श्रीला प्रभुपाद के ईमानदार अनुयायियों के बीच उनके व्यक्तिगत मार्गदर्शन के लिए श्रीला प्रभुपाद की वाणी से परामर्श लेने की आवश्यकता की एक असमान समझ को जगाना, और सभी स्तरों पर श्रीला प्रभुपाद का प्रतिनिधित्व करने के लिए पर्याप्त रूप से उन्हें सीखाकर सक्षम बनाना।
  • विश्व स्तर पर सहयोग कराने के लिए सभी देशों से श्रीला प्रभुपाद के अनुयायियों को आकर्षित करना ताकि वह सब मिलकर ऊपर लिखे लक्ष्यों पर काम कर सकें।

वाणीपीडिया के निर्माण के लिए हमें क्या प्रेरित कर रहा है?

  • हम स्वीकार करते हैं की
  • श्रीला प्रभुपाद एक शुद्ध भक्त हैं, और वह सभी जीव आत्मायों को भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमपूर्ण भक्ति सेवा में संलग्न करने के लिए सीधे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा हि सशक्त किये गए हैं। यह सशक्तिकरण उनकी शिक्षाओं के भीतर पाए जाने वाले निरपेक्ष सत्य पर उनके अनूठे प्रदर्शन में सिद्ध होता है।
  • श्रीला प्रभुपाद की तुलना में आधुनिक समय में वैष्णव दर्शन का कोई बड़ा प्रतिपादक नहीं रहा है, और न ही कोई बड़ा सामाजिक आलोचक, जो इस समकालीन दुनिया को यथारूप समझा पाए।
  • श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाएँ भावी पीढ़ियों के उनके लाखों अनुयायियों के लिए प्राथमिक आश्रय होंगी।
  • श्रीला प्रभुपाद चाहते थे कि उनकी शिक्षाओं का व्यापक रूप से वितरण किया जाए और उनकी शिक्षाओं को ठीक से समझा जाए।
  • एक विषयगत दृष्टिकोण के माध्यम से श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं के भीतर पायी जाने वाली सच्चाइयों को समझने की प्रक्रिया बहुत बढ़ती है, और यह कि दृष्टि के हर कोण से उनकी शिक्षाओं का अन्वेषण करना, उसमे खोजबीन करना और उसे अच्छी तरह से संकलित करने का अपार मूल्य है।
  • श्रीला प्रभुपाद की सभी शिक्षाओं का किसी विशेष भाषा में अनुवाद करना श्रीला प्रभुपाद को उन जगहों पर अनंत काल तक निवास करने के लिए आमंत्रित करने के सामान है, जहाँ जहाँ उन भाषाओं को बोला जाता है।
  • अपनी शारीरिक अनुपस्थिति में, श्रीला प्रभुपाद को इस मिशन में उनकी सहायता करने के लिए कई वाणी-सेवको की आवश्यकता है।

इस प्रकार, हम श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं के भीतर पाए जाने वाले पूर्ण ज्ञान और वास्तविकताओं के व्यापक वितरण और उसकी उचित समझ की सुविधा के लिए वास्तव में एक गतिशील मंच बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, इसलिए उन पर खुशी से काम किया जा सकता है। यह बस इतना आसान है। वह एकमात्र चीज़ जो हमें वाणीपीडिया के पूर्ण समापन से रोक रही है वो है समय; और वह भक्तगण जो इस कार्य को पूर्ण करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, उनकी वाणी-सेवा के वो सारे बहुमूल्य पावन घंटे जो अभी देने शेष हैं।

मैं, आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं, मेरी विनम्र सेवा की सराहना करने के लिए, जिसे मैं अपने गुरु महाराज द्वारा दिए गए कर्तव्य के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूं। मैं अपने सभी शिष्यों से सहकारिता से काम करने का अनुरोध करता हूं और मुझे यकीन है कि हमारा मिशन बिना किसी संदेह के आगे बढ़ेगा। – श्रीला प्रभुपाद का तमाला कृष्णा दास (जी बी सी) को पत्र - १४ अगस्त, १९७१

श्रीला प्रभुपाद के तीन प्राकृतिक पद

श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं के चरण कमलों पर आश्रय की संस्कृति तभी महसूस की जा सकती है, जब श्रीला प्रभुपाद के ये तीन पद उनके सभी अनुयायियों के दिलों में जागृत हों।

श्रीला प्रभुपाद हमारे पूर्व-प्रतिष्ठित शिक्षा-गुरु हैं।

  • हम स्वीकार करते हैं कि श्रीला प्रभुपाद के सभी अनुयायी उनकी शिक्षाओं में उनकी उपस्थिति और आश्रय का अनुभव कर सकते हैं - दोनों व्यक्तिगत रूप से और एक-दूसरे के साथ चर्चा करते वक़्त भी।
  • हम अपने आप को शुद्ध करके श्रीला प्रभुपाद के साथ एक दृढ़ संबंध स्थापित करते हैं जिससे की हम उन्हें हमारे मार्गदर्शक विवेक के रूप में स्वीकार कर उनके साथ रहना सीखें।
  • हम श्रीला प्रभुपाद से वियोग महसूस कर रहे भक्तों को प्रोत्साहित करते हैं, ताकि वे श्रीला प्रभुपाद की उपस्थिति और उनकी वाणी के भीतर के एकांत की तलाश के लिए समय निकाल सकें।
  • हम श्रीला प्रभुपाद की करुणा को उनके सभी अनुयायियों के साथ साझा करते हैं, जिनमें उनकी पंक्ति में दीक्षा लेने वालों के साथ-साथ विभिन्न क्षमताओं में उनका अनुसरण करने वाले भी शामिल हैं।
  • श्रीला प्रभुपाद के हमारे पूर्व-प्रतिष्ठित सिक्सा-गुरू होने के सत्य से हम भक्तों को अवगत करातें हैं तथा उनके साथ हमारा वियोग में क्या रिश्ता है, इसकी भी जानकारी देतें हैं।
  • श्रीला प्रभुपाद की विरासत को आने वाली प्रत्येक पीढ़ी के हित में कायम रखने के लिए शिक्षा से शशक्त शिष्यों के अनुक्रमण को हम स्थापित करते हैं।

श्रीला प्रभुपाद इस्कॉन के संस्थापक-आचार्य हैं।

  • हम श्रीला प्रभुपाद की वाणी को प्राथमिक प्रेरक शक्ति के रूप में बढ़ावा देते हैं, जो इस्कॉन के सदस्यों को उनसे जोड़कर रखता है और उनको श्रीला प्रभुपाद के प्रति वफादार बनाये रखता है, और इस तरह से हम प्रेरित, उत्साहित और अपने आंदोलन को वह सब कुछ बनाने के लिए दृढ़ हैं जो वह चाहते थे - अब और भविष्य में भी।
  • हम "एक वाणी-संस्कृति" पर बल दें रहे हैं जो की श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं और उनकी उपदेशात्मक रणनीतियों पर केंद्रित वैष्णव-ब्राह्मणवादी मानकों के सतत विकास को सदः प्रोत्साहित करेगी।
  • हम भक्तों को श्रीला प्रभुपाद के इस्कॉन के संस्थापक-आचार्य होने के सत्य का तथा हमारी श्रीला प्रभुपाद और उनके आंदोलन के प्रति सेवाभाव के कर्त्तव्य का स्मरण करवातें हैं।

श्रीला प्रभुपाद विश्व के आचार्य हैं।

  • हम हर देश में सभी क्षेत्रों में उनकी शिक्षाओं की समकालीन प्रासंगिकता स्थापित करके श्रीला प्रभुपाद के आध्यात्मिक कद के महत्व के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाते हैं।
  • हम श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं के लिए प्रशंसा और सम्मान की संस्कृति को प्रेरित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दुनिया की आबादी द्वारा कृष्णभावनामृत की प्रथाओं में सक्रिय भागीदारी होती है।
  • हमें इस बात का अहसास है कि श्रीला प्रभुपाद ने एक घर बनाया है जिसकी नींव और छत दोनों उन्हीं की वाणी हैं। उनकी वाणी का आश्रय लेकर यह घर सुरक्षित है और पूरी दुनिया एक साथ इस घर में निवास कर सकती है।

श्रीला प्रभुपाद के प्राकृतिक पद को स्थापित करना महत्वपूर्ण है।

  • हमारे इस्कॉन समाज को श्रीला प्रभुपाद के प्राकृतिक पद को उनके अनुयायियों के साथ और उनके आंदोलन के भीतर सुगम बनाने और उसका परिपोषण करने के लिए शैक्षिक पहल, राजनीतिक निर्देशों और सामाजिक संस्कृति की आवश्यकता है। यह स्वचालित रूप से या इच्छाधारी सोच से नहीं होगा। यह केवल अपने विशुद्ध भक्तों द्वारा प्रदान किए गए बुद्धिमान, ठोस और सहयोगात्मक प्रयासों से ही प्राप्त किया जा सकता है।
  • पांच प्रमुख बाधाएं जो श्रीला प्रभुपाद के प्राकृतिक पद को उनके आंदोलन में छिपाती हैं:
  • 1. श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं की उपेक्षा - उन्होंने निर्देश दिए हैं लेकिन हम जानते नहीं हैं कि वे मौजूद हैं।
  • 2. श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं के प्रति उदासीनता - हम जानते हैं कि निर्देश मौजूद हैं लेकिन हम उनकी परवाह नहीं करते हैं। हम उनकी उपेक्षा करते हैं।
  • 3. श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं के प्रति गलतफहमी - हम उन्हें ईमानदारी से लागू करते हैं, लेकिन हमारे अति-आत्मविश्वास या परिपक्वता की कमी के कारण, वे ठीक से लागू नहीं होते हैं।
  • 4. श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं में आस्था की कमी - भीतर हम पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हैं और उन्हें "आधुनिक दुनिया" के लिए काल्पनिक, गैर-यथार्थवादी और गैर-व्यावहारिक मानते हैं।
  • 5. श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं के साथ प्रतिस्पर्धा में हैं - पूरे विश्वास और उत्साह के साथ हम श्रीला प्रभुपाद ने जो निर्देश दिएँ है, उसकी उलटी दिशा में जाते हैं, और ऐसा करते वक़्त दूसरों को भी हमारे साथ जाने के लिए प्रभावित करते हैं।

टिपण्णी

हमारा मानना है कि श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं का हमारे भीतर परिपोषण और उनके बारे में हमारे ज्ञान को बढ़ाने के उद्देश्य से इन बाधाओं को आसानी से एकीकृत, संरचित शैक्षिक और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत से दूर किया जा सकता है। यह तभी सफल होगा जब श्रीला प्रभुपाद की वाणी में गहराई से निहित संस्कृति को बनाने के लिए एक गंभीर नेतृत्व की प्रतिबद्धता से ईंधन मिलेगा। इस प्रकार श्रीला प्रभुपाद का स्वाभाविक पद इस प्रकार स्वतः बन जाएगा, और भक्तों की सभी पीढ़ियों के लिए स्पष्ट रहेगा।

भक्त उनके अंग हैं, इस्कॉन उनका शरीर है, और वाणी उनकी आत्मा है





  • आपको हमेशा याद रखना चाहिए कि हम जो कुछ भी कर रहे हैं, वह भगवान कृष्ण से शुरू होने वाली परम्परा प्रणाली में है, जो हम तक आती है। इसलिए, हमारी प्रेमपूर्ण भावना शारीरिक प्रतिनिधित्व की तुलना में संदेश पर अधिक होनी चाहिए। जब हम संदेश को प्यार करते हैं और उनकी सेवा करते हैं, तो स्वचालित रूप से काया के लिए हमारा भक्ति प्रेम समाप्त हो जाता है। – श्रीला प्रभुपाद का गोविंद दासी को पत्र, ७ अप्रैल १९७०

टिपण्णी

हम श्रीला प्रभुपाद के अंग हैं। उनकी पूर्ण संतुष्टि के लिए उनके साथ सफलतापूर्वक सहयोग करने के लिए हमें उनके साथ चेतना में एकजुट होना चाहिए। यह प्रेममयी एकता हमारी वाणी में पूरी तरह से लीन होने, आश्वस्त होने और अभ्यास करने से विकसित होगी। हमारी समग्र सफलता की रणनीति सभी को श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं को आत्मसात करके और उन्हें कृष्णभावनमृत आंदोलन के लिए किए गए प्रत्येक कार्य के केंद्र में निर्भीकता से रखने रखने के लिए है। इस तरह, श्रीला प्रभुपाद के भक्त व्यक्तिगत रूप से फल-फूल सकते हैं, और अपनी संबंधित सेवाओं में इस्कॉन को एक ठोस संस्था बनाने के लिए, जो श्रीला प्रभुपाद की दुनिया को पूर्ण आपदा से बचाने की इच्छा को पूरा कर सकता है। भक्त जीतेंगें, जीबीसी जीतेगी, इस्कॉन जीतेगी, दुनिया जीतेगी, श्रीला प्रभुपाद जीतेंगें, और भगवान चैतन्य जीतेंगें। कोई भी हारेगा नहीं।

परम्परा के उपदेशों का वितरण

१४८६ चैतन्य महाप्रभु का विश्व को कृष्णभावनामृत में शिक्षित करने के लिए प्रकट होना - ५३३ वर्ष पूर्व

१४८८ सनातन गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना - ५३१ वर्ष पूर्व

१४८९ रूप गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना - ५३० वर्ष पूर्व

१४९५ रघुनाथ गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – ५२४ वर्ष पूर्व

१५०० यांत्रिक छपाई मशीनों का पूरे यूरोप में किताबों के वितरण में क्रांति लाना - ५२० वर्ष पूर्व

१५१३ जीवा गोस्वामी का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – ५०६ वर्ष पूर्व

१८३४ भक्तिविनोद ठाकुर का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – १८५ वर्ष पूर्व

१८७४ भक्तिसिद्धांत सरस्वती का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – १४५ वर्ष पूर्व

१८९६ श्रीला प्रभुपाद का कृष्णभावनामृत पर किताबें लिखने के लिए प्रकट होना – १२३ वर्ष पूर्व

१९१४ भक्तिसिद्धांत सरस्वती ने "भृहत-मृदंगा" वाक्यांश का उल्लेख किया – १०५ वर्ष पूर्व

१९२२ श्रीला प्रभुपाद पहली बार भक्तिसिद्धांत सरस्वती से मिले और उनसे तुरंत अंग्रेजी भाषा में उपदेश देने का अनुरोध किया - ९७ वर्ष पूर्व

१९३५ श्रीला प्रभुपाद को किताबें छापने का निर्देश मिला – ८४ वर्ष पूर्व

१९४४ श्रीला प्रभुपाद ने बैक टू गॉडहेड पत्रिका शुरू की – ७५ वर्ष पूर्व

१९५६ श्रीला प्रभुपाद ने वृंदावन में किताबें लिखनी प्रारम्भ करि – ६३ वर्ष पूर्व

१९६२ श्रीला प्रभुपाद ने श्रीमद-भागवतम का पहला खंड प्रकाशित किया – ५७ वर्ष पूर्व

१९६५ श्रीला प्रभुपाद अपनी पुस्तकें वितरित करने के लिए पाश्चात्य देश में आये – ५४ वर्ष पूर्व

१९६८ श्रीला प्रभुपाद ने भगवद-गीता यथारूप का संक्षिप्त संस्करण प्रकाशित किया – ५२ वर्ष पूर्व

१९७२ श्रीला प्रभुपाद भगवद-गीता यथारूप का पूर्ण संस्करण प्रकाशित किया – ४७ वर्ष पूर्व

१९७२ श्रीला प्रभुपाद ने अपनी पुस्तकों को प्रकाशित करने के लिए बीबीटी की स्थापना की – ४७ वर्ष पूर्व

१९७४ श्रीला प्रभुपाद के शिष्यों ने किताबों का गंभीर वितरण शुरू किया – ४५ वर्ष पूर्व

१९७५ श्रीला प्रभुपाद ने श्रीचैतन्य-चरितामृत को पूरा किया – ४४ वर्ष पूर्व

१९७७ श्रीला प्रभुपाद ने बोलना बंद कर दिया और अपनी वाणी हमारी देखभाल में छोड़ दी – ४२ वर्ष पूर्व

1978 भक्तिवेदांत अभिलेखागार की स्थापना की गई – ४१ वर्ष पूर्व

१९८६ दुनिया की डिजिटल रूप से संग्रहित सामग्री की मात्रा १ सीडी-रोम प्रति व्यक्ति थी – ३३ वर्ष पूर्व

१९९१ द वर्ल्ड वाइड वेब (भृहत-भृहत-भृहत-मृदंगा) की स्थापना की गई – २८ वर्ष पूर्व

१९९२ द भक्तिवेदांत वेदबेस संस्करण 1.0 बनाया गया – २७ वर्ष पूर्व

२००२ डिजिटल युग आ गया - दुनिया भर में डिजिटल स्टोरेज एनालॉग से आगे निकल गया – १७ वर्ष पूर्व

२००७ दुनिया की डिजिटली संग्रहित सामग्री की मात्रा प्रति व्यक्ति ६१ सीडी-रोम हो गई – १२ वर्ष पूर्व, कुल मिलाकर ४२७ अरब सीडी-रोम

२००७ श्रीला प्रभुपाद वाणी-मंदिर, वाणिपीडिया का वेब में निर्माण शुरू होता है – १२ वर्ष पूर्व

२०१० श्रीला प्रभुपाद वापू-मंदिर, वैदिक तारामंडल मंदिर का निर्माण कार्य श्रीधाम मायापुर में शुरू होता है – ९ वर्ष पूर्व

२०१२ वाणिपीडिया १,९०६,७५३ उद्धरण, १,०८,९७१ पृष्ठ और १३,९४६ श्रेणियों तक पहुँचता है – ७ वर्ष पूर्व

२०१३ श्रीला प्रभुपाद की ५००,०००,००० पुस्तकों का इस्कॉन भक्तों द्वारा ४८ वर्षों में वितरण - मतलब हर एक दिन में औसतन २८,५३८ पुस्तकें - ६ वर्ष पूर्व

२०१९ २१ मार्च, गौरा पूर्णिमा के दिन, सुबह के ७.१५ मध्य यूरोपीय समय में, वाणिपीडिया भक्तों को आमंत्रित करने के लिए और श्रीला प्रभुपाद की वाणी-उपस्थिति को पूरी तरह से प्रकट और अभिव्यक्त करने के लिए एक साथ सहयोग मांगनें के ११ वर्ष मनाता है। वाणिपीडिया अब ४५,५८८ श्रेणियां, २,८२,२९७ पृष्ठ, २,१००,००० प्लस उद्धरण को ९३ भाषाओं में प्रस्तुत करती है। यह १,२२० से अधिक भक्तों द्वारा पूर्ण किया गया है, जिन्होंने २,९५,००० घंटो से अधिक वाणी-सेवा का प्रदर्शन किया है। हमें श्रीला प्रभुपाद के वाणी-मंदिर को पूरा करने के लिए अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है, इसलिए हम इस शानदार मिशन में भाग लेने के लिए भक्तों को आमंत्रित करते रहते हैं।

टिप्पणी

आधुनिक काल में कृष्णभावनामृत आंदोलन के बैनर तले श्री चैतन्य महाप्रभु के मिशन का खुलना, हमारे भक्ति-सेवा प्रयासों के अभ्यास के लिए एक बहुत ही रोमांचक समय है।

इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ कृष्णा कॉन्शियसनेस यानी की अंतराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ के संस्थापक-आचार्य श्रीला प्रभुपाद ने अपने अनुवादों, भक्तिवेदांत अभिप्रायों, व्याख्यान, संभाषण, और पत्रों से जीवन-परिवर्तन घटना का दुनिया को साक्षात्कार कराया है। इसी के अन्दर संपूर्ण मानव समाज के पुनः अध्यात्मीकरण की कुंजी है।

वाणी, व्यक्तिगत संघ और वियोग में सेवा - उद्धरण

  • मेरे गुरु महाराज का १९३६ में निधन हो गया और मैंने तीस साल बाद १९६५ में इस आंदोलन की शुरुआत की। फिर? मुझे गुरु की दया प्राप्त हो रही है। यह वाणी है। यहां तक कि गुरु शारीरिक रूप से मौजूद नहीं है, लेकिन अगर आप वाणी का अनुसरण करते हैं, तो आपको मदद मिलेगी। – श्रीला प्रभुपाद के सुबह की सैर का संवाद, २१ जुलाई १९७५


  • आध्यात्मिक गुरु की भौतिक प्रस्तुति के अभाव में वाणी-सेवा अधिक महत्वपूर्ण है। मेरे आध्यात्मिक गुरु, सरस्वती गोस्वामी ठाकुर, शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं हो सकते हैं, लेकिन फिर भी क्योंकि मैं उनकी शिक्षा की सेवा करने की कोशिश करता हूं, मैं उनसे वियोग महसूस नहीं करता। मुझे उम्मीद है कि आप सभी इन निर्देशों का पालन करेंगें। – श्रीला प्रभुपाद का करंधरा दास (जीबीसी) को पत्र, २२ अगस्त १९७०


  • शुरू से ही, मैं अवैयक्तिकतावादियों के सख्त खिलाफ था और मेरी सभी पुस्तकें इस बात पर बल देती हैं। इसलिए मेरी मौखिक शिक्षा, साथ ही मेरी किताबें, दोनों आपकी सेवा में हैं। अब आप जीबीसी अगर मेरी किताबों से सलाह लेते हैं और स्पष्ट और मजबूत विचार प्राप्त करते हैं, तो कोई गड़बड़ी नहीं होगी। अशांति अज्ञानता के कारण होती है; जहां अज्ञानता नहीं है, वहां कोई अशांति नहीं है। – श्रीला प्रभुपाद का हयाग्रीव दास (जीबीसी) को पत्र, २२ अगस्त १९७०


  • जहाँ तक गुरु के साथ व्यक्तिगत संबंध का सवाल है, मैं केवल चार-पांच बार अपने गुरु महाराज के साथ था, लेकिन मैंने कभी भी उनका साथ नहीं छोड़ा, एक पल के लिए भी नहीं। क्योंकि मैं उनके निर्देशों का पालन कर रहा हूं, इसलिए मैंने कभी कोई वियोग महसूस नहीं किया। – श्रीला प्रभुपाद का सत्यधन्य दास को पत्र, २० फरवरी १९७२



  • कृपया वियोग में खुश रहें। मैं १९३६ से अपने गुरु महाराज के वियोग में जी रहा हूँ लेकिन मैं हमेशा उनके साथ हूँ जबतक मैं उनके निर्देशानुसार काम कर रहा हूं। इसलिए हम सभी को भगवान कृष्ण को संतुष्ट करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए और इस तरह से वियोग की भावनाएं पारलौकिक आनंद में बदल जाएंगी। – श्रीला प्रभुपाद का उद्धव दास (इस्कॉन प्रेस) को पत्र, ३ मई १९६८

टिप्पणी

श्रीला प्रभुपाद के बयानों की इस श्रृंखला में कई चौकाने वाले सच प्रस्तुत किए हैं।

  • श्रीला प्रभुपाद का व्यक्तिगत मार्गदर्शन हमेशा यहाँ है।
  • श्रीला प्रभुपाद से वियोग की भावनाओं में हमें खुश होना चाहिए।
  • श्रीला प्रभुपाद की शारीरिक अनुपस्थिति में उनकी वाणी-सेवा अधिक महत्वपूर्ण है।
  • श्रीला प्रभुपाद का अपने गुरु महाराजा के साथ बहुत कम व्यक्तिगत जुड़ाव था।
  • श्रीला प्रभुपाद के मौखिक निर्देश, साथ ही उनकी पुस्तकें, हमारी सेवा में हैं।
  • श्रीला प्रभुपाद से वियोग की भावनाएँ पारलौकिक आनंद में बदल जाती हैं।
  • जब श्रीला प्रभुपाद शारीरिक रूप से मौजूद नहीं हैं, अगर हम उनकी वाणी का अनुसरण करते हैं, तो हमें उनकी सहायता मिलती है।
  • श्रीला प्रभुपाद ने कभी भी भक्तिसिद्धांत सरस्वती का साथ नहीं छोड़ा, एक पल के लिए भी नहीं।
  • श्रीला प्रभुपाद के मौखिक निर्देशों और उनकी पुस्तकों से परामर्श करके हमें स्पष्ट और मजबूत विचार मिलते हैं।
  • श्रीला प्रभुपाद के निर्देशों का पालन करते हुए हम उनसे कभी अलग नहीं होंगे।
  • श्रीला प्रभुपाद ने अपने सभी अनुयायियों से अपेक्षा की कि वे इन निर्देशों का पालन करें ताकि हम उनके शशक्त शिक्षा-शिष्य बन सकें।

कृष्णा के संदेश को फैलाने के लिए मीडिया का उपयोग करना

  • तो प्रेस और अन्य आधुनिक मीडिया के माध्यम से मेरी पुस्तकों के वितरण के लिए अपने संगठन के साथ चलें और श्री कृष्ण निश्चित रूप से आप पर प्रसन्न होंगे। हम कृष्णा के बारे में बताने के लिए हर चीज - टेलीविजन, रेडियो, फिल्में, या जो कुछ भी हो सकता है, उसका उपयोग कर सकते हैं। – श्रीला प्रभुपाद का भगवान दास (जीबीसी) को पत्र, २४ नवंबर १९७०



  • आपके टीवी और रेडियो कार्यक्रमों की जबरदस्त सफलता की रिपोर्ट से मुझे बहुत प्रोत्साहन मिला है। जितना संभव हो सभी प्रचार माध्यमों का उपयोग करके हमारे प्रचार कार्यक्रमों को बढ़ाने का प्रयास करें। हम आधुनिक काल के वैष्णव हैं और हमें उपलब्ध सभी साधनों का उपयोग करते हुए जोरदार प्रचार करना चाहिए। – श्रीला प्रभुपाद का रूपानुगा दास (जीबीसी) को पत्र, ३० दिसंबर १९७१


  • यदि आप सब कुछ व्यवस्थित करने में सक्षम हैं, ताकि मैं बस अपने कमरे में बैठकर दुनिया को देख सकूं और दुनिया से बात कर सकूं, तो मैं लॉस एंजिल्स को कभी नहीं छोड़ूंगा। यह आपके लॉस एंजिल्स मंदिर की पूर्णता होगी। मैं आपके कृष्णभावनामृत कार्यक्रम से आपके देश की मीडिया को भर देने के आपके प्रस्ताव से बहुत प्रोत्साहित हूं, और यह देखता हूं कि यह व्यावहारिक रूप से आपके हाथों में आकार ले रहा है, इसलिए मैं और अधिक प्रसन्न हूं। - श्रीला प्रभुपाद का सिद्देश्वर दास और कृष्णकांती दास को पत्र, १६ फरवरी १९७२



टिप्पणी

अपने गुरु महाराज के नक्शेकदम पर चलते हुए, श्रीला प्रभुपाद भगवान श्रीकृष्ण की सेवा में हर चीज़ को संलग्नित कर लेने की कला जानते थे।

  • श्रीला प्रभुपाद चाहते हैं की दुनिया उन्हें देखे और वह दुनिया से बात करना चाहते हैं।
  • श्रीला प्रभुपाद हमारे कृष्णभावनामृत कार्यक्रमों से मीडिया को भर देने की इच्छा रखते हैं।
  • श्रीला प्रभुपाद चाहते हैं कि उनकी पुस्तकें प्रेस और अन्य आधुनिक-मीडिया के माध्यम से वितरित हों।
  • श्रीला प्रभुपाद अपनी शिक्षाओं को व्यवस्थित रूप से एक विषय द्वारा विश्वकोशीय तरीके से संकलित करने की योजना के बारे में सुनकर खुश थे।
  • श्रीला प्रभुपाद का कहना है कि हमें अपने उपदेश कार्यक्रमों को उन सभी जन माध्यमों के उपयोग से बढ़ाना चाहिए जो उपलब्ध हैं।
  • श्रीला प्रभुपाद कहते हैं कि हम आधुनिक काल के वैष्णव हैं और हमें उपलब्ध सभी साधनों का उत्साह सहित इस्तेमाल करके प्रचार करना चाहिए।
  • श्रीला प्रभुपाद कहते हैं कि हम हर चीज का उपयोग कर सकते हैं - टेलीविजन, रेडियो, फिल्में, या जो कुछ भी हो सकता है - श्रीकृष्ण के बारे में बताने के लिए।
  • श्रीला प्रभुपाद कहते हैं कि जन-मीडिया हमारे कृष्णभावनामृत आंदोलन को फैलाने में इतना महत्वपूर्ण साधन बन सकता है।

आधुनिक-मीडिया, आधुनिक अवसर

श्रीला प्रभुपाद के लिए, १९७० के दशक में, आधुनिक-मीडिया और मास-मीडिया का मतलब प्रिंटिंग प्रेस, रेडियो, टीवी और फिल्मों से था। उनके जाने के बाद से, मास मीडिया का परिदृश्य नाटकीय रूप परिवर्तित हो गया और इसमें ये साड़ी आधुनिक तकनीकियां शामिल हो गयीं - एंड्रॉइड फोन, क्लाउड कंप्यूटिंग और स्टोरेज, ई-बुक रीडर, ई-कॉमर्स, इंटरैक्टिव टीवी और गेमिंग, ऑनलाइन प्रकाशन, पॉडकास्ट और आरएसएस फीड, सोशल नेटवर्किंग साइट्स, स्ट्रीमिंग मीडिया, टच स्क्रीन प्रोद्योगिकाएँ, वेब आधारित संचार और वितरण सेवाएं और वायरलेस प्रोद्योगिकाएँ।

श्रीला प्रभुपाद के उदाहरण के अनुरूप, हम २००७ से, श्रील प्रभुपाद की वाणी को संकलित, अनुक्रमणित, वर्गीकृत और वितरित करने के लिए आधुनिक जन मीडिया तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं।

  • वाणिपीडिया का उद्देश्य निम्नलिखित लोगों के लिए एक स्वतंत्र, प्रामाणिक, एक-उपाय संसाधन की पेशकश करके वेब पर श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं की दृश्यता और पहुंच को बढ़ाना है:
• इस्कॉन के प्रचारक
• इस्कॉन के नेता और प्रबंधक
• भक्त पाठ्यक्रम का अध्ययन करने वाले भक्त
• अपने ज्ञान को गहरा करने के इच्छुक भक्त
• अंतर-विश्वास संवादों में शामिल भक्त
• पाठ्यक्रम डेवलपर्स
• श्रीला प्रभुपाद से वियोग महसूस कर रहे भक्त
• कार्यकारी नेता
• विद्वान / शिक्षाविद
• शिक्षक और धार्मिक शिक्षा के छात्र
• लेखक
• अध्यात्म के खोजकर्ता
• वर्तमान सामाजिक मुद्दों के बारे में चिंतित लोग
• इतिहासकार

टिपण्णी

आज भी श्रीला प्रभुपाद के उपदेशों को विश्व में सुलभता से उपलब्ध कराने और प्रमुख बनाने के लिए और भी कुछ किया जाना बाकी है। सहयोगी वेब प्रौद्योगिकियां हमें अपनी पिछली सभी सफलताओं को पार करने का अवसर प्रदान करती हैं।

वाणी-सेवा - श्रीला प्रभुपाद की वाणी की सेवा का पवित्र कार्य

श्रीला प्रभुपाद ने १४ नवंबर, १९७७ को बोलना बंद कर दिया, लेकिन उनकी वाणी ने जो हमें दिया वह हमेशा ताजा बना रहा। हालाँकि, ये उपदेश अभी तक अपनी प्राचीन स्थिति में नहीं हैं, और ना ही ये सभी आसानी से अपने भक्तों के लिए उपलब्ध हैं। श्रीला प्रभुपाद के अनुयायियों का पवित्र कर्तव्य है कि वे श्रीला प्रभुपाद की वाणी को सभी तक पहुंचाएं। इसलिए हम आपको इस वाणी-सेवा को करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।

हमेशा याद रखें कि आप उन कुछ पुरुषों में से एक हैं जिन्हें मैंने दुनिया भर में अपने काम और आपके मिशन को आगे बढ़ाने के लिए नियुक्त किया है। इसलिए, श्रीकृष्ण से हमेशा प्रार्थना करें कि मैं जो कर रहा हूं, उसे करके इस मिशन को पूरा करने के लिए शक्ति प्रदान करें। मेरा पहला कर्त्तव्य भक्तों को उचित ज्ञान देना और उन्हें भक्ति सेवा में संलग्न करना है, इसलिए यह आपके लिए बहुत मुश्किल काम नहीं है, मैंने आपको सब कुछ दिया है, इसलिए किताबों से पढ़ें और उसीसे उदाहरण दें और बात करें तब ज्ञान का बड़ा प्रकाश होगा। हमारे पास बहुत सारी किताबें हैं, इसलिए यदि हम अगले १,००० वर्षों तक उनसे प्रचार करते रहें, तो यह पर्याप्त भण्डार है। – श्रीला प्रभुपाद का सत्स्वरुप दास (जीबीसी) को पत्र, १६ जून १९७२

१९७२ के जून में, श्रीला प्रभुपाद ने कहा कि "हमारे पास इतनी सारी किताबें हैं" कि "अगले १,००० वर्षों" तक प्रचार करने के लिए "पर्याप्त भण्डार है"। उस समय, केवल १० शीर्षक छपे थे, इसलिए जुलाई १९७२ से नवंबर १९७७ तक श्रीला प्रभुपाद द्वारा प्रकाशित सभी अतिरिक्त पुस्तकों के साथ, भण्डार के वर्षों की संख्या को आसानी से ५,००० तक बढ़ाया जा सकता था। यदि हम श्रीला प्रभुपाद के मौखिक निर्देशों और पत्रों को इसमें जोड़ते हैं, तो भंडार १०,००० साल तक फैल जाता है। हमें इन सभी शिक्षाओं को निपुणता से तैयार करने और उचित रूप से समझने के लिए तैयार करने की आवश्यकता है ताकि उसको इस पूरी अवधि के लिए "प्रचार के कार्य में इस्तेमाल" किया जा सके।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि श्रीला प्रभुपाद में भगवान चैतन्य महाप्रभु के संदेश का प्रचार करने का अपार उत्साह और दृढ़ संकल्प है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका वापु स्वरुप हमें छोड़कर चला गया है। वह अपनी शिक्षाओं में रहतें हैं। शारीरिक रूप से मौजूदगी के बदले, डिजिटल मंच के माध्यम से वह अब और अधिक व्यापक रूप से प्रचार कर सकेंगें। भगवान चैतन्य की दया पर पूरी निर्भरता के साथ, आइए हम श्रीला प्रभुपाद के वाणी-मिशन को स्वीकार करें, और पहले से कहीं अधिक संकल्प के साथ, उनकी वाणी को १०,००० वर्षों के उपदेश के लिए तैयार करें।

पिछले दस वर्षों में, मैंने रूपरेखा दी है और अब हम ब्रिटिश साम्राज्य से अधिक हो गए हैं। यहां तक कि ब्रिटिश साम्राज्य भी हमारे लिए उतना व्यापक नहीं था। उनके पास दुनिया का केवल एक हिस्सा था, और अभी हमने विस्तार पूरा नहीं किया है। हमें अधिक से अधिक असीमित रूप से विस्तार करना चाहिए। लेकिन मुझे अब आपको याद दिलाना होगा कि मुझे श्रीमद-भागवतम का अनुवाद पूरा करना है। यह सबसे बड़ा योगदान है; हमारी पुस्तकों ने हमें एक सम्मानजनक स्थान दिया है। लोगों को इस चर्च या मंदिर की पूजा में कोई विश्वास नहीं है। वो दिन चले गए। बेशक, हमें मंदिरों को बनाए रखना होगा क्योंकि हमारी आत्माओं को उच्च रखना आवश्यक है। बस बौद्धिकता नहीं चलेगी, व्यावहारिक शुद्धि होनी चाहिए।

इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि आप मुझे प्रबंधन की जिम्मेदारियों से अधिक से अधिक राहत दें ताकि मैं श्रीमद-भागवतम का अनुवाद पूरा कर सकूं। अगर मुझे हमेशा प्रबंधन करना है, तो मैं पुस्तकों पर अपना काम नहीं कर सकता। यह प्रलेखित है, मुझे प्रत्येक शब्द को बहुत ही गंभीरता से चुनना है और अगर मुझे प्रबंधन के बारे में सोचना है तो मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं इन बदमाशों की तरह नहीं हो सकता, जो जनता को धोखा देने के लिए मानसिक रूप से कुछ भी पेश करते हैं। इसलिए यह कार्य मेरे नियुक्त सहायकों, जीबीसी, मंदिर अध्यक्षों और संन्यासियों के सहयोग के बिना पूरा नहीं होगा। मैंने अपने सर्वश्रेष्ठ पुरुषों को जीबीसी चुना है और मैं नहीं चाहता कि जीबीसी मंदिर के राष्ट्रपतियों के प्रति अपमानजनक हो। आप स्वाभाविक रूप से मुझसे परामर्श कर सकते हैं, लेकिन अगर मूल सिद्धांत कमजोर है, तो चीजें कैसे चलेंगी? इसलिए कृपया मुझे प्रबंधन में सहायता करें ताकि मैं श्रीमद-भागवतम को समाप्त करने के लिए स्वतंत्र हो सकूं जो दुनिया के लिए हमारा स्थायी योगदान होगा। – श्रीला प्रभुपाद का संचालक मंडल (जीबीसी - गवर्निंग बॉडी कमिशन) के सभी आयुक्तों को पत्र, १९ मई १९७६

यहाँ श्रीला प्रभुपाद यह कह रहे हैं कि "यह कार्य मेरे नियुक्त सहायकों के सहयोग के बिना समाप्त नहीं होगा", ताकि "वे दुनिया में हमारे स्थायी योगदान" के लिए मदद कर सकें। यह श्रीला प्रभुपाद की पुस्तकें हैं जिन्होंने "हमें एक सम्मानजनक स्थान दिया है" और "वे दुनिया के लिए सबसे बड़ा योगदान हैं"

वर्षों से, बीबीटी के भक्तों, पुस्तक वितरकों, उपदेशकों द्वारा बहुत अधिक वाणी-सेवा की गई है, जिन्होंने श्रीला प्रभुपाद के शब्दों को दृढ़ता से धारण किया है, और अन्य भक्तों द्वारा जो वाणी को एक या दूसरे तरीके से वितरित करने और संरक्षित करने के लिए समर्पित हैं। लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। भृहत-भृहत-भृहत मृदंगा (वर्ल्ड वाइड वेब) की प्रौद्योगिकियों के माध्यम से एक साथ काम करके, अब हमारे पास बहुत कम समय में श्रीला प्रभुपाद की वाणी की एक अद्वितीय अभिव्यक्ति बनाने का अवसर है। हमारा प्रस्ताव है की हम सब वाणी-सेवा में एक साथ आएं और ४ नवंबर २०२७ तक पूरा होने वाले एक वाणी-मंदिर का निर्माण करें, जिस समय हम सभी अंतिम पचासवीं (५० वीं) वर्षगांठ मनाएंगे। वियोग में श्रीला प्रभुपाद की सेवा के ५० वर्ष। यह श्रीला प्रभुपाद के लिए प्यार की एक बहुत ही उपयुक्त और सुंदर भेंट होगी, और उनके भक्तों की आने वाली सभी पीढ़ियों के लिए एक शानदार उपहार होगा।

मुझे खुशी है कि आपने अपने प्रिंटिंग प्रेस का नाम राधा प्रेस रखा है। यह बहुत संतुष्टिदायक है। आपकी राधा प्रेस को जर्मन भाषा में हमारी सभी पुस्तकों और साहित्य को प्रकाशित करने में समृद्ध होना चाहिए। बहुत अच्छा नाम है। राधारानी श्रीकृष्ण की सबसे अच्छी, सबसे बड़ी सेवादार हैं, और श्रीकृष्ण की सेवा के लिए प्रिंटिंग मशीन वर्तमान समय में सबसे बड़ा माध्यम है। इसलिए, यह वास्तव में श्रीमति राधारानी की प्रतिनिधि है। मुझे यह विचार बहुत पसंद है। – श्रीला प्रभुपाद का जया गोविंदा दास (पुस्तक उत्पादन प्रबंधक) को पत्र, ४ जुलाई १९६९

२० वीं शताब्दी के बचे हुए हिस्से के लिए, प्रिंटिंग प्रेस ने इतने सारे लोगों के द्वारा सफल प्रचार करने के लिए उपकरण प्रदान किए। श्रीला प्रभुपाद ने कहा कि कम्युनिस्ट लोग भारत में अपने द्वारा वितरित किए गए पर्चे और पुस्तकों के माध्यम से भारत में अपना प्रभाव फैलाने में बहुत माहिर थे। श्रीला प्रभुपाद ने इस उदाहरण का उपयोग कर यह व्यक्त किया कि किस तरह वे अपनी पुस्तकों को दुनिया भर में वितरित करके कृष्णभावनामृत के लिए एक बड़ा प्रचार कार्यक्रम बनाना चाहते हैं।

अब, २१ वीं सदी में, श्रीला प्रभुपाद का कथन "श्रीकृष्ण की सेवा के लिए वर्तमान समय में सबसे बड़ा माध्यम है", निस्संदेह यह इंटरनेट प्रकाशन और वितरण की घातीय और अद्वितीय शक्ति पर लागू किया जा सकता है। वाणीपीडिया में, हम इस आधुनिक जन वितरण मंच पर उचित प्रतिनिधित्व के लिए श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं को तैयार कर रहे हैं। श्रील प्रभुपाद ने कहा कि जर्मनी में उनके भक्तों का राधा प्रेस "वास्तव में श्रीमति राधारानी का प्रतिनिधि था"। इसलिए हम निश्चित हैं कि वह वाणीपीडिया को भी श्रीमति राधारानी का प्रतिनिधि मानेंगे।

इतने सारे सुंदर वापु-मंदिर पहले ही इस्कॉन भक्तों द्वारा बनाए गए हैं - आइए अब हम कम से कम एक शानदार वाणी-मंदिर का निर्माण करें। वापु-मंदिर भगवान के रूपों का पवित्र दर्शन प्रदान करते हैं, और एक वाणी-मंदिर भगवान और उनके शुद्ध भक्तों की शिक्षाओं का पवित्र दर्शन प्रदान करता है, जैसा कि श्रीला प्रभुपाद द्वारा उनकी किताबों में प्रस्तुत किया गया है। इस्कॉन भक्तों का काम स्वाभाविक रूप से अधिक सफल होगा जब श्रीला प्रभुपाद के उपदेश उनके सही, पूजनीय पद में स्थित होंगे। अब उनके सभी वर्तमान "नियुक्त सहायकों" के लिए उनके वाणी-मंदिर के निर्माण कार्य में और उनके वाणी-मिशन को अपनाने में और उनके पूरे आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित करने का यह एक सुनहरा और शानदार अवसर है।

जिस प्रकार श्रीधाम मायापुर में गंगा के तट से उठने वाले विशाल और सुंदर वापु-मंदिर को भगवान चैतन्य की दया को पूरे विश्व में फैलाने के कार्य में मदद करने के लिए नियत किया जाता है, उसी प्रकार श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं का एक वाणी-मंदिर भी अपने इस्कॉन मिशन को मजबूत कर सभी ओर फैलाने में नियत होगा और दुनिया भर में आने वाले हजारों वर्षों के लिए श्रीला प्रभुपाद का स्वाभाविक पद भी स्थापित होगा।

वाणी-सेवा - वास्तविक कार्यो से सहयोग देना और सेवा करना

  • वाणिपीडिया को पूरा करने का मतलब है कि श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं को संकलित करके ऐसे प्रस्तुत करना जो की किसी भी आध्यात्मिक शिक्षक के कार्यों के लिए आज तक नहीं किया गया है। हम सभी को इस पवित्र मिशन में भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं। हम सब मिलकर दुनिया को श्रीला प्रभुपाद का संभवता वेब के माध्यम से एक अनूठा प्रदर्शन देंगे।
  • हमारी इच्छा वाणिपीडिया को श्रीला प्रभुपाद की शिक्षाओं का कई भाषाओं में नंबर १ संदर्भ विश्वकोश बनाने की है। यह केवल ईमानदार प्रतिबद्धता, बलिदान और कई भक्तों के समर्थन के साथ होगा। आजतक, १,२२० से अधिक भक्तों ने वाणी-सोर्स और वाणी-कोट्स और ९३ भाषाओं में अनुवाद के निर्माण में भाग लिया है। अब वनीकोट्स को पूरा करने और वाणिपीडिया के लेखों का निर्माण करने हेतु, तथा वाणी-बुक्स ,वाणी-मीडिया, और वाणी-वर्सिटी पाठ्यक्रमों में हमें निम्नलिखित कौशल वाले भक्तों से अधिक समर्थन की आवश्यकता है:
• शासन प्रबंध
• संकलन
• पाठ्यक्रम परिवर्द्धन
• डिजाइन और लेआउट
• वित्त
• प्रबंधन
• प्रचार
• शोध
• सर्वर रखरखाव
• साइट का विकास
• सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग
• शिक्षण
• तकनीकी संपादन
• प्रशिक्षण
• अनुवाद
• लेखन
  • वाणी-सेवक अपने घरों, मंदिरों और कार्यालयों से अपनी सेवा प्रदान करते हैं, या वे श्रीधाम मायापुर या राधादेश में कुछ समय के लिए हमारे साथ रह सकते हैं।

दान

  • पिछले १२ वर्षों से, वाणिपीडिया को मुख्य रूप से भक्तिवेदांत लाइब्रेरी सर्विसेज (बीएलएस) के पुस्तक वितरण द्वारा वित्तपोषित किया गया है। अपने निर्माण को जारी रखने के लिए, वाणिपीडिया को बीएलएस की वर्तमान क्षमता से परे धन की आवश्यकता है। एक बार पूरा हो जाने के बाद, वाणिपीडिया को कई संतुष्ट आगंतुकों के प्रतिशत भाग से छोटे दान से उम्मीद होगी। लेकिन अभी के लिए, इस मुफ्त विश्वकोश के निर्माण के प्रारंभिक चरणों को पूरा करने के लिए, वित्तीय सहायता की पेशकश महत्वपूर्ण है।
  • वाणीपीडिया के समर्थक निम्नलिखित विकल्पों में से एक का चयन कर सकते हैं

प्रायोजक: कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार धनराशि का दान कर सकता है।

सहायक संरक्षक: एक व्यक्ति या कानूनी संस्था जो कम से कम ८१ यूरो का दान करे।

स्थायी संरक्षक: एक व्यक्ति या कानूनी संस्था जो ९० यूरो के ९ मासिक भुगतान करने की संभावना के साथ कम से कम ८१० यूरो का दान करे।

वृद्धि संरक्षक: एक व्यक्ति या कानूनी संस्था जो ९०० यूरो के ९ वार्षिक भुगतान करने की संभावना के साथ ८,१०० यूरो का दान करे।

बुनियादी संरक्षक: एक व्यक्ति या कानूनी संस्था जो ९,००० यूरो के वार्षिक भुगतान करने की संभावना के साथ ८१,००० यूरो का दान करे।

  • दान ऑनलाइन या हमारे पेपाल के खाते के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है जिसका शीर्षक [email protected] है। यदि आप दान करने से पहले कोई अन्य विधि पसंद करते हैं या अधिक प्रश्न पूछना चाहते हैं, तो हमें [email protected] पर ईमेल करें।

हम आभारी हैं - प्रार्थना

हम आभारी हैं

धन्यवाद प्रभुपाद
हमें आपकी सेवा करने का यह अवसर देने के लिए।
हम आपको अपने मिशन में खुश करने की पूरी कोशिश करेंगे।
आपकी शिक्षाएँ लाखों भाग्यशाली आत्माओं को आश्रय देती रहें।


प्रिय श्रीला प्रभुपाद,
कृपया हमें सशक्त करें
सभी अच्छे गुणों और क्षमताओं के साथ
और हमें लंबी अवधि के लिए प्रदान करते रहें
गंभीर रूप से प्रतिबद्ध भक्त और संसाधन
अपने गौरवशाली वाणी-मंदिर का सफलतापूर्वक निर्माण करने के लिए
सभी के लाभ के लिए।


प्रिय श्री श्री पंच तत्वा,
कृपया हमें श्री श्री राधा माधव के प्रिय भक्त बनने में मदद करें
और श्रीला प्रभुपाद और हमारे गुरु महाराज के प्रिय शिष्य बनने में मदद करें
कृपया हमें निरंतर श्रीला प्रभुपाद के इस मिशन में
कड़ी और स्मार्ट मेहनत और अपने भक्तों की खुशी के लिए
सुविधा प्रदान करें।

इन प्रार्थनाओं को स्वीकार करने के लिए धन्यवाद

टिपण्णी

केवल श्रीला प्रभुपाद, श्री श्री पंच तत्वा, और श्री श्री राधा माधव की सशक्त कृपा से ही हम कभी इस अत्यंत कठिन कार्य को समाप्त करने की आशा कर सकते हैं। इस प्रकार हम लगातार उनकी दया के लिए प्रार्थना करते हैं।