HI/670303b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यह बालाक जो खेल रहा है, इसके पास एक छोटा शरीर है। उसी प्रकार जब इसे अपने पिता जैसा शरीर प्राप्त होगा, इसे बहुत शरीर बदलने पड़ेंगे। बहुत शरीर। शरीर तो बदलता रहेगा परंतु आत्मा वही रहेगी। और अभी बचपन में, या अपनी माँ की कोक में, या जब इसका शरीर अपने पिता के समान होगा, या अपने पितामह के समान होगा-वही आत्मा रहेगी। इसलिेए आत्मा स्थायी है परंतु शरीर बदलता रहता है। यह भगवद्गीता में समझाया गया है: अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः(भगवद्गीता २.१८), यह शरीर अस्थायी है। अस्थायी। या तो यह बालक का शरीर या तो लड़कपन या कुमारावस्था या परिपक्व शरीर, या तो बु़ढ़ा शरीर, सब कुछ अस्थायी है। हर समय, हर क्षण, हम बदल रहे हैं। परंतु शरीर के अंदर जो आत्मा है, वह स्थायी है।" |
670303 - प्रवचन SB 07.06.01 - सैन फ्रांसिस्को |