HI/670416 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"ठीक जैसे हमारे गाँधी : वे सिद्ध करना चाहते थे,भगवद्गीता के माध्यम से,अहिंसा। भगवद्गीता का प्रचार युद्धक्षेत्र में हो रहा है,और यह पूर्णतः हिंसा (का प्रसंग) है ! वे कैसे सिद्ध कर सकते हैं? इसलिए वे अपने मनगढंत अर्थ को खींच (कर निकाल रहे हैं। यह बहुत मुश्किल की बात है, और जो भी ऐसी व्याख्या पढ़ेगा,उसका सर्वनाश हो जायेगा। वह नष्ट हो जायेगा क्योंकि भगवद्गीता तुम्हारी कृष्णभावना तो जाग्रत करने के लिए है। यदि वह जाग्रत नहीं होती, तब यह व्यर्थ समय की बर्बादी है। ठीक जैसे श्री चैतन्य महाप्रभु ने अनपढ ब्राह्मण तो गले से लगाया था क्योंकि उसने भगवद्गीता के मर्म को स्वीकार किया था, प्रभु और भक्त का सम्बन्ध। इसलिए, जब तक हम सही अर्थ (नहीं) लेते,मेरा मतलब है,किसी भी शास्त्र का मर्म, यह मात्र समय की बर्बादी है।" |
प्रवचन श्री चैतन्य चरितामृत आदिलीला ०७.१०९ -११४ - न्यूयार्क |
|Vanisource:670416 - Lecture CC Adi 07.109-114 - New York|670416 - प्रवचन CC Adi 07.109-114 - न्यूयार्क}}