HI/690914 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लंडन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
“बिलकुल, इसका मतलब ये नही की जो कोई भी कृष्ण या कृष्ण के भक्त के पास आता है, उसने अपने पूर्व पापकर्मों के फल को समाप्त कर दिया है । ऐसा संभव नही । हर कोई अपने पूर्व पाप कर्मों से भरा पड़ा है .... यहाँ इस भौतिक जगत मे जो भी आप करते हो वो कम या ज़्यादा पाप कर्म ही है । तो जब आप कृष्ण के प्रति समर्पण करते है उनके पारदर्शी माध्यम के द्वारा, ऐसा नही है कि तुरंत आपकी पाप क्रियायें समाप्त हो जाएँगी, लेकिन क्योंकि आपने परमेश्वर के प्रति समर्पण कर दिया है, वो आपके पापयुक्त कर्मों को समा लेंगे । वो आपको मुक्त कर देंगे । परंतु आपको जागरुक रहना होगा कि “ अब मे और पाप कर्म नही करूँगा ।” |
690914 - - प्रवचन श्री.भा. 05.05.02- लंदन |