HI/701212 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद इंदौर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यह सदाचार की शुरुआत है: सुबह जल्दी उठना, स्नान /शुद्ध करना, फिर जाप करना, या वैदिक मंत्रों का जप करना या, वर्तमान युग की तरह सरल 'हरे कृष्ण' महा-मंत्र का जप करना। यह सदाचार की शुरुआत है। तो सदाचार का अर्थ है, पापकर्मो की प्रतिक्रिया से मुक्त हो जाना। जब तक कोई नियामक सिद्धांतों का पालन नहीं करता है, तब तक वह मुक्त नहीं हो सकता। और जब तक कोई पूरी तरह से पापकर्मो की प्रतिक्रिया से मुक्त नहीं हो जाता, वह यह नहीं समझ सकता कि भगवान क्या है।जो लोग सदाचार, नियामक सिद्धांतों के पालन में नहीं हैं, उनके लिए ... जानवरों की तरह, उनसे किसी भी तरह का पालन करने की उम्मीद नहीं है ... बेशक, स्वभाव से वे नियामक सिद्धांतों का पालन करते हैं। फिर भी, लेकिन इंसानों में उन्नत चेतना होती है, इसलिए वे इसे ठीक से इस्तेमाल करने के बजाय उन्नत चेतना का दुरुपयोग करते हैं, और इस तरह वे जानवरों से भी तुच्छ हो जाते हैं।" |
701212 - प्रवचन श्री.भा. ०६.०१.२१ और बातचीत - इंदौर |