HI/710117 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद इलाहाबाद में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710117SB-ALLAHABAD_ND_01.mp3</mp3player>|धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष ([[Vanisource:SB 4.8.41|श्री.भा. ४.८.४१]], [[Vanisource:CC Adi 1.90|चै.च. आदि १.९०]]): ये एक जीव को उच्चतम मंच पर ले जाने के सिद्धांत हैं । लेकिन उन्होंने इसे आम तौर पर ले लिया है,... वे कुछ अधिक धन, अर्थ, पाने के लिए धार्मिक अनुष्ठान करते हैं । बेशक, हमें अपने पालन के लिए कुछ धन की आवश्यकता है; यह ज़रूरी है । लेकिन अगर हम केवल धन प्राप्त करने के लिए धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, तो यह गलत है । आम तौर पर लोग ऐसा करते हैं । वे दान देते हैं ताकि उन्हें अधिक धन मिल सके । वे धर्मशाला खोलते हैं ताकि उन्हें अधिक घर मिल सकें । यही उनका उद्देश्य है । या फिर उन्हें स्वर्गीय साम्राज्य की प्राप्ति हो सकती है । क्योंकि वे नहीं जानते कि उनकी वास्तविक हित क्या है । वास्तविक हित है भगवद धाम वापस जाना ।|Vanisource:710117 - Lecture SB 06.02.12-14 - Allahabad|710117 - प्रवचन श्री.भा. ६.२.१२-१४ - इलाहाबाद}} |
Revision as of 23:11, 12 July 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष (श्री.भा. ४.८.४१, चै.च. आदि १.९०): ये एक जीव को उच्चतम मंच पर ले जाने के सिद्धांत हैं । लेकिन उन्होंने इसे आम तौर पर ले लिया है,... वे कुछ अधिक धन, अर्थ, पाने के लिए धार्मिक अनुष्ठान करते हैं । बेशक, हमें अपने पालन के लिए कुछ धन की आवश्यकता है; यह ज़रूरी है । लेकिन अगर हम केवल धन प्राप्त करने के लिए धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, तो यह गलत है । आम तौर पर लोग ऐसा करते हैं । वे दान देते हैं ताकि उन्हें अधिक धन मिल सके । वे धर्मशाला खोलते हैं ताकि उन्हें अधिक घर मिल सकें । यही उनका उद्देश्य है । या फिर उन्हें स्वर्गीय साम्राज्य की प्राप्ति हो सकती है । क्योंकि वे नहीं जानते कि उनकी वास्तविक हित क्या है । वास्तविक हित है भगवद धाम वापस जाना । |
710117 - प्रवचन श्री.भा. ६.२.१२-१४ - इलाहाबाद |