HI/741122 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो यदि आप वास्तव में अपना सबकुछ, अपना जीवन समर्पण कर देते हैं ... प्राणेर अर्थेर धिय वाचा (श्री.भा.१०.२२.३५) । हम अपना जीवन त्याग सकते हैं, अपना धन-प्राण, अर्थ। बुद्धि का त्याग कर सकते है। हर कोई बुद्धिमान है। यदि वह त्याग करता है ... तो इसे यज्ञ कहा जाता है। यदि आप त्याग ..... आपको कुछ बुद्धिमत्ता मिली है। हर कोई बुद्धिमान है कि कैसे अपनी इन्द्रियतृप्ति को बहुत अच्छा बनाया जाए। यहां तक कि एक चींटी भी जानती है कि कैसे इंद्रियों को तृप्त किया जाये । तो इसका आपको त्याग करना होगा। अपनी इंद्रियों को तृप्त मत करो , बल्कि कृष्ण की इंद्रियों को तृप्त करने की कोशिश करो। तब आप परिपूर्ण है ।"
७४११२२ - प्रवचन श्री. भा. ०३.२५.२२ - बॉम्बे