HI/730827 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लंडन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
Daivasimha (talk | contribs) (Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७३ Category:HI/अम...") |
(No difference)
|
Revision as of 08:43, 19 July 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"हमारी आंखें, हमारे पास निमिष है, पलकें झपकती है। लेकिन विष्णु की पलकें कभी नहीं झपकती। इसलिए उन्हें अनिमिष कहा जाता है। इसलिए गोपियों ने ब्रह्म की निंदा करी, कि 'आपने हमें इन बकवास पलकों से क्यों सम्मानित किया है? (हंसी) कभी-कभी आंख झपकती हैं? हम कृष्ण को नहीं देख पाती'। यह गोपियों की इच्छा है, वे हमेशा पलकों से विचलित हुए बिना, कृष्ण को देखना चाहती हैं। यह कृष्ण चेतना है। आँखों का पलकों द्वारा क्षण के लिए झपकना उनके लिए असहनीय है। यह कृष्ण चेतना की पूर्णता है।" |
७३०८२७ - प्रवचन-श्री.भा.०१. ०१. ०४- लंडन |