HI/BG 1.24: Difference between revisions

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Revision as of 09:42, 24 July 2020

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 24

सञ्जय उवाच
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥ २४॥

शब्दार्थ

सञ्जय: उवाच—संजय ने कहा; एवम्—इस प्रकार; उक्त:—कहे गये; हृषीकेश:—भगवान् कृष्ण ने; गुडाकेशेन—अर्जुन द्वारा; भारत—हे भरत के वंशज; सेनयो:—सेनाओं के; उभयो:—दोनों; मध्ये—मध्य में; स्थापयित्वा—खड़ा करके; रथ-उत्तमम्—उस उत्तम रथ को।

अनुवाद

संजय ने कहा – हे भरतवंशी! अर्जुन द्वारा इस प्रकार सम्बोधित किये जाने पर भगवान् कृष्ण ने दोनों दलों के बीच में उस उत्तम रथ को लाकर खड़ा कर दिया |

तात्पर्य

इस श्लोक में अर्जुन को गुडाकेश कहा गया है | गुडाका का अर्थ है नींद और जो नींद को जीत लेता है वह गुडाकेश है | नींद का अर्थ अज्ञान भी है | अतः अर्जुन ने कृष्ण की मित्रता के कारण नींद तथा अज्ञान दोनों पर विजय प्राप्त की थी | कृष्ण के भक्त के रूप में वह कृष्ण को क्षण भर भी नहीं भुला पाया क्योंकि भक्त का स्वभाव ही ऐसा होता है | यहाँ तक कि चलते अथवा सोते हुए भी कृष्ण के नाम, रूप, गुणों तथा लीलाओं के चिन्तन से भक्त कभी मुक्त नहीं रह सकता | अतः कृष्ण का भक्त उनका निरन्तर चिन्तन करते हुए नींद तथा अज्ञान दोनों को जीत सकता है | इसी को कृष्णभावनामृत या समाधि कहते हैं | प्रत्येक जीव की इन्द्रियों तथा मन के निर्देशक अर्थात् हृषीकेश के रूप में कृष्ण अर्जुन के मन्तव्य को समझ गये कि वह क्यों सेनाओं के मध्य में रथ को खड़ा करवाना चाहता है | अतः उन्होंने वैसा ही किया और फिर वे इस प्रकार बोले |