HI/BG 1.39: Difference between revisions

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Revision as of 15:19, 25 July 2020

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 39

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्मा: सनातना: ।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ॥ ३९॥

शब्दार्थ

कुल-क्षये—कुल का नाश होने पर; प्रणश्यन्ति—विनष्ट हो जाती हैं; कुल-धर्मा:—पारिवारिक परम्पराएँ; सनातना:—शाश्वत; धर्मे—धर्म; नष्टे—नष्ट होने पर; कुलम्—कुल को; कृत्स्नम्—सम्पूर्ण; अधर्म:—अधर्म; अभिभवति—बदल देता है; उत—कहा जाता है।

अनुवाद

कुल का नाश होने पर सनातन कुल-परम्परा नष्ट हो जाती है और इस तरह शेष कुल भी अधर्म में प्रवृत्त हो जाता है |

तात्पर्य

वर्णाश्रम व्यवस्था में धार्मिक परम्पराओं के अनेक नियम हैं जिनकी सहायता से परिवार के सदस्य ठीक से उन्नति करके आध्यात्मिक मूल्यों की उपलब्धि कर सकते हैं | परिवार में जन्म से लेकर मृत्यु तक के सारे संस्कारों के लिए वयोवृद्ध लोग उत्तरदायी होते हैं | किन्तु इन वयवृद्धों की मृत्यु के पश्चात् संस्कार सम्बन्धी पारिवारिक परम्पराएँ रुक जाती हैं और परिवार के जो तरुण सदस्य बचे रहते हैं वे अधर्ममय व्यसनों में प्रवृत्त होने से मुक्ति-लाभ से वंचित रह सकते हैं | अतः किसी भी कारणवश परिवार केवयोवृद्धों का वध नहीं होना चाहिए |