HI/BG 2.36: Difference between revisions
(Bhagavad-gita Compile Form edit) |
(No difference)
|
Revision as of 14:29, 28 July 2020
His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda
श्लोक 36
- j
शब्दार्थ
अवाच्य—कटु; वादान्—मिथ्या शब्द; च—भी; बहून्—अनेक; वदिष्यन्ति—कहेंगे; तव—तुम्हारे; अहिता:—शत्रु; निन्दन्त:—निन्दा करते हुए; तव—तुम्हारी; सामथ्र्यम्—सामथ्र्य को; तत:—उसकी अपेक्षा; दु:ख-तरम्—अधिक दुखदायी; नु—निस्सन्देह; किम्—और क्या है?
अनुवाद
तुम्हारे शत्रु अनेक प्रकार के कटु शब्दों से तुम्हारा वर्णन करेंगे और तुम्हारी सामर्थ्य का उपहास करेंगे | तुम्हारे लिए इससे दुखदायी और क्या हो सकता है?
तात्पर्य
प्रारम्भ में ही भगवान् कृष्ण को अर्जुन के अयाचित दयाभाव पर आश्चर्य हुआ था और उन्होंने इस दयाभाव को अनार्योचित बताया था | अब उन्होंने विस्तार से अर्जुन के तथाकथित दयाभाव के विरुद्ध कहे गये अपने वचनों को सिद्ध कर दिया है |