HI/BG 2.44: Difference between revisions
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Revision as of 11:34, 29 July 2020
श्लोक 44
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शब्दार्थ
भोग—भौतिक भोग; ऐश्वर्य—तथा ऐश्वर्य के प्रति; प्रसक्तानाम्—आसक्तों के लिए; तया—ऐसी वस्तुओं से; अपहृत-चेतसाम्—मोहग्रसित चित्त वाले; व्यवसाय-आत्मिका—²ढ़ निश्चय वाली; बुद्धि:—भगवान् की भक्ति; समाधौ—नियन्त्रित मन में; न—कभी नहीं; विधीयते—घटित होती है।
अनुवाद
जो लोग इन्द्रियभोग तथा भौतिक ऐश्र्वर्य के प्रति अत्यधिक आसक्त होने से ऐसी वस्तुओं से मोहग्रस्त हो जाते हैं, उनके मनों में भगवान् के प्रति भक्ति का दृढ़ निश्चय नहीं होता |
तात्पर्य
समाधि का अर्थ है “स्थिर मन |” वैदिक शब्दकोष निरुक्ति के अनुसार – सम्यग् आधीयतेऽस्मिन्नात्मतत्त्वयाथात्म्यम्– जब मन आत्मा को समझने में स्थिर रहता है तो उसे समाधि कहते हैं | जो लोग इन्द्रियभोग में रूचि रखते हैं अथवा जो ऐसी क्षणिक वस्तुओं से मोहग्रस्त हैं उनके लिए समाधि कभी भी सम्भव नहीं है | माया के चक्कर में पड़कर वे न्यूनाधिक पतन को प्राप्त होते हैं |