HI/BG 9.12: Difference between revisions

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Revision as of 15:31, 6 August 2020

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


श्लोक 12

j

शब्दार्थ

मोघ-आशा:—निष्फल आशा; मोघ-कर्माण:—निष्फल सकाम कर्म; मोघ-ज्ञाना:—विफल ज्ञान; विचेतस:—मोहग्रस्त; राक्षसीम्—राक्षसी; आसुरीम्—आसुरी; च—तथा; एव—निश्चय ही; प्रकृतिम्—स्वभाव को; मोहिनीम्—मोहने वाली; श्रिता:—शरण ग्रहण किये हुए।

अनुवाद

जो लोग इस प्रकार मोहग्रस्त होते हैं, वे आसुरी तथा नास्तिक विचारों के प्रति आकृष्ट रहते हैं | इस मोहग्रस्त अवस्था में उनकी मुक्ति-आशा, उनके सकाम कर्म तथा ज्ञान का अनुशीलन सभी निष्फल हो जाते हैं |

तात्पर्य

ऐसे अनेक भक्त हैं जो अपने को कृष्णभावनामृत तथा भक्ति में रत दिखलाते हैं, किन्तु अन्तःकरण से वे भगवान् कृष्ण को परब्रह्म नहीं मानते | ऐसे लोगों को कभी भी भक्ति-फल—भगवद्धाम गमन-प्राप्त नहीं होता | इसी प्रकार जो पुण्यकर्मों में लगे रहकर अन्ततोगत्वा इस भवबन्धन से मुक्त होना चाहते हैं, वे भी सफल नहीं हो पाते, क्योंकि वे कृष्ण का उपहास करते हैं | दूसरे शब्दों में, जो लोग कृष्ण पर हँसते हैं, उन्हें आसुरी या नास्तिक समझना चाहिए | जैसा कि सातवें अध्याय में बताया जा चुका है, ऐसे आसुरी दुष्ट कभी भी कृष्ण की शरण में नहीं जाते | अतः परमसत्य तक पहुँचने के उनके मानसिक चिन्तन उन्हें इस मिथ्या परिणाम को प्राप्त कराते हैं कि सामान्य जीव तथा कृष्ण एक समान हैं | ऐसी मिथ्या धारणा के कारण वे सोचते हैं कि अभी तो वह शरीर प्रकृति द्वारा केवल आच्छादित है और ज्योंही व्यक्ति मुक्त होगा, तो उसमें तथा ईश्र्वर में कोई अन्तर नहीं रह जाएगा | कृष्ण से समता का यह प्रयास भ्रम के कारण निष्फल हो जाता है | इस प्रकार का आसुरी तथा नास्तिक ज्ञान-अनुशीलन सदैव व्यर्थ रहता है, यही इस श्लोक का संकेत है | ऐसे व्यक्तियों के लिए वेदान्त सूत्र तथा उपनिषदों जैसे वैदिक वाङ्मय के ज्ञान का अनुशीलन सदा निष्फल होता है |

अतः भगवान् कृष्ण को सामान्य व्यक्ति मानना घोर अपराध है | जो ऐसा करते हैं वे निश्चित रूप से मोहग्रस्त रहते हैं, क्योंकि वे कृष्ण के शाश्र्वत रूप को नहीं समझ पाते | बृहद्विष्णुस्मृति का कथन है –

यो वेति भौतिकं देहं कृष्णस्य परमात्मनः |

स सर्वस्माद् बहिष्कार्यः श्रौतस्मार्तविधानतः |

मुखं तस्यावलोक्यापि सचेलं स्नानमाचरेत् ||

"जो कृष्ण के शरीर को भौतिक मानता है उसे श्रुति तथा स्मृति के समस्त अनुष्ठानों से वंचित कर देना चाहिए | यदि कोई भूल से उसका मुँह देख ले तो उसे तुरन्त गंगा स्नान करना चाहिए , जिसे छूत दूर हो सके |” लोग कृष्ण की हँसी उड़ाते हैं क्योंकि वे भगवान् से ईर्ष्या करते हैं | उनके भाग्य में जन्म-जन्मान्तर नास्तिक तथा असुर योनियों में रहे आना लिखा है | उनका वास्तविक ज्ञान सदैव के लिए भ्रम में रहेगा और धीरे-धीरे वे सृष्टि के गहनतम अन्धकार में गिरते जायेंगे |"