HI/BG 14.13: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:17, 11 August 2020
श्लोक 13
- अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च ।
- तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन ॥१३॥
शब्दार्थ
अप्रकाश:—अँधेरा; अप्रवृत्ति:—निष्क्रियता; च—तथा; प्रमाद:—पागलपन; मोह:—मोह; एव—निश्चय ही; च—भी; तमसि—तमोगुण; एतानि—ये; जायन्ते—प्रकट होते हैं; विवृद्धे—बढ़ जाने पर; कुरु-नन्दन—हे कुरुपुत्र।
अनुवाद
जब तमोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो हे कुरुपुत्र! अँधेरा, जड़ता, प्रमत्तता तथा मोह का प्राकट्य होता है |
तात्पर्य
जहाँ प्रकाश नहीं होता, वहाँ ज्ञान अनुपस्थित रहता है | तमोगुणी व्यक्ति किसी नियम में बँधकर कार्य नहीं करता | वह अकारण ही अपनी सनक के अनुसार कार्य करना चाहता है | यद्यपि उसमें कार्य करने की क्षमता होती है, किन्तु वह परिश्रम नहीं करता | यह मोह कहलाता है | यद्यपि चेतना रहती है, लेकिन जीवन निष्क्रिय रहता है | ये तमोगुण के लक्षण हैं |