HI/740615 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद पेरिस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"कुल मिलाकर, हम सदैव सत्त्वगुण, रजो-गुण, तमो-गुण के साथ घुलमिल जाते हैं। यही हमारी भौतिक स्थिति है। इसलिए कभी-कभी हम कृष्ण चेतना में आते हैं जब हम सत्व-गुण में होते हैं, तो कभी-कभी नीचे गिरते हैं जब तमो-गुण के हमले होते हैं, रजो-गुण के हमले होते हैं। अतः हमें इन गुणों से ऊपर होना होगा। त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन (भ.गी.२.४५)। अर्जुन ने सलाह दी ... कृष्ण ने उन्हें सलाह दी कि 'तुम इन तीनों गुणों से ऊपर हो जाओ'। तो यह कैसे किया जा सकता है? यह कृष्ण के बारे में सुनकर ही किया जा सकता है। यह है, नैर्गुण्यस्था रमन्ते स्म गुणानुकथने हरे:(श्री.भा.०२.०१.०७) । यदि आप स्वयं को केवल कृष्ण के बारे में सुनते हुए संलग्न करते हैं, तो आप निस्त्रैर्गुण्य हैं। यह प्रक्रिया है, सरल, कोई अन्य व्यवसाय नहीं है। इसलिए हमने आपको बहुत सी किताबें दी हैं। सोओ मत, एक भी पल बर्बाद मत कर। बेशक, आपको सोना होगा। इसे जितना संभव हो उतना कम करें। खाना, सोना, संभोग करना और बचाव करना - इसे कम करना।" |
740615 - प्रवचन श्री.भा.०२.०१.०७ - पेरिस |