HI/750801 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यू ऑरलियन्स में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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Revision as of 07:38, 15 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"मृत्यु के समय, आप क्या सोचते हैं, आप वैसा ही शरीर प्राप्त करते हैं। यह प्रकृति का नियम है। प्रकृति..यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् (भ.ग.८.६),कृष्ण कहते है। इसलिए हमें अपने भाव, अपने विचारों को प्रशिक्षित करना होगा। यदि हम हमेशा कृष्ण के विचारों में रहते हैं, तो स्वाभाविक रूप से मृत्यु के समय हम कृष्ण का स्मरण कर सकते हैं। यही सफलता है। तत्पश्चात तुरंत, त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति (भ.ग.४.९)। तुरंत ही आप को कृष्णलोक में स्थानांतरित कर दिया जाता है, और आपकी इच्छा के अनुसार, आप गोपियों या ग्वालबालों या गायों या बछड़ों के बीच हो जाते हैं। वे सभी समान हैं। कोई भी नहीं...यह आध्यात्मिक दुनिया है। यहाँ आदमी, औरत, गाय या पेड़ या फूल में अंतर है। नहीं। आध्यात्मिक दुनिया में ऐसा कोई अंतर नहीं है। वहाँ फूल भी भक्त है, जीवित है। फूल कृष्ण की सेवा फूल के रूप में करना चाहता है। बछड़ा कृष्ण की सेवा बछड़े के रूप में करना चाहता है। गोपियां कृष्ण की सेवा गोपी के रूप में करना चाहती हैं। वे सभी समान हैं, लेकिन बहुरूपता के अनुसार।"
७५०८०१ - प्रवचन श्री.भा. ०६.०१.४९ - न्यू ओर्लांस फार्म