HI/730908 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद स्टॉकहोम में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"तो कृष्ण कहते हैं: " जरा मेरे प्रति अपना स्नेह बढ़ाने करने का प्रयत्न करो। अभ्यास करो।" यह अधिक मुश्किल नहीं है। ठीक जैसे हमें यहाँ भौतिक जगत में किसी वस्तु के लिए आसक्ति होती है। कोई व्यापार करने के लिए अनुरक्त है, कोई स्त्री के प्रति आसक्त है, कोई पुरुष के प्रति आसक्त है, कोई धन संपत्ति के प्रति आसक्त है, कोई कला के प्रति आसक्त है, कोई (कुछ और के लिए )आसक्त है... कई सारी वस्तुएं। आसक्ति के कई विषय हैं। तो आसक्ति हमें है। इसको हम अस्वीकार नहीं कर सकते। हम सब। हम को किसी वस्तु के लिए कुछ आसक्ति है। वह आसक्ति कृष्ण के लिए स्थानांतरित कर देनी चाहिए। इसे कृष्ण भावना कहते हैं।" |
730908 - प्रवचन BG 07.01 at Uppsala University - स्टॉकहोम |