HI/Prabhupada 0158 - माँ की हत्या करने वाली सभ्यता: Difference between revisions
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नुनम् प्रमत्त: कुरुते विकर्म ([[Vanisource:SB 5.5.4|श्रीमद् भागवतम् ५.५.४]]) | विकर्म का मतलब है प्रतिबंधित कार्य, अपराधी कार्य । कार्य तीन प्रकार के होते हैं: कर्म, विकर्म, अकर्म। कर्म का मतलब है निर्धारित कर्तव्य। यही कर्म है। वैसे ही जैसे स्व कर्मणा । भगवद्गीता में स्व-कर्मणा तं अभ्यर्च्य ([[HI/BG 18.46|भ गी १८.४६]]) । हर किसी के निर्धारित कर्तव्य हैं । वह वैज्ञानिक समझ कहाँ है ? एेसा होना चाहिए ... मैं उस दिन बात कर रहा था, वैज्ञानिक विभाजन मानव समाज का । सबसे बुद्धिमान वर्ग, वे ब्राह्मण के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए । कम, थोड़़ा कम बुद्धिमान, वे प्रशासक के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए । कम बुद्धिमान, वे व्यापारियों, किसानों और गाय के रक्षक के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए । आर्थिक विकास के लिए गाय की सुरक्षा आवश्यकता होती है, लेकिन इन दुष्टों को पता नहीं है । आर्थिक विकास अब गाय की हत्या बन चुका है । ज़रा देखो, बदमाश सभ्यता । माफी मत माँगो । यह शास्त्र है । एेसा मत समझो कि मैं पश्चिमी सभ्यता की आलोचना कर रहा हूँ । यह शास्त्र कहता है । बहुत अनुभवी । | |||
तो इतने सारे आर्थिक विकास की वकालत कर रहे हैं, लेकिन उन्हें नहीं | |||
तो इतने सारे लोग आर्थिक विकास की वकालत कर रहे हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं है कि गाय संरक्षण करना आर्थिक विकास की वस्तुओं में से एक है। ये दुष्ट, वे नहीं जानते । वे सोचते हैं गाय की हत्या बेहतर है । बिल्कुल विपरीत । इसलिए कुरुते विकर्म । बस जीभ की छोटी सी संतुष्टि के लिए । तुम वही लाभ दूध से प्राप्त कर सकते हो, पर वे दुष्ट, क्योंकि वे पागल हैं, वह सोचते हैं कि गाय का खून पीना या खाना, उसके दूध पीने से बेहतर है । दूध कुछ भी नहीं, रक्त का परिवर्तन है, हर कोई जानता है । हर कोई जानता है । | |||
जैसे इंसान, माँ की तरह, जैसे ही बच्चा पैदा होता है, तुरंत... बच्चा पैदा होने से पहले, तुम माँ के स्तन में दूध की एक भी बूंद नहीं पाअोगे । एक युवा लड़की के, स्तन में दूध नहीं है । लेकिन जैसे ही बच्चे का जन्म होता है, तुरंत दूध है । तुरंत, अपने आप | यह भगवान की व्यवस्था है । क्योंकि बच्चे को भोजन की आवश्यकता है । भगवान की व्यवस्था देखिए । फिर भी, हम आर्थिक विकास के लिए कोशिश कर रहे हैं। एक बच्चे का जन्म होता है और भगवान का आर्थिक कार्यक्रम इतना अच्छा है, प्रकृति का आर्थिक कार्यक्रम कि तुरंत माँ दूध के साथ तैयार है.... यह आर्थिक विकास है । यही दूध गाय द्वारा आपूर्ति किया जाता है । वह वास्तव में माँ है, और यह बदमाश सभ्यता माँ को मार रही है । माँ की हत्या करने वाली सभ्यता । ज़रा देखो । तुम अपने जीवन की शुरुआत से अपनी माँ का स्तनपान करते आ रहे हो, और जब वह बूढी हो जाती है, अगर तुम सोचो की, "माँ तो बेकार बोझ है । उसका गला काटो," क्या यह सभ्यता है ? | |||
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020
Lecture on SB 5.5.3 -- Stockholm, September 9, 1973
नुनम् प्रमत्त: कुरुते विकर्म (श्रीमद् भागवतम् ५.५.४) | विकर्म का मतलब है प्रतिबंधित कार्य, अपराधी कार्य । कार्य तीन प्रकार के होते हैं: कर्म, विकर्म, अकर्म। कर्म का मतलब है निर्धारित कर्तव्य। यही कर्म है। वैसे ही जैसे स्व कर्मणा । भगवद्गीता में स्व-कर्मणा तं अभ्यर्च्य (भ गी १८.४६) । हर किसी के निर्धारित कर्तव्य हैं । वह वैज्ञानिक समझ कहाँ है ? एेसा होना चाहिए ... मैं उस दिन बात कर रहा था, वैज्ञानिक विभाजन मानव समाज का । सबसे बुद्धिमान वर्ग, वे ब्राह्मण के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए । कम, थोड़़ा कम बुद्धिमान, वे प्रशासक के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए । कम बुद्धिमान, वे व्यापारियों, किसानों और गाय के रक्षक के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए । आर्थिक विकास के लिए गाय की सुरक्षा आवश्यकता होती है, लेकिन इन दुष्टों को पता नहीं है । आर्थिक विकास अब गाय की हत्या बन चुका है । ज़रा देखो, बदमाश सभ्यता । माफी मत माँगो । यह शास्त्र है । एेसा मत समझो कि मैं पश्चिमी सभ्यता की आलोचना कर रहा हूँ । यह शास्त्र कहता है । बहुत अनुभवी ।
तो इतने सारे लोग आर्थिक विकास की वकालत कर रहे हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं है कि गाय संरक्षण करना आर्थिक विकास की वस्तुओं में से एक है। ये दुष्ट, वे नहीं जानते । वे सोचते हैं गाय की हत्या बेहतर है । बिल्कुल विपरीत । इसलिए कुरुते विकर्म । बस जीभ की छोटी सी संतुष्टि के लिए । तुम वही लाभ दूध से प्राप्त कर सकते हो, पर वे दुष्ट, क्योंकि वे पागल हैं, वह सोचते हैं कि गाय का खून पीना या खाना, उसके दूध पीने से बेहतर है । दूध कुछ भी नहीं, रक्त का परिवर्तन है, हर कोई जानता है । हर कोई जानता है ।
जैसे इंसान, माँ की तरह, जैसे ही बच्चा पैदा होता है, तुरंत... बच्चा पैदा होने से पहले, तुम माँ के स्तन में दूध की एक भी बूंद नहीं पाअोगे । एक युवा लड़की के, स्तन में दूध नहीं है । लेकिन जैसे ही बच्चे का जन्म होता है, तुरंत दूध है । तुरंत, अपने आप | यह भगवान की व्यवस्था है । क्योंकि बच्चे को भोजन की आवश्यकता है । भगवान की व्यवस्था देखिए । फिर भी, हम आर्थिक विकास के लिए कोशिश कर रहे हैं। एक बच्चे का जन्म होता है और भगवान का आर्थिक कार्यक्रम इतना अच्छा है, प्रकृति का आर्थिक कार्यक्रम कि तुरंत माँ दूध के साथ तैयार है.... यह आर्थिक विकास है । यही दूध गाय द्वारा आपूर्ति किया जाता है । वह वास्तव में माँ है, और यह बदमाश सभ्यता माँ को मार रही है । माँ की हत्या करने वाली सभ्यता । ज़रा देखो । तुम अपने जीवन की शुरुआत से अपनी माँ का स्तनपान करते आ रहे हो, और जब वह बूढी हो जाती है, अगर तुम सोचो की, "माँ तो बेकार बोझ है । उसका गला काटो," क्या यह सभ्यता है ?