HI/750804 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद डेट्रॉइट में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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Revision as of 07:07, 23 January 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः (भ.गी. ३.२७)। हम सोच रहे हैं कि ' मैं ही सब कुछ का स्वामी हूं।' यह तथ्य नहीं है। तथ्य यह है कि हमें किसी के तहत काम करना है। यह हमारी वास्तविक स्थिति है। जीवेर ' स्वरूप' हय नित्य कृष्ण दास (चै.च. मध्य २०.१०८-१०९)। हम कार्यकर्ता हैं। हम भोगी नहीं हैं। लेकिन दुर्भाग्य से हम भोग की स्थिति लेने की कोशिश कर रहे हैं। यही माया है। यही माया है। और अगर हम कृष्ण के निर्देशन में काम करने के लिए सहमत होते हैं, तो हमारा मूल जीवन पुनर्जीवित हो जाता है। यह आवश्यक है। कृष्ण भावनामृत का अर्थ है कि हम लोगों को चेतना को बदलने के लिए शिक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। अलग-अलग चेतना के तहत हमारी बहुत सारी इच्छाएं हैं। इसलिए एक इच्छा, ' मैं कृष्ण का अनंत सेवक हूं', इसे मुक्ति कहा जाता है, जैसे ही... कृष्ण कहते हैं, सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज (भ.गी. १८.६६)। यह मुक्ती है। यदि हम अन्य सभी इच्छाओं को छोड़ देते हैं और कृष्ण की इच्छाओं को स्वीकार करने के लिए सहमत होते हैं, कि मामेकं शरणं व्रज, ' तुम मेरे प्रति आत्मसमर्पण करो' , वह मुक्ती है; यही मुक्ति है।"
750804 - प्रवचन श्री.भा. ०६.०१.५१ - डेट्रॉइट