HI/751006 सुबह की सैर - श्रील प्रभुपाद डरबन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
प्रभुपाद: कुत्ता सोच रहा है, ' मैं स्वतंत्र हूँ,' यहाँ और वहाँ चल रहा है। जैसे ही मास्टर, ' चलो...' (हँसी) देखो। कुत्ता को कोई समझ नहीं है, ' मैं मुक्त की तरह कूद रहा था, लेकिन मैं स्वतंत्र नहीं हूं।' वह समझ नहीं है। तो अगर किसी इंसान में इतनी समझदारी नहीं है, तो उसके और कुत्ते में क्या अंतर है? हम्म? इस पर विचार किया जाना है। लेकिन उनके पास कोई समझ नहीं है, मस्तिष्क नहीं है, कोई शिक्षा नहीं है, और वे तब भी सभ्य रूप कहे जा रहे हैं। देखो। मूढ़ा। इसलिए मूढो नाभिजानाति (भ.गी. ७.२५)। पुष्ट कृष्ण: उन्हें लगता है कि यह आधुनिक तथाकथित सभ्यता सबसे सभ्य है, जो मानव कभी भी रहा है। प्रभुपाद: सभ्यता... यदि आप एक कुत्ते की स्थिति में रहते हैं, तो क्या वह सभ्यता है? पुष्ट कृष्ण: नहीं। |
751006 - सुबह की सैर - डरबन |