HI/690611 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यू वृन्दावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Nectar Drops from Srila Prabhupada |
जैसे मृत शरीर की सजावट की जाती है, उस मृत शरीर के पुत्र उसे देखके सोच सकते हैं, 'ओह, मेरे पिता मुस्कुरा रहे हैं ।' (हंसी) लेकिन वह नहीं जानता कि उसके पिता पहले से ही कहाँ चले गए हैं । आप देखते हैं ? तो यह भौतिक सभ्यता बस मृत शरीर को सजाने की तरह है । यह शरीर मर चुका है । यह एक तथ्य है । जब तक आत्मा है, यह काम कर रहा है, यह चल रहा है । बस आपके कोट की तरह । यह मृत है । जब तक यह आपके शरीर पर है, ऐसा लगता है कि कोट चल रहा है । कोट चल रहा है । लेकिन अगर कोई बहुत आश्चर्यचकित होता है, 'ओह, कोट कितना अच्छा चल रहा है !' (हंसी) वह नहीं जानता कि कोट हिल नहीं सकता । कोट मृत है । लेकिन क्योंकि वह व्यक्ति है जिसने कोट पहना है, इसलिए कोट चल रहा है, पैंट चल रहा है, जूता चल रहा है, टोपी चल रही है । इसी प्रकार, यह शरीर मृत है । उसकी गिनती हो चुकी है: यह मृत शरीर इतने समय के लिए रहेगा । इसे जीवन की अवधि कहा जाता है । लेकिन लोग इस मृत शरीर में रुचि रखते हैं । |
690611 - श्री.भा. १.५.१२-१३ - न्यू वृन्दावन - अमरीका |