HI/670316 - रायराम को लिखित पत्र, सैन फ्रांसिस्को: Difference between revisions
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१६ मार्च,१९६७ (हस्तलिखित)
मेरे प्रिय रायराम,
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि आप बहुत अच्छी तरह से कक्षाओं का संचालन कर रहे हैं और दर्शकों द्वारा कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब देने के लिए आपको कृष्ण बुद्धिमत्ता प्रदान कर रहे हैं। यह बहुत अच्छी खबर है। जितना अधिक विपरीत तत्वों का सफलतापूर्वक मुक़ाबला करते हैं तो यह समझा जाता है वह उतना ही कृष्णा चेतना में उन्नत होता है। सच्चे दिल से कृष्ण इस तरह के संवादों का मुकाबला करने के लिए पूरी बुद्धि देते हैं। कृष्ण के सच्चे सेवक बनो और कृष्ण तुम्हें सब कुछ देंगे। कृष्ण की कृपा से अब आप किसी अच्छे काम में लगे हैं। इसे पूरी ईमानदारी से करें और संगठन को अपनी पूरी मदद दे।
अब गीतोपनिषद के प्रश्न पर आते हुए, मुझे खेद है कि पुस्तक अभी छपाई के लिए तैयार नहीं है, हालाँकि मैंने पुस्तक को समाप्त कर दिया है। मैं इसे तुरंत या तो यु.स.ए. में या भारत में मुद्रित करवाना चाहता हूं लेकिन संपादन अभी तक समाप्त नहीं हुआ है। हॉवर्ड इसे करना चाहता है लेकिन उसके पास इसे खत्म करने या वर्गीकरण करने का समय नहीं है। आप भी विभिन्न तरीकों से लगे हुए हैं और मुझे नहीं पता कि इसे कैसे तैयार किया जाए। आप और हावर्ड दोनों इसे संपादित करना चाहते हैं, लेकिन कोई भी एक महीने के भीतर जल्दी से काम खत्म करने के लिए त्यार नहीं होता है। हस्तलेख पहले से ही तैयार है बस यह परिष्करण स्पर्श का इंतजार कर रहा है। मैं भगवान चैतन्य की शिक्षाओं को भी छापना चाहता हूं। हमें अपनी पुस्तकों को यथासंभव प्रकाशित करना चाहिए क्योंकि इससे हमारी प्रतिष्ठा बन जाएगी। बैक टू गोडहेड समाज के लिए जीवन और आत्मा होना चाहिए। कृपया मुझे अपना कार्यक्रम बताएं। क्या आपने प्रकाशक से गीतोपनिषद का पहला अध्याय वापस ले लिया है जिसे आपने दिया था? मैंने आपसे कई बार इस बारे में पूछा है लेकिन मुझे आपसे कोई जवाब नहीं मिला है। कृपया इसे वापस लें।
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