HI/690424 बातचीत - श्रील प्रभुपाद बॉस्टन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690424R3-BOSTON_ND_01.mp3</mp3player>|"तो वर्तमान समय में हम कृष्ण के साथ अपने शाश्वत संबंधों को भूल रहे हैं। फिर, अच्छी संगति के द्वारा, निरंतर जप, श्रवण, स्मरण से, हम फिर से अपनी पुरानी चेतना को पुनः जागृत करते हैं। इसे कृष्ण चेतना कहते हैं। इसलिए विस्मरण अद्भुत नहीं है। स्वाभाविक है, हम भूल जाते हैं। लेकिन अगर हम निरंतर संपर्क बनाए रखते हैं, तो हम भूल नहीं सकते हैं। इसलिए कृष्ण चेतना, भक्तों, और जप, शास्त्र की निरंतर पुनरावृत्ति के इस संघ, जो हमें बिना भूल के बरकरार रखेंगे।"|Vanisource:690424 - Conversation C - Boston|690424 - बातचीत - बॉस्टन}}
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{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/690423 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बफैलो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690423|HI/690424b बातचीत - श्रील प्रभुपाद बॉस्टन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690424b}}
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Latest revision as of 11:12, 28 July 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"वर्तमान समय में हम कृष्ण के साथ अपने शाश्वत संबंधको भूल रहे हैं। तत्पश्चात, अच्छी संगति के द्वारा, निरंतर जप, श्रवण, स्मरण से, हम अपनी पुरातन चेतना को पुनः जागृत करते हैं। इसे कृष्ण भावनामृत कहते हैं। इसलिए विस्मरण अद्भुत नहीं है। स्वाभाविक है, हम भूल जाते हैं। परंतु यदि हम निरंतर संपर्क बनाए रखते हैं, तो हम भूल नहीं सकते हैं। इसलिए कृष्ण भावनामृत आंदोलन, भक्तों का संग, तथा जप, शास्त्र की निरंतर पुनरावृत्ति का संघ है, जो हमें कृष्ण को भूलने नहीं देता तथा हमें हमारी वास्तविक चेतना में रखता है।"
690424 - बातचीत - बॉस्टन