HI/760217 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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<!-- END NAVIGATION BAR -->किसी व्यक्ति को झूठा अभिमान नहीं करना चाहिए। भौतिक जीवन में हर कोई झूठा अभिमान करता है। हर कोई सोच रहा है, आधयो अस्मि धनवान अस्मि को 'स्ति मम समः। हर कोई। यह व्याधि है। 'मैं सबसे अमीर हूँ', ' मैं शक्तिशाली हूं', 'मैं बहुत बुद्धिमान हूं'। सब कुछ, 'मैं हूँ'। इसे अहंकार कहते हैं। अहंकार विमूढात्मा कर्ताहम इति मन्यते (भ.गी. ०३.२७)। यह झूठी प्रतिष्ठा, जब कोई झूठी वस्तुओं में लीन हो जाता है, तो वह विमूढ बन जाता है, दुष्ट बन जाता है। अहंकार विमूढात्मा कर्ताहम इति मन्यते। यह झूठी प्रतिष्ठा है। हमें इस झूठी प्रतिष्ठा को त्यागना होगा।"|Vanisource:760217 - Lecture SB 07.09.10 - Mayapur|760217 - प्रवचन श्री.भा. ०७.०९.१० - मायापुर}} |
Latest revision as of 02:37, 29 January 2022
किसी व्यक्ति को झूठा अभिमान नहीं करना चाहिए। भौतिक जीवन में हर कोई झूठा अभिमान करता है। हर कोई सोच रहा है, आधयो अस्मि धनवान अस्मि को 'स्ति मम समः। हर कोई। यह व्याधि है। 'मैं सबसे अमीर हूँ', ' मैं शक्तिशाली हूं', 'मैं बहुत बुद्धिमान हूं'। सब कुछ, 'मैं हूँ'। इसे अहंकार कहते हैं। अहंकार विमूढात्मा कर्ताहम इति मन्यते (भ.गी. ०३.२७)। यह झूठी प्रतिष्ठा, जब कोई झूठी वस्तुओं में लीन हो जाता है, तो वह विमूढ बन जाता है, दुष्ट बन जाता है। अहंकार विमूढात्मा कर्ताहम इति मन्यते। यह झूठी प्रतिष्ठा है। हमें इस झूठी प्रतिष्ठा को त्यागना होगा।"|Vanisource:760217 - Lecture SB 07.09.10 - Mayapur|760217 - प्रवचन श्री.भा. ०७.०९.१० - मायापुर}}