HI/660727 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660727BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"वैदिक शास्त्रों में परम पुरषोत्तम भगवान को सर्वोच्च मार्गदर्शक कहा गया है। नित्यो नित्यानां चेतनस चेतनानाम। नित्य का अर्थ है शाश्वत, और नित्यानाम का अर्थ है, अन्य शाश्वत जीव। हम वे अन्य शाश्वत जीव हैं। एक, वह एक शाश्वत... एको बहुनाम विदधाति कामान। दो प्रकार के शाश्वत होते हैं। हम जो जीवात्मा है, हम भी शाश्वत हैं, और परम पुरुषोत्तम भगवान भी शाश्वत हैं। जहाँ तक शाश्वतता का संबंध है, हम गुणात्मक रूप से सामान हैं। वे शाश्वत हैं और हम भी शाश्वत हैं। सच्चिदानन्दविग्रह: (ब्र.सं. ५.१) । वे भी पूर्ण आनन्दमय हैं, और हम भी आनन्द से परिपूर्ण हैं, क्योंकि हम उन्हीं के गुण के अंश हैं। परन्तु वे हमारे अधिनायक हैं।"।|Vanisource:660727 - Lecture BG 04.11 - New York|660727 - प्रवचन भ.गी. ४.११ - न्यूयार्क}} |
Latest revision as of 01:24, 4 March 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"वैदिक शास्त्रों में परम पुरषोत्तम भगवान को सर्वोच्च मार्गदर्शक कहा गया है। नित्यो नित्यानां चेतनस चेतनानाम। नित्य का अर्थ है शाश्वत, और नित्यानाम का अर्थ है, अन्य शाश्वत जीव। हम वे अन्य शाश्वत जीव हैं। एक, वह एक शाश्वत... एको बहुनाम विदधाति कामान। दो प्रकार के शाश्वत होते हैं। हम जो जीवात्मा है, हम भी शाश्वत हैं, और परम पुरुषोत्तम भगवान भी शाश्वत हैं। जहाँ तक शाश्वतता का संबंध है, हम गुणात्मक रूप से सामान हैं। वे शाश्वत हैं और हम भी शाश्वत हैं। सच्चिदानन्दविग्रह: (ब्र.सं. ५.१) । वे भी पूर्ण आनन्दमय हैं, और हम भी आनन्द से परिपूर्ण हैं, क्योंकि हम उन्हीं के गुण के अंश हैं। परन्तु वे हमारे अधिनायक हैं।"। |
660727 - प्रवचन भ.गी. ४.११ - न्यूयार्क |