HI/690308 - सत्स्वरूप को लिखित पत्र, हवाई: Difference between revisions

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'''<big>[[Vanisource:690308 - Letter to Satsvarupa written from San Francisco|Original Vanisource page in English]]</big>'''
'''<big>[[Vanisource:690308 - Letter to Satsvarupa written from Hawaii|Original Vanisource page in English]]</big>'''
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8 मार्च, 1969
 
 


मेरे प्रिय सत्स्वरूप,
मेरे प्रिय सत्स्वरूप,


कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो और उन्हें मेरी प्रिय बेटी श्रीमती जदुरानी को भी दो। मुझे तुम्हारा 2 फरवरी,1969  का पत्र मिल गया है और 5 फरवरी, का भी। अप्रैल के पहले सप्ताह में मेरा न्यू यॉर्क जाने का विचार है, तो तुम अपनी तय गोष्ठियां दिनांक 24 को रख सकते हो चूंकि तब तक मैं बॉस्टन जाने को तैयार रहुंगा।
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो और उन्हें मेरी प्रिय बेटी श्रीमती जदुरानी को भी दो। मुझे तुम्हारा 2 फरवरी,1969  का पत्र मिल गया है और 5 फरवरी, का भी। अप्रैल के पहले सप्ताह में मेरा न्यू यॉर्क जाने का विचार है, तो तुम अपनी तय गोष्ठियां दिनांक 24 को रख सकते हो चूंकि तब तक मैं बॉस्टन जाने को तैयार रहुंगा।
सूर्य के प्रकाश एवं समुद्री हवा के साथ, यह हवाई का मौसम अत्यन्त स्वास्थ्यवर्धक है। मैं सोचता हूँ कि यदि जदुरानी का इस मौसम में आना संभव हो, तो वह भलि भांति अपना स्वास्थ्य लाभ कर सकती है। इस प्रस्ताव पर आपस में चर्चा करो और इस संदर्भ में तुम गोविन्द दासी व गौरसुन्दर के साथ पत्राचार कर सकते हो।
सूर्य के प्रकाश एवं समुद्री हवा के साथ, यह हवाई का मौसम अत्यन्त स्वास्थ्यवर्धक है। मैं सोचता हूँ कि यदि जदुरानी का इस मौसम में आना संभव हो, तो वह भलि भांति अपना स्वास्थ्य लाभ कर सकती है। इस प्रस्ताव पर आपस में चर्चा करो और इस संदर्भ में तुम गोविन्द दासी व गौरसुन्दर के साथ पत्राचार कर सकते हो।
तुम्हारे प्रश्न के बारे मेः मुझे यह नहीं स्मरण है कि कभी रायराम नें कभी मेरे कमरे में बहुत उच्च स्वर में जप किया हो, न तो वह कभी मेरे कमरे रहा ही है और न ही मैंने कभी भी उसे ऊंचे स्वर में जप करने से मना किया है। मुझे मालुम नहीं कि ये समाचार कैसे फैलते हैं। ऐसी कोई बात नहीं है कि जप शांति से करना चाहिए और कीर्तन अलग तरह से किया जाना चाहिए। ऊंचे स्वर में हो या फिर शांति से, सभी कुछ ठीक है। कोई भी रोक-टोक नहीं है। एक बात बस यह है कि, हमें प्रतिध्वनि को स्पष्ट रूप से सुनते हुए, जप बहुत सतर्कता से करना चाहिए।
तुम्हारे प्रश्न के बारे मेः मुझे यह नहीं स्मरण है कि कभी रायराम नें कभी मेरे कमरे में बहुत उच्च स्वर में जप किया हो, न तो वह कभी मेरे कमरे रहा ही है और न ही मैंने कभी भी उसे ऊंचे स्वर में जप करने से मना किया है। मुझे मालुम नहीं कि ये समाचार कैसे फैलते हैं। ऐसी कोई बात नहीं है कि जप शांति से करना चाहिए और कीर्तन अलग तरह से किया जाना चाहिए। ऊंचे स्वर में हो या फिर शांति से, सभी कुछ ठीक है। कोई भी रोक-टोक नहीं है। एक बात बस यह है कि, हमें प्रतिध्वनि को स्पष्ट रूप से सुनते हुए, जप बहुत सतर्कता से करना चाहिए।
मुझे टेप संख्या 6 की टंकण करी हुई प्रति मिल गई है, और कल मैं टेप संख्या 7 भेजुंगा।
मुझे टेप संख्या 6 की टंकण करी हुई प्रति मिल गई है, और कल मैं टेप संख्या 7 भेजुंगा।
मैं आशा करता हूँ कि तुम ठीक हो और जदुरानी का स्वास्थ्य भी कुछ बेहतर हो। उसे भली-भांति आराम करना चाहिए। कृपया वहां के सभी भक्तों तक मेरे आशीर्वचन व शुभकामनाएं पहुंचाओ।
मैं आशा करता हूँ कि तुम ठीक हो और जदुरानी का स्वास्थ्य भी कुछ बेहतर हो। उसे भली-भांति आराम करना चाहिए। कृपया वहां के सभी भक्तों तक मेरे आशीर्वचन व शुभकामनाएं पहुंचाओ।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
 
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,<br/>
 
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी<br/>
 
*यहाँ संलग्न

Latest revision as of 07:04, 11 May 2022

His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


8 मार्च, 1969


मेरे प्रिय सत्स्वरूप,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो और उन्हें मेरी प्रिय बेटी श्रीमती जदुरानी को भी दो। मुझे तुम्हारा 2 फरवरी,1969 का पत्र मिल गया है और 5 फरवरी, का भी। अप्रैल के पहले सप्ताह में मेरा न्यू यॉर्क जाने का विचार है, तो तुम अपनी तय गोष्ठियां दिनांक 24 को रख सकते हो चूंकि तब तक मैं बॉस्टन जाने को तैयार रहुंगा।

सूर्य के प्रकाश एवं समुद्री हवा के साथ, यह हवाई का मौसम अत्यन्त स्वास्थ्यवर्धक है। मैं सोचता हूँ कि यदि जदुरानी का इस मौसम में आना संभव हो, तो वह भलि भांति अपना स्वास्थ्य लाभ कर सकती है। इस प्रस्ताव पर आपस में चर्चा करो और इस संदर्भ में तुम गोविन्द दासी व गौरसुन्दर के साथ पत्राचार कर सकते हो।

तुम्हारे प्रश्न के बारे मेः मुझे यह नहीं स्मरण है कि कभी रायराम नें कभी मेरे कमरे में बहुत उच्च स्वर में जप किया हो, न तो वह कभी मेरे कमरे रहा ही है और न ही मैंने कभी भी उसे ऊंचे स्वर में जप करने से मना किया है। मुझे मालुम नहीं कि ये समाचार कैसे फैलते हैं। ऐसी कोई बात नहीं है कि जप शांति से करना चाहिए और कीर्तन अलग तरह से किया जाना चाहिए। ऊंचे स्वर में हो या फिर शांति से, सभी कुछ ठीक है। कोई भी रोक-टोक नहीं है। एक बात बस यह है कि, हमें प्रतिध्वनि को स्पष्ट रूप से सुनते हुए, जप बहुत सतर्कता से करना चाहिए।

मुझे टेप संख्या 6 की टंकण करी हुई प्रति मिल गई है, और कल मैं टेप संख्या 7 भेजुंगा।

मैं आशा करता हूँ कि तुम ठीक हो और जदुरानी का स्वास्थ्य भी कुछ बेहतर हो। उसे भली-भांति आराम करना चाहिए। कृपया वहां के सभी भक्तों तक मेरे आशीर्वचन व शुभकामनाएं पहुंचाओ।

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,

ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी

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