HI/710224 - मीनकेतन को लिखित पत्र, गोरखपुर: Difference between revisions
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24 फरवरी, 1971
हैमिल्टन, ओंटारियो; कनाडा
मेरे प्रिय मीनकेतन,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मैं 1 फरवरी, 1971 के तुम्हारे पत्र के लिए तुम्हें धन्यवाद करता हूँ और मैंने इस पर ध्यान दिया है। मैं यह जानकर बहुत प्रसन्न हूँ कि तुम अब हैमिल्टन केन्द्र में हो और किस प्रकार वहां हमारे आंदोलन की सराहना हो रही है। तो धर्मराज व अन्यों के साथ मिलकर उत्साहपूर्वक, इस आंदोलन को आगे बढ़ाने एवं हैमिल्टन मंदिर एक बड़ी सफलता बनाने के लिए कार्य करो। कृष्ण तुम्हारे ह्रदय में हैं और जितने तुम शरणागत होगे उतना ही उत्तरदायित्व वे स्वयं ले लेंगे। और तुम्हारी निष्ठा को देखते हुए वे तुम्हें अपनी सेवा में अधिकाधिक वृद्धि करने के लिए सारी सुविधाएं दिलाएंगे। तुम लिखते हो कि तुम यौन जीवन के अस्थायी विचारों में बहुत अधिक मग्न रहते हो। यदि ऐसी बात है तो शायद तुम्हें विवाह करवा लेना चाहिए। कृष्ण भावनामृत में हम कृत्रिम रूप से किसी इच्छा को दबाया नहीं करते। बल्कि, हमारा सिद्धांत है कि प्रत्येक वस्तु कृष्ण की सेवा में उपयोग में लायी जा सकती है। मेरे गुरु महाराज ने इस आंदोलन के प्रचार हेतु सन्न्यासी बनाए थे। और मैं गृहस्थ दम्पत्ति बना रहा हूँ जो भगवान चैतन्य महाप्रभू के संदेश का प्रचार कितने अच्छे ढ़ंग से कर रहे हैं। तो यदि तुम्हारा ऐसा रुझान है तो तुम एक उपयुक्त युवती खोज सकते हो और तब तुम्हें विवाह के लिए मेरी अनुमति है। तुम्हारा नाम मीनकेतन है। मीनकेतन भगवान नित्यनन्द के एक महान भक्त थे।
कृपया वहां बाकी सब को मेरे आशीर्वाद दो। आशा करता हूँ कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त होगा।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी,
ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी
एसीबीएस/एडीबी
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