HI/720806 - दामोदर को लिखित पत्र, लंदन: Difference between revisions
No edit summary |
m (Kritika moved page HI/720806 - दामोदर को पत्र, लंदन to HI/720806 - दामोदर को लिखित पत्र, लंदन) |
(No difference)
|
Latest revision as of 16:43, 14 May 2022
6 अगस्त, 1972,
मेरे प्रिय दामोदर,
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। मुझे तुम्हारा दिनांक 30 जुलाई, 1972 का पत्र मिला और मैंने उसे ध्यानपूवर्क पढ़ा है। बुक फंड, बैक टू गॉडहेड फंड एवं स्पिरिचुअल स्काई से अगरबत्ती के प्रति तुम्हारे ऋण के बारे में मैं कहना चाहता हूँ कि ये ऋण चुकाए जाने चाहिएं। यह आवश्यक कार्य है। प्रचार-प्रसार के हमारे कार्स के साथ-साथ हमें आर्थिक मामलों को भी अवश्य ही ध्यान देना होगा। अन्यथा सबकुछ नष्ट हो जाएगा और प्रहसन कहाएगा। यदि आर्थिक स्थिति सुचारु है तो समझा जा सकता है कि लक्ष्मी दयालु हैं, चूंकि उनके पति नारायण की सेवा अच्छे से हो रही है। यदि लक्ष्मी की कृपा नहीं हो रही है तो हमें निश्चय ही अपने प्रचार कार्य में वृद्धि कर परम पुरुष भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास करना होगा।
मैं भारत में हमारे खाद्यान्न वितरण कार्यक्रम से सम्बन्धित अनेक दस्तावेज़ यहां संलग्न कर रहा हूँ और मैंने रूपानुग गोस्वामी व आत्रेय ऋषि को तुमसे सलाह करने का सुझाव दिया है। और तुम तीनों वहां वॉशिंगटन डी.सी. में महत्त्वपूर्ण नेताओं के पास सरकार से खाद्यान्न व अन्य गुरुत्वपूर्ण सहायता प्राप्त करने के लिए जाना। चूंकि सितम्बर में मैं आसपास ही रहूंगा, तो यदि तुम वॉशिंगटन में किन्हीं बड़े सरकारी नेताओं के साथ भेंट रखवा सको तो मुझे न्यु वृंदावन से वहां चले आने में प्रसन्नता होगी।
जहां तक इमारत खरीदने की बात है, तो यदि वह बहुत अधिक उद्यमपूर्ण कार्य है, फिर तुम किस प्रकार कर पाओगे। अगर तुमपर बुक फंड व स्पिरिचुअल स्काई के इतने अधिक ऋण हैं, तो तुम बुक फंड पर और अधिक ऋण कैसे ला सकते हो। हम इमारतों के स्वामित्व के पीछे नहीं हैं। हमारा वास्तविक व्यवसाय तो कृष्णभावनामृत का विस्तृत प्रचार व प्रसार करना है। चूंकि वॉशिंगटन डी.सी. तुम्हारे देश की राजधानी है, इसलिए यह देश के नेताओं के मध्य प्रचार करने की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण जगह है। इस कार्य के साथ-साथ संकीर्तन व पुस्तक वितरण गतिविधियों पर ध्यान केन्द्रित करो। और यदि तुम खरीददारी करने से पहले एक ठोस आर्थिक नींव बन जाने तक रुक जाओ तो उसमें क्या हर्ज है। लेकिन यदि हम बड़ी-बड़ी इमारतों व सजावटों को खरीदने के लिए धन संग्रह करने में ही अपना सारा समय लगा दें, तो उसका क्या मूल्य है। निर्माताओं व सज्जाकारों से अधिक मेरी रुचि प्रचारकों में है। किन्तु यदि तुम्हें लगता है कि तुम सक्षम हो और सुअवसर है, तो तुम खरीद सकते हो। मुझे कोई आपत्ति नहीं है। जब मैं सितम्बर में आऊंगा, तब यदि तुमने मुझे न्यौता दिया, तो मैं जगन्नाथ विग्रहों की स्थापना कर सकता हूँ। यदि तुम्हें युकेलिप्टस की टहनियां मिलें तो तुम मुझे भेज सकते हो। फिर भले में विश्व में कहीं भी हूँ। इस प्रकार तुम्हारे कारण मेरे पास हमेशा अच्छी दातून रहेंगे। युकेलिप्टस सर्वोत्तम है।
आशा है कि यह तुम्हें अच्छे स्वास्थ्य में प्राप्त हो।
सर्वदा तुम्हारा शुभाकाँक्षी
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
- HI/1972 - श्रील प्रभुपाद के पत्र
- HI/श्रील प्रभुपाद के सभी पत्र हिंदी में अनुवादित
- HI/1972 - श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र
- HI/1972-08 - श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र
- HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र जो लिखे गए - यूरोप से
- HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र जो लिखे गए - यूरोप, इंगलैंड - लंदन से
- HI/श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र - यूरोप
- HI/श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र - यूरोप, इंगलैंड - लंदन
- HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र - दामोदर को
- HI/1972 - श्रील प्रभुपाद के पत्र जिन्हें स्कैन की आवश्यकता है
- HI/सभी हिंदी पृष्ठ