HI/750404b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७५ Category:HI/अ...") |
(No difference)
|
Latest revision as of 06:10, 24 May 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"अब हम, विष्णु के अवयवभूत अंश होने के नाते, कृष्ण . . . कृष्ण व्यक्तिगत रूप से कहते हैं, ममैवांशाः। तो अगर कृष्ण इस सृजन और विनाश से प्रभावित नहीं हैं, तो हम, कृष्ण के अवयवभूत अंश होने के नाते, हमें इस सृजन और विनाश से क्यों प्रभावित होना चाहिए? हम विनाश से बहुत डरते हैं, और हम कई वैज्ञानिक, तथाकथित वैज्ञानिक तरीकों की खोज करने की कोशिश कर रहे हैं कि हम कैसे नष्ट नहीं हो सकते हैं। यह झुकाव क्यों है कि हम नष्ट नहीं हो सकते हैं? क्योंकि हम कृष्ण के अवयवभूत अंश हैं, इसलिए जीवन की अनंतता हमारी अभीप्सा है। यही प्रमाण है कि हम . . . जैसे कृष्ण शाश्वत हैं, वैसे ही, हम भी शाश्वत हैं, लेकिन परिस्थितिजन्य रूप से अब हम इस भौतिक दुनिया में डाल दिए गए हैं।" |
750404 - प्रवचन चै. च. आदि ०१.११ - मायापुर |