HI/690328c प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हवाई में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next)) |
No edit summary |
||
Line 5: | Line 5: | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/690328b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हवाई में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690328b|HI/690330 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हवाई में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690330}} | {{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/690328b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हवाई में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690328b|HI/690330 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हवाई में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690330}} | ||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | <!-- END NAVIGATION BAR --> | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690328SB-HAWAII_ND_03.mp3</mp3player>|" | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690328SB-HAWAII_ND_03.mp3</mp3player>|"यह कृष्ण भावनाभावित आंदोलन बढ़ रहा है क्योंकि यह स्वाभाविक है। हर कोई पिता एवम पुत्र के समान ही ईश्वर का हिस्सा है। रक्त संबंध के कारण यहां प्राकृतिक आत्मीयता है। उस शिशु के समान जो अपनी माता से स्नेह करता है। बच्चे को माँ से स्नेह है क्योंकि बच्चे को सदैव माँ से स्वाभाविक स्नेह प्राप्त हुआ। मेरा कहने का अर्थ है, शिशु ने माँ के साथ चलना सीखा है। इसी तरह, आप सभी भगवान के पुत्र हैं। हमें भगवान के लिए प्राकृतिक आत्मीयता मिली है। दुर्भाग्य से, आप भूल गए हैं। यह हमारी स्थिति है। यह हमारी स्थिति है। माया।"|Vanisource:690328 - Lecture SB 01.02.06 - Hawaii|690328 - प्रवचन श्रीमद भागवतम ०१.०२.०६ - हवाई}} |
Latest revision as of 08:15, 7 September 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यह कृष्ण भावनाभावित आंदोलन बढ़ रहा है क्योंकि यह स्वाभाविक है। हर कोई पिता एवम पुत्र के समान ही ईश्वर का हिस्सा है। रक्त संबंध के कारण यहां प्राकृतिक आत्मीयता है। उस शिशु के समान जो अपनी माता से स्नेह करता है। बच्चे को माँ से स्नेह है क्योंकि बच्चे को सदैव माँ से स्वाभाविक स्नेह प्राप्त हुआ। मेरा कहने का अर्थ है, शिशु ने माँ के साथ चलना सीखा है। इसी तरह, आप सभी भगवान के पुत्र हैं। हमें भगवान के लिए प्राकृतिक आत्मीयता मिली है। दुर्भाग्य से, आप भूल गए हैं। यह हमारी स्थिति है। यह हमारी स्थिति है। माया।" |
690328 - प्रवचन श्रीमद भागवतम ०१.०२.०६ - हवाई |