HI/750701 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद डेन्वर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भक्ति का अर्थ है शुद्धिकरण प्रक्रिया। हम अशुद्ध हैं। क्योंकि हम अशुद्ध हैं, इसलिए हम इतने कष्टों, जीवन की इतनी दयनीय स्थिति से गुजर रहे हैं। अन्यथा हम आत्मा हैं, आनंदमयो 'भ्यासात (वेदांत सूत्र १.१.१२)। हमारी स्थिति आनंदमय है। आनंदमय, वेदांत-सूत्र कहता है, आनंदमय। "स्वभाव से, आत्मा आनंदमय है, हमेशा मस्ती से भरा हुआ है।" आप कृष्णा को देखिये। कृष्ण ख़ुशी से भरे हुए हैं। हमेशा आप कृष्ण के चित्रों को देखते हैं, वे या तो चरवाहों के संग खेल रहे हैं या फिर किसी दानव को मार रहें हैं, वे हंस रहे हैं, वे बड़ी विनोद से मार रहें है। और गोपियों और राधारानी के संग की क्या बात करें? क्योंकि वह सच-चिद-आनंद-विग्रह: हैं (ब्र. सं. ५.१), हमेशा खुशी और आनंद से भरा हुआ। और हम भी कृष्ण के अंश हैं। इसलिए हमारी स्थिति वही है, शायद छोटे पैमाने पर। स्थिति वही है, आनंदमयो 'भ्यासात (वेदांत सूत्र १.१.१२) आनंदमय।"
750701 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.१८ - डेन्वर