HI/Prabhupada 0838 - सब कुछ शून्य हो जाएगा जब भगवान नहीं रहते: Difference between revisions

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731201 - Lecture SB 01.15.21 - Los Angeles

प्रद्युम्न: अनुवाद: "मेरे हाथ में वही गाणड़ीव धनुष है, वही तीर, वही रथ वही घोड़ों द्वारा चलाया गया, और मैं उनका उपयोग कर रहा हूँ वही अर्जन बनकर जिसे सभी राजा सम्मान देते हैं । लेकिन भगवान कृष्ण की अनुपस्थिति में, सभी, एक पल में शून्य हो गए हैं। यह बिल्कुल वैसे ही है जैसे राख पर घी की ड़ालना एक जादू की छड़ी से पैसा जमा करना या बंजर भूमि पर बीज बोना (श्री भ १।१।५।२१) । "

प्रभुपाद: बहुत महत्वपूर्ण श्लोक, हम्? तद अभूद असद ईष रिक्तम । सब कुछ शून्य हो जाएगा जब भगवान नहीं रहते । बस । आधुनिक सभ्यता के पास सब कुछ है, लेकिन भगवान चेतना के बिना, किसी भी क्षण यह खत्म हो जाएगा। और लक्षण हैं ... किसी भी पल में । वर्तमान समय में, यह नास्तिक सभ्यता, जैसे ही युद्ध की घोषणा होती है< अमेरिका परमाणु बम गिराने के लिए तैयार है, रूस भी ... पहले राष्ट्र जो परमाणु बम गिराएगा, वह विजयी हो जाएगा। कोई भी विजयी नहीं होगा, क्योंकि दोनों गिराने के लिए तैयार हैं । अमेरिका खत्म हो जाएगा और रूस खत्म हो जाएगा। यही स्थिति है। तो तुम सभ्यता की उन्नति कर सकते हो, वैज्ञानिक सुधार, आर्थिक विकास, लेकिन अगर यह नास्तिक है, किसी भी क्षण यह खत्म हो जाएगा। किसी भी क्षण में। जैसे रावण की तरह। रावण, हिरण्यकशिपु, वे राक्षस थे, नास्तिक राक्षस । रावण बहुत विद्वान था वैदिक ज्ञान में और बहुत शक्तिशाली भौतिक रूप से । उसने अपनी राजधानी को सोना से ढक दिया, सभी इमारतें और सब कुछ । यह है....यह माना जाता है कि रावण का भाई एक राजा था ....दुनिया के दूसरे छोर पर । तो यह मेरा सुझाव है ... मैं नहीं कहता कि यह बहुत ही वैज्ञानिक सबूत है । तो दुनिया के दूसरी तरफ ... रावण सीलोन में था और दुनिया के दूसरी तरफ, अगर तुम रेल से जाते हो, यह ब्राजील पर अाता है । और माना जाता है कि ब्राजील में सोने की खानें हैं । और यह रामायण में कहा जाता है कि रावण का भाई दुनिया के दूसरे छोर पर रह रहा था, और रामचंद्र रेल से गए । तो ध्यह यान में रखते हुए मान सकते हैं कि रावण नें ब्राजील से सोने की बड़ी मात्रा में आयात की, और उसे बड़े, बड़े घरों में बदल दिया। तो रावण इतना शक्तिशाली था कि उसने अपनी राजधानी बनाई स्वरण-लंका, "सोने के बनी राजधानी।" जैसे एक आदमी तुम्हारे देश अाता है अविकसित देश से न्यूयॉर्क या किसी भी शहर, जब वे बड़ी, बड़ी गगनचुंबी इमारत को देखते हैं, वे चकित हो जाते हैं। हालांकि गगनचुंबी इमारतें आजकल हर जगह हैं, पूर्व में यह बहुत अद्भुत था। तो हम बहुत अद्भुत कुछ बना सकते हैं, लेकिन हमें रावण का उदाहरण लेना चाहिए । रावण भौतिक दृष्टि से बहुत उन्नत था, और उसे पर्याप्त रूप से वैदिक ज्ञान था। वह एक ब्राह्मण का बेटा था । सब कुछ था। लेकिन केवल एकमात्र गलती कि वह राम की परवाह नहीं करता था। यही एकमात्र गलती है। "ओह, रामा क्या है ? मैं उसकी परवाह नहीं करता । स्वर्ग पहुँचने के लिए यज्ञ और कर्मकांड समारोह की कोई जरूरत नहीं है। " रावण ने कहा, "मैं चंद्रमा ग्रह जाने के लिए एक सीढ़ी का निर्माण करूँगा । तुम क्यों इस तरह या उस तरह से कोशिश कर रहे हो ? मैं करूँगा ।" स्वर्ग की सीढी । तो ये लोग रावण की तरह बनने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें रावण से सबक लेना चाहिए कि उसकी नास्तिकता उसे बर्बाद कर गई । सब कुछ खो दिया उसने । तो अर्जुन द्वारा यह अनुदेश ... वे कहते हैं कि सो अहम धनुष त ईषव: वे ग्वालों से हार गया था। वे श्री कृष्ण की रानियों की रक्षा नहीं कर सका और वे ग्वालों द्वारा ले जाए गए ।इसलिए वह विलाप कर रहा है कि "मेरे पास यह धनुष अौर तीर है जिससे मैं कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में लड़ा अौर मैं विजयी हुअा क्योंकि श्री कृष्ण मेरे रथ पर बैठे हुए थे और । यही एकमात्र कारण है। अब मेरे पास ये धनुष और तीर हैं, वही धनुष और तीर जिससे मैं कुरुक्षेत्र की लड़ाई लड़ा लेकिन वर्तमान समय में श्री कृष्ण नहीं हैं । इसलिए यह बेकार हैं ।" ईश रिक्त असद अभूत । असत मतलब जो नहीं है । "तो मेरे धनुष और तीर वही हैं, लेकिन अब यह बेकार हैं । हमें यह सबक लेना चाहिए कि भगवान के बिना, आत्मा के बिना, यह भौतिक, मेरे कहने का मतलब है, अलंकार का कोई मूल्य नहीं है ।"