HI/750710 बातचीत - श्रील प्रभुपाद शिकागो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"सब कुछ मनमर्जी से किया जा रहा है। फिर से इसे मनमाने ढंग से सुधारा जा रहा है, फिर से वही हो रहा है। पुन: पुनश चर्वित-चर्वणानाममानक (श्री. भा. ७.५.३०), चबाया हुआ चबाना, बस इतना ही। कोई मानक नहीं। वह आधुनिक सभ्यता का दोष है। आप अपना मानक बनाते हैं, मैं अपना मानक बनाता हूं, वह अपना मानक बनाता है। और इसलिए नेताओं के बीच लड़ाई होती है। लेकिन हमारी वैदिक अवधारणा के अनुसार एक मानक है। हम जोर दे रहे हैं कि, "तुम इस वैदिक मानक को लो; तो तुम पूर्ण हो सकते हो।" और यदि आप अपना मानक बनाते चले जाते हैं, तो आप कभी भी पूर्ण नहीं होंगे। क्योंकि आप अपना मानक बनाते हैं, मैं अपना मानक बनाता हूं, वह अपना मानक बनाता है, और लड़ाई होती है। हम इसलिए एक मानक डाल रहे हैं, भगवद गीता यथारूप । यही हमारा प्रचार है, कृष्ण भावनामृत।"
750710 - वार्तालाप - शिकागो