HI/750920 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद वृंदावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो कृष्ण भावनामृत आंदोलन का अर्थ है कामुक इच्छाओं से भरे हृदय रोग का इलाज करना। यह कृष्ण भावनामृत है। और पूर्णता तब आता है जब अन्यभिलाषित-शून्यम (ब्र. सं १.१.११)-कोई और भौतिक इच्छा नहीं। यह संभव है। यम लब्ध्वा चापरम लभम मन्यते नादिकम तत: (भ. गी. ६.२२)। अगर आपको कुछ मिलता है, वह कुछ, यम लब्ध्वा चापरम लाभम, आप पूर्ण संतुष्ट हैं कि, "मुझे और कुछ नहीं चाहिए ।"
750920 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०२.१७ - वृंदावन