HI/660711 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660711BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"जब हम इस शरीर को ध्यान में रख कर सोचते है तो वह भौतिक स्तर है । कोई भी कार्य इस शरीर को ध्यान में रखकर की गई हो... इस शरीर से अर्थ है इंद्रियां। शरीर अर्थात इन्द्रियां।अर्थात कोई भी कार्य यदि हम इंद्रिय तृप्ति के लिए करते है तो वह भौतिक है। और कोई भी कार्य यदि भगवान की संतुष्टि के लिए करा गया हो तो वह आध्यात्मिक स्तर है । बस। तो हमे पहचानना होगा की " मैं अपने इन्द्रियों की तृप्ति के लिए कार्य कर रहा हु या भगवान की संतुष्टि के लिए कार्य कर रहा हु?" यदि यह कला हम सीख जाए तो हमारा जीवन आध्यात्मिक बन जायेगा। आध्यात्मिक जीवन का अर्थ ये नही की हमारे कार्य,जिनको करने में हम अभी लगे हुए है,या हमारे शरीर का रूप कुछ असाधारण रूप से परिवर्तन हो जायेगा। कुछ नही।"|Vanisource:660711 - Lecture BG 04.01 and Review - New York|660711 - प्रवचन BG 04.01 and Review - न्यूयार्क}} | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660711BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"जब हम इस शरीर को ध्यान में रख कर सोचते है तो वह भौतिक स्तर है । कोई भी कार्य इस शरीर को ध्यान में रखकर की गई हो... इस शरीर से अर्थ है इंद्रियां। शरीर अर्थात इन्द्रियां।अर्थात कोई भी कार्य यदि हम इंद्रिय तृप्ति के लिए करते है तो वह भौतिक है। और कोई भी कार्य यदि भगवान की संतुष्टि के लिए करा गया हो तो वह आध्यात्मिक स्तर है । बस। तो हमे पहचानना होगा की" मैं अपने इन्द्रियों की तृप्ति के लिए कार्य कर रहा हु या भगवान की संतुष्टि के लिए कार्य कर रहा हु?" यदि यह कला हम सीख जाए तो हमारा जीवन आध्यात्मिक बन जायेगा। आध्यात्मिक जीवन का अर्थ ये नही की हमारे कार्य,जिनको करने में हम अभी लगे हुए है,या हमारे शरीर का रूप कुछ असाधारण रूप से परिवर्तन हो जायेगा। कुछ नही।"|Vanisource:660711 - Lecture BG 04.01 and Review - New York|660711 - प्रवचन BG 04.01 and Review - न्यूयार्क}} |
Latest revision as of 17:15, 10 June 2024
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"जब हम इस शरीर को ध्यान में रख कर सोचते है तो वह भौतिक स्तर है । कोई भी कार्य इस शरीर को ध्यान में रखकर की गई हो... इस शरीर से अर्थ है इंद्रियां। शरीर अर्थात इन्द्रियां।अर्थात कोई भी कार्य यदि हम इंद्रिय तृप्ति के लिए करते है तो वह भौतिक है। और कोई भी कार्य यदि भगवान की संतुष्टि के लिए करा गया हो तो वह आध्यात्मिक स्तर है । बस। तो हमे पहचानना होगा की" मैं अपने इन्द्रियों की तृप्ति के लिए कार्य कर रहा हु या भगवान की संतुष्टि के लिए कार्य कर रहा हु?" यदि यह कला हम सीख जाए तो हमारा जीवन आध्यात्मिक बन जायेगा। आध्यात्मिक जीवन का अर्थ ये नही की हमारे कार्य,जिनको करने में हम अभी लगे हुए है,या हमारे शरीर का रूप कुछ असाधारण रूप से परिवर्तन हो जायेगा। कुछ नही।" |
660711 - प्रवचन BG 04.01 and Review - न्यूयार्क |