HI/760119 - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७६ Category:HI/अमृत वाणी - मायापुर {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760119MW-MAYAPUR_ND_01.mp3</mp3player>|"नृसिंह-देव उसे (प्र...") |
No edit summary |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७६]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९७६]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - मायापुर]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - मायापुर]] | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760119MW-MAYAPUR_ND_01.mp3</mp3player>|"नृसिंह-देव उसे (प्रह्लाद महाराज) थाती, आशीर्वाद देना चाहते थे, "जो भी आपको पसंद हो।" उसने उसे अस्वीकार कर दिया। उसने कहा कि "मैं एक व्यापारी भक्त नहीं हूँ कि मुझे आपसे कुछ लाभ मिलेगा, लेकिन पहला आशीर्वाद मैं चाहता हूँ कि मैं आपके सेवक, नारद मुनि की सेवा में लग जाऊँ।" तव भृत्य-सेवाम् ([[Vanisource:SB 7.9.28|श्री. भा. ७.९.२८]])। "क्योंकि मेरे आध्यात्मिक गुरु ने मुझे आशीर्वाद दिया है, इसलिए मैं आपको देखता हूँ। इसलिए मेरा पहला कर्त्तव्य | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/760119MW-MAYAPUR_ND_01.mp3</mp3player>| | ||
"नृसिंह-देव उसे (प्रह्लाद महाराज) थाती, आशीर्वाद देना चाहते थे, "जो भी आपको पसंद हो।" उसने उसे अस्वीकार कर दिया। उसने कहा कि "मैं एक व्यापारी भक्त नहीं हूँ कि मुझे आपसे कुछ लाभ | |||
मिलेगा, लेकिन पहला आशीर्वाद मैं चाहता हूँ कि मैं आपके सेवक, नारद मुनि की सेवा में लग जाऊँ।" तव भृत्य-सेवाम् ([[Vanisource:SB 7.9.28|श्री. भा. ७.९.२८]])। "क्योंकि मेरे आध्यात्मिक | |||
गुरु ने मुझे आशीर्वाद दिया है, इसलिए मैं आपको देखता हूँ। इसलिए मेरा पहला कर्त्तव्य उनकी सेवा करना है।" यह वैष्णव निष्कर्ष है। इसलिए उसने प्रत्यक्ष सेवा से इनकार कर दिया, लेकिन वह | |||
आशीर्वाद चाहता था कि वह अपने आध्यात्मिक गुरु की सेवा में लगा रहे। यह वैष्णव निष्कर्ष है।"|Vanisource:760119 - Morning Walk - Mayapur|760119 - सुबह की सैर - मायापुर}} |
Latest revision as of 13:31, 14 June 2024
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"नृसिंह-देव उसे (प्रह्लाद महाराज) थाती, आशीर्वाद देना चाहते थे, "जो भी आपको पसंद हो।" उसने उसे अस्वीकार कर दिया। उसने कहा कि "मैं एक व्यापारी भक्त नहीं हूँ कि मुझे आपसे कुछ लाभ मिलेगा, लेकिन पहला आशीर्वाद मैं चाहता हूँ कि मैं आपके सेवक, नारद मुनि की सेवा में लग जाऊँ।" तव भृत्य-सेवाम् (श्री. भा. ७.९.२८)। "क्योंकि मेरे आध्यात्मिक गुरु ने मुझे आशीर्वाद दिया है, इसलिए मैं आपको देखता हूँ। इसलिए मेरा पहला कर्त्तव्य उनकी सेवा करना है।" यह वैष्णव निष्कर्ष है। इसलिए उसने प्रत्यक्ष सेवा से इनकार कर दिया, लेकिन वह आशीर्वाद चाहता था कि वह अपने आध्यात्मिक गुरु की सेवा में लगा रहे। यह वैष्णव निष्कर्ष है।" |
760119 - सुबह की सैर - मायापुर |